शनिवार, 29 जुलाई 2017

एक भारत, श्रेष्ठ भारत

                          (चित्र इन्टरनेट से)
 दृढ़प्रतिज्ञ हों भारतवासी,
गौरव ना धूमिल करना है।
अखंड भारत का स्वप्नदीप,
मन मे प्रज्जवलित रखना है।

औरों का तुम दोष ना बाँचों,
निज अवगुण को तजना है।
सोच को अपनी पहले बदलो,
तभी देशहित उपवन सजना है।

कर्तव्यों का ज्ञान कराए कोई?
यह तो अंतर चेतन अपना है।
अधिकारों का बात करो,पहले,
निज कर्मों का बोध समझना है।

व्यक्ति,व्यक्ति मिल परिवार बने,
देश इसी तंत्र की विस्तृत रचना है।
क्यों आस लगाए बैठे हमसब के,
सब 'सरकारी' की ही संरचना है।

एक हो भारत श्रेष्ठ हो भारत!
कितनी न्यारी परिकल्पना है।
देशप्रेम की अलख जगा लो,
सब विद्रुपताओं को तजना है।

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