शनिवार, 12 अगस्त 2017

घुटती संवेदनशीलताएं,,,,,

                       (चित्र इन्टरनेट से)

जो होता है वह
दिखाया नही जाता,,
एक निर्धारित फोकस
 के गोले मे पूरा सच
समाया नही जाता,,,,,,

कौन है असल कसूरवार
ये समझना है मुश्किल
बहुत सर खुजा के देख
लिया नही हुआ कुछ हासिल,,

सच को झूठ बनाने वाला
भी पेट की खातिर लड़े
झूठ को सच बनवा के
दिखवाने वाला भी
पेट के खातिर आड़े,,,

पेट,,पेट की इस लड़ाई
में इनका पेट भरने वाली
संवेदनशीलताएं घुटे,,,,
जिस घर में एक दिया ही
है फ़कत रौशनी करने के
लिए,वह चिराग इन जहरीले
सांपों की फूँक से बुझे,,

सुकोमल संवेदनाओं को
भड़काना अब और भी
आसान हो चला,,,
दुखती रगों पर नमक मिर्च
लगाती सोच को पहुँचाना
अतिव्यक्तिगत हो चला,,

ऐसे विषम परिवेश की बस
एक ही पुकार है,,
देश की चिथड़ी आत्मा रोकर
कर रही चीत्कार है,,

खुद के बुद्धि-विवेक को जगाइए
कुछ निहित स्वार्थों के लिए
झूठ को सच और सच को
झूठ दिखाते मिडियाई
ढकोसलों पर मत जाइए,,

जागिए बंधुओं ना ऐसे
आंतरिक अराजकता फैलाइए
घायल है बहुत देश की आत्मा
अब और ना खंजर बरपाइए

1 टिप्पणी:

  1. सत्य वर्णन पर स्थितियां इतनी विवादास्पद हो गयी हैं मीडिया और प्रौद्योगिकी के द्वारा कि इसका सही और पक्षरहित स्पष्ट प्रदर्शन हालात पर काबू कर सकता है। आज भी देश के बहुसंख्यक विभिन्न मीडिया की खबरों को।सत्य मानते हैं। अधिकांश को पेड़ न्यूज़ के बारे में जानकारी नहीं है।

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