शुक्रवार, 13 जनवरी 2017

बाबा और बेटी💖


स्मृतियां जीवन्त होती हैं, मानव शरीर क्षण भंगुर है। अपने निकले हुए पेट को छुपाते हुए 'बाबा' और उनकी वह हंसीं बस इस तस्वीर मे ही दिखेगी। 'स्मृतियां' मनुष्य को ईश्वर प्रदत्त एक अमूल्य उपहार है।
  आज फिर से जीवन्त हो उठी बाबा की स्मृतियां,,,, यूँ तो उनकी हर बात, उनकी भाव-भंगिमाए,उनकी आवाज़ की अनुगूँज रह रह करकानों मे गूँजती है और आंखों केआगे तैर जाती हैं,,,, कभी मन मुस्कुरा उठता है,,,तो कभी द्रवित हो जाता है,,,पर आज लिखने के लिए प्रेरित कर गई उनकी यह फोटो😊 ।बहुत सारी बातें हैं यादों के खजाने में,,सबको एक लेख मे समेट पाना असम्भव,, बस एक अंश मात्र है जो मन मे तरंगित हो रहा हैऔर उँगलियाँ टाइप कर रही हैं।
      'बाबा' बहुत ही सरल, कमर्ठ,उसूलों के पक्के, दुनिया की 'टिटिम्मेबाज़ी से अलग अपनी एक अलग सोच रखने वाले, खाने के बहुत शौकीन उनको खिलाना बहुत आनंद देता था😊 परन्तु 'खाने के लिए जीवन नही, जीवन के लिए खाना' पर अमल करने वाले, बच्चों के साथ बच्चे, माटी के मानुष, कलम के धनी, निर्भीक, भावुक और गुस्सैल भी😃। मेरे व्यक्तित्व को विस्तार देने वाले मेरे जीवन के 'प्रथम पुरूष',,,कहते हैं बेटियों के जीवन मे 'आर्दश पुरूष' की परिकल्पना उसके पिता को देखकर ही निर्मित होती है,,,और भावी भविष्य में लड़कियां अपने पति में पिता सा स्नेह,संरक्षण,सुरक्षा  खोजती हैं,,,जिसका प्रथम पाठ वे अपने पिता से ही सीखती हैं।
     मेरे व्यक्तित्व आकार माँ ने दिया परन्तु विस्तार का प्रारम्भ बाबा ने,,,। माँ बताती हैं जब मैं शिशु थी ,,बाबा के ऑफिस के आने के समय ही रोना शुरू कर देती थी और चुप बाबा के गोद में जाकर ही होती थी।,,  "बाबा की बेटी",,, बहुत ही अह्लाद से वह मेरे सिर पर हाथ सहलाते हुए अपने सीने से लगाते थे वह स्पर्श आज जीवित हो उठा  उनको याद करते हुए😊।
   बाबा से पढ़ना भी बहुत अच्छा लगता था 'इतिहास के ज्ञाता ' थे,,कितनी ही रोचक कहानियां उनको पता थी जो किताबों में नही मिलती। अक्सर रात मे लाइट चले जाने पर आंगन मे फोल्डिंग चारपाई डाल बाबा के पास बैठकर कहानियाँ सुनना बेहद पसंद था,,यह कहानियां पौराणिक, ऐतिहासिक और कभी कभी मन गढ़न्त होती थीं😃😃😃😃 जोकि बेहद रोचक और किश्तों मे सुनाई जाती थीं,,इनका कोई अंत नही होता था,,मै मंत्र-मुग्ध हो उनको सुनती थी। ज्यादा देर हो जाने पर रसोई से माँ गुस्से मे आवाज़ लगाती - अरे अब उठेगी या बाबा की बकर-बकर सुनती रहेगी,,,,तब बाबा धीरे से हंसते हुए बोलते-' जा,,जा तेरी माँ का पारा हाई हो गया है'😃😃😃😃 मन एकदम भी नही होता था पर उठ जाती थी।
     कहाँनियों की बात क्या छिड़ी ,,,मै पढ़ाई वाली बात से भटक गई,,, गणित मे मै शुरू से ही बहुत कमज़ोर थी,,इसलिए मौका मिलते ही गणित बाबा से पढ़ना पसंद था,,क्योंकी उनसे कोई प्रश्न पूछो वह उसे पूरा हल कर के बता देते थे और मैं उसको आपनी काॅपी में 'टीप' लेती थी,,, नही तो माँ के पास बैठना मतलब मार खाकर पढ़ना ,,,अक्सर माँ रोटी बनाते हुए पढ़ाती थींऔर न समझ आने पर बेलन से मार पक्की😃😂😂। वैसे बाबा को समय कम मिलता था,,हर बार बोलते थे-' बेटा इस माह की 15 तारिख को लेकर बैठूँगा,,पर उनकी वह 15 तारिख जल्दी नही आती थी
       हाई स्कूल की बोर्ड परीक्षा में अंग्रेजी की तैयारी बाबा ने कराई एक पाठ था ' साॅक्रेटीज़" वह उन्होने बहुत अच्छे से समझाया और भाग्यवश 50% प्रश्न उसी पाठ पर आधारित थे, मेरा पेपर बहुत अच्छा गया, प्रश्नपत्र देखकर बाबा बोल पड़े-' सुकरात महाराज लहा दिए'😃😃😃।
   उनके कुछ निर्धारित कार्यकलाप थे,, हम तीनों भाई बहनों के परीक्षा देकर आते ही प्रश्नपत्रों पर 'मार्किंग करना,,,हमने क्या उत्तर लिखा कभी नही पूछते थे बस इतना पूछते थे,, "बेटा हवा लग?" और हमारे उत्तर देने के अंदाज़ पर ही उनकी मार्किंग होती थी जोकि इतनी सटीक होती थी कि मजाल है रिर्पोट कार्ड में 3-4 अंक से अधिक इधर-उधर हो जाए,,,अद्भुत दूरदर्शिता थी।
   खाना बनाने का तो नही परन्तु खाने के साथ प्रयोगात्मक पंगे लेने की मेरी आदत छोटी उम्र से ही मुझमे रही है, जो कभी कभार बहुत अखाद्य होते थे,,, और मेरे ये 'अखाद्य अत्याचार' बाबा ने सदैव सराहना और प्रोत्साहना के साथ प्रशंसा के साथ खाए। जब मेरे प्रयोग सफल होने लगे तब, जब भी मुझे मौका मिलता मै उन्हे चखाने के लिए ले जाती थी,,, उनकी उन्मुक्त कंठ से प्रशंसा और प्रोत्साहन मुझे एक सफल 'शेफ' की सी अनुभूति देते थे। अब यह सब बस स्मृतियों मे ही जीवन्त रहेगा और आंखों के आगे एक फिल्म सा चलता दिखेगा परन्तु,,,,,,,,,,,,,,,।
       बाबा सशरीर साथ नही पर अपनी यादों के साथ, शिक्षा एंव संस्कारों के साथ आजीवन साथ हैं,,,, नही हैं तो बस हमें लेकर उनकी वह वात्सल्यमयी चिंताएँ ,,, कि मेरी बेटी ठीक से खाना खाती है या नही? परिवार की देखभाल मे सारा दिन दौड़ धूप करती,,अपने स्वास्थ्य का ख्याल करती है या नही? मेरी थकान जैसे बाबा ही पहचान पाते थे,,शाम को मिलने जाती थी तो सबसे पहले माँ को बोलते थे -'इसको एक ग्लास पानी देना' अब वह आवाज़ नही सुनाई देती,,,, छोटी से छोटी उपलब्धियों को बाबा को बताना और उनकी शाबाशी पाना,,, छोटा सा काम करने पर उनका बड़ा सा आशीर्वाद-" जा राजरानी हो जा,,;क्वीन विक्टोरिया हो जा "!!! बहुत कुछ चला गया उनके साथ ,,, जिन्हे शब्दों मे व्यक्त कर पाना मेरे लिए असंभव है ।

9 टिप्‍पणियां:

  1. एक कुशल कथाकार की तरह स्मृति को जीवंत किया गया है। प्रत्येक शब्द भावों में डूबे हुए जैसे रसभरी जलेबी। पढ़ता गया जीता गया वह पल लगा सब कुछ मेरे सामने ही घटित हो रहा है।

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  2. क्या टिप्पणी करूँ इस लेख पर। आपके भाव आँखों के सामने से तैर गए इतना बता सकती हूँ।

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  3. दिल को छू गया तुम्हारा लेखन...तुम्हारे साथ साथ मैनें भी जी लिया उन पलों को...पर अभी भी जी भरा
    नहीं ...और पढना चाहती हूं मैं ...बहुत सुदंर..

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    1. आह क्या टिप्पणी दू प्यारी बस अपलक पढ़ती रही , हम सबके जीवन में एक शक्स ऐसा होता है जिसका जाना जीवन भर टीस देता रहता है,जिसकी कमी कोई पूरी नही कर पाता है,चाहे वो माँ,बाबा या माई हो ....

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  4. निःशब्द,,,,,दी,,,,सार्थकता से परिपूर्ण लेखन,,,,पिता के अनन्त प्यार को नमन,,,,,,,������������

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  5. बहुत बढ़िया उकेरा है मन की कसमसाहट को शब्द भी उसी वेदना में डूबे हुए है ...अपने अर्थ को सही मायनों में जी रहे है ….मधुर स्मृति

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  6. Tumhare ek ek line ke saath main apne mummy papa ko yaad karne lagi Lily. Ye tumne line nahi likhi hai balki apna dil utaar diya hai panno pe yaadon ki syahi se. Har kissi me ye kala nahi hai par tumhare saath saath main bhi yaadon ke safar pe nikal gayi thi. Duniya me em matr maa papa hi hote hain jo aapko niswarth pyaar karte hain

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