रविवार, 12 फ़रवरी 2017

मेरी ज़िन्दगी को मेरी भावमयी प्रस्तुती,,,,,

                   *जीवन की जीवटता को पहचानिए*

"कुछ लोग ज़िन्दगी मे नही होते,,,ज़िन्दगी होते हैं,,," यह पंक्तियां कहीं पढ़ी थी,,,तब से मेरे मानस पटल पर लहरों सी हिंडोले मारती रहीं,,मै इन लहरों के थपेड़ो से भीगती बचती, डूबती तैरती, कभी साहिल पर तो कभी गहराइयों मे उतरती रही। आखिर इन पंक्तियों मे ऐसा क्या है??? खुद भी उलझी हूँ ,,आइए आपको भी उलझाती हूँ शायद आत्मचिन्तन से मै पंक्तियों से तारतम्य बिठा सकूँ।
  किसी का ज़िन्दगी मे होना और ज़िन्दगी होना,,,,बहुत सारगर्भित आशय लिए है,,। जैसे सांसों का चलना और सांसों के चलने की वजह होना। इस चेतनापूर्ण जीवन का मूल क्या है? फूल मे सुगन्ध है, कोमलता और आकर्षण है,,,,सृष्टि की इस सौन्दर्यमयी रचना का अवश्य ही कोई निर्धारित कारण होगा।
   ऊषा की प्रथम किरण से फैलता प्रकाश,,,पक्षियों का कलरव, शीतल मंद बयार,,नदियों मे जल,,पहाड़ों की ऊचाँई,,,ज्वालामुखी की सच्चाई,,,,सभी कार्यों का कारण अवश्य ही है,,। इनका अस्तित्व अप्रत्यक्ष रूप से कहीं ना कहीं जीवन को लक्ष्य प्रदान करता है,,प्रेरणा प्रदान करता है। इनका होना ही जीवन है।
    मनुष्य एक लम्बा सफर तय कर जीवन के हर पड़ाव पर पहुँचता है। एकान्त मे कभी ना कभी अवश्य ही अपने अस्तित्व के 'कारण' पर चिन्तन करता है,,जोकि अति स्वाभाविक है। जब शिशु होता है ,,तो अविभावक की खुशियों की फुहार,,,,उनके जीवन कर्तव्यों की गुहार,,,,फिर खुद की पहचान बनाने मे जुट,,, झेलता संघर्ष ललकार,,। हृदय  स्पन्दन की धुन पर सांसो का नर्तन,,,,इन्द्रियों के छन्दन पर भावनाओं का आवर्तन,,,,,। जीवन का यह संगीत नित नयी राग पर झूमता,,,क्यों??????????आवश्य ही किसी संगीतकार की रचनात्मकता का सृजन हो रहा हो,,,जीवन संगीत निर्मित हो रहा हो।
     जिसप्रकार पदार्थ की संरचना अणुओं और परमाणुओं का संघटन है,,,उसी प्रकार मनुष्य जीवन भी उसके आस पास के वातावरण से पोषित एंवम् पल्लवित होता है।उसका जीवन कई अन्य जीवन से प्रभावित,संरक्षित एंवम् सुचारू भाव से चलायमान होता है,,। परन्तु ,,,,,,,इन सब के होते हुए भी एक कोई ऐसा होता है जो,अणुओं परमाणुओं के भांति मानव शरीर रुपी पदार्थ को स्थूलता नही प्रदान करता,,,,परन्तु जीवन उसके लिए बना होता है,,,,,आस-पास सशरीर विद्यमान नही,,,किन्तु 'उससे' संचारित होने वाली जीवनमयी तंरगें 'जीवन' का कारण होती हैं ।
    वह शक्तिपुंज है,,वह शरीर रूपी ब्रह्माण का सूर्य,,,वह वायुमण्डल की वायु,,वह समस्त इन्द्रियों का नियंत्रणकर्ता है। 'उसके' लिए दैनिक दिनचर्या के कर्तव्यों का निर्वहन नही करना पड़ता फिर भी वह दैनिक जीवन को निर्धारित करता है। 'वह जिन्दगी मे नही,,,,,वह तो ज़िन्दगी होता है।'
  आत्मा का आत्मा से मिलन परमानंद की अनुभूति देता है। सब अदृश्य है,स्थूल और नग्न आंखों से दर्शनीय नही है,,,,फिर भी सांसों के प्रवाह में,,,,शक्तिपुंज के अवगुंठन मे,,,चेतना के तारतम्य मे वह अप्रत्यक्ष रूप जीवन को दीप्तमान किए,,,,वह जीवन मे नही,,,जीवन ही होता है,,,।
   खिली चांदनी रात में सागर की लहरों मे आया 'ज्वार भाटा' ,,,,,,यह प्रकृति की कौन सी शक्ति है जो पृथ्वी के गुरूत्वाकर्षण की गहनतम शक्ति को चुनौती देती है। समुद्र की अथाह जलराशि को आन्दोलित कर आसमान छूने को उद्वेलित करती है,,,,,? पृथ्वी से सहस्त्र योजन दूर सूर्य को संध्या काल मे सागर मे समाहित कर देती है,,? प्रचंड तांडव मचाते मन मस्तिष्क मे यह आश्चर्यपूर्ण प्रश्न,,,,क्या सम्बन्ध इनका एक सामान्य मानव जीवन से,,,,? ये हमारे दैनिक कार्यकलापों का हिस्सा नही,,,फिर भी ये अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करते हैं। ये सृष्टि के अटल सत्य,,जीवनमूल के आवश्यक मानदंड ,,,,,,"यही जीवन होते हैं।"
    विचारों का तानाबाना बुनती गई,,, उँगलियों मे उलझते अनगिनत सूत को अलग-अलग करती,, अभिव्यक्ति का वस्त्र तैयार करने की कोशिश,,,, समझने की कोशिश कि कुछ लोग ज़िन्दगी कैसे होते हैं?? आवश्यकता है अपनी ज़िन्दगी को पहचानने की। जिससे मिलकर परमानंद की अनुभूति हो,,, जीवन मे ऊर्जासंचार हो,,,जीवन जीने की प्रेरणा मिले,,, सृष्टि के रहस्यों और रोमांच को खोजने का मन करे ,रचनात्मकता को सृजन मिले ऐसे लोग ज़िन्दगी मे नही होते ज़िन्दगी होते हैं।
"मेरी ज़िन्दगी को मेरी भावमयी प्रस्तुती,,,,,,,।"

3 टिप्‍पणियां:

  1. Waaah lily di.. kuch log jeewan me na hote huye b jeewan hote hain..is pnkti ko pdhne ka nzriya hi bdl gya aapki ye abhivykti pdhne k baad..
    Naa sirf bhawnao ko aapne vyakt kia..prntu vaigyanic tarike se b khoob snjoya..
    Naman aapko

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    1. नेहा मन खुश हो गया तुम्हारी टिप्पणी से,,, हौंसला मिला कुछ नया व्यक्त करने का।

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  2. शब्द में संगीत के सुरों को ढाल कर, शब्द रूपी संगीत में परागों की मिठास सजाकर, शब्द रूपी संगीत के पराग में बगिया की खुश्बू मिलाकर। शब्द रूपी संगीत के पराग में विभिन्न खुशबुओं के संग लौकिक और अलौकिक संवेदनाओं को मुखरित कर इस लेख को कहीं गीत, कहीं लोकगीत कहीं ग़ज़ल तो कहीं भजन आदि में ढाल दिया गया है। पढ़ते समय उत्सुकता और कौतुहल रहता है कि आगे कौनसा शब्द होगा, क्या भाव होंगें, कहाँ भावों और विचारों के छींटें मिलेंगे और कहाँ गोताखोरों की तरह डूब कर गाहरायिक लुत्फ़ मिलेगा। अद्वितीय लेख।

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