मंगलवार, 14 मार्च 2017

पिया परदेसी ,,,,, सखी कैसे खेरूँ मै होरी,,,

                    (चित्र इन्टरनेट से )
~लघुकथा~

होरी की खुमारी मे मै डूब रही सखी,,,,
बोल ना कैसे मनाऊँ अबके होरी,,,,,,,?
रंग ले आऊँ जाय के हाट से,,,,चल मोरे संग,,,,।
लाल रंग लगवाऊँ के,,,, पीरा,,,, हरा रंग चटखीला,,, के गुलाबी नसीला,,,,
ऐ सखी बोल ना,,,,, कुछ तो बोल,,,??
प्रीत की ये पहरी होरी है रे! मन बौराया है,,,सुध-बुध हार बैठी हूँ,,,,।
पर सुन ना ,,, लाल रंग जो उनसे लगवाऊँ तो दिखबे ना करी,,, उनके प्रीत का लाल रंग बहुत चटख है रे,,,,,, देख कैसे लाज से गाल गुलाबी हुए जाए मोरे,,,,,
उईईईईईई माँ,,,, गाल का गुलाबी रंग तो ,,,गुलाल के मात दे रहा रे,,,,,,!!!!
चल तो चटखीला हरा  ही लै लूँ,, सइय्या से यही रंग लगवाऊँ ,,,, पर सखि लागे है एहो रंग ना चढ़ी हम पर,,,
,उनके प्रेम के सावन मे भीगो मोरा मन बारहों मास हरा-भरा रहे है,,,,,,,, अब तो जे होरी को हरो रंग भी आपन चटखपन ना दिखा पावेगा।
      पीरा ही लै लूँ फेर ,,,,?
अरि कुछ तो बोल,,,!!
अबके बंसत मोरे सजन मोहे बसंती बना गए,,,,ध्यान करते ही तन मन सब बसंती ,,,,, रहे देती हूँ यो पीरा रंग तो फीका पड़ जाएवेगा,,,।
    सखी खींझकर बोली,,,,तू हमका कछु ना बोलै देत है ना,,, बतावै देत है,,,, ऐसी बाबरी हुई है,,खुद ही सब पूछै,,खुद ही बतलावै,,,तू रंग ना खरीद,,,, अपने सजन के हर रंग मे तू रंगी है,,,,मेरा बखत ना बरबाद कर ,,मोहे जाने दे,,, माई के साथ गुझिया बनवा वे का है हमे,,,बोल सखी भी भाग गई।
अरि सुन तो ,,,,,,,! अच्छा तू बतला दे,,, ऐसे मोहे बिपदा मे अकेली छोड़ के ना जा,,, अरी ओ,,,,,सुन ना,,,,,!!!  येहो भाग गई अब का से कहूँ अपने जिया की,,,? मै रंग देख मतवारी हो रही,,,हर रंग मोहे पिया के याद दिराए ,,,, बस मन मे ही सपने संजोए हूँ,,,, जो अबके होती संग तोहारे,,,,,रंग से ना  भागती ,,, तोहारे रंग मे रंग जाती,,,,,तोहारी प्रेम की फुहार मा तुम संग लिपट भीग जाती,,,,,तुम रंगरेज मोरे,,,,,,सब रंग मे रंग,, सतरंगी चुनरिया सी लहराती,,,,, इतराती,,,,बलखाती,,,,।
मोहे होरी के रंग अब ना भाए री,,,,!
बस पिया रंग रंगी मै तो बस उन्ही के रंग रंगी,,,,,।
होरी कैसे खेरूँ,,,
कैसे बताऊँ जिया की तड़प,,
 एक तो पिया परदेस,,
  ना रंग लगे ,,,,
  ना अंग लगे,,
तू जा अपनी माई के पास रे ,,, सच ही तो कह रही ,,मै तोहरा बखत बरबाद कर रही,,,।

2 टिप्‍पणियां:

  1. यह लेख भारतीय जगत के उन हिस्सों के महिलाओं के मनोभावों का बयान कर रही हैं जिनके पिया अपने कार्य या नौकरी की वजह से दूर हैं। फौजियों की पत्नियां भी इन्हीं भावों के इर्द-गिर्द होली को हंसायी-ख़ुशी मना लेती हैं। बिहार के मजदूर जो कोयलरी में कार्य करने या नौकरी करने कोलकाता गए हैं उन महिलाओं में यह भाव प्रचंड वेग से उभरता है। अनेकों लोकगीत हैं। लिली जी ने नारी मनोभाव का बड़ा मनोहारी चित्रण किया है। आंचलिक शब्दावली का चतुराई से प्रयोग कर प्रत्येक शब्द को रंगपूर्ण बना दिया है। लिली जी की कल्पना और लेखन पर अनेक रंगों की बौछार। शुभ होली।

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  2. ☺❤
    आशीर्वाद ☺☺☺☺☺☺☺☺
    Speechless !!!!!

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