रविवार, 19 नवंबर 2017

कुछ शब्द यूँ ही गिर जाते हैं,,,

                         (चित्राभार इन्टरनेट)

हवा ,घटा
नभ,चन्द्र चीर
उड़ते पक्षीं
नदिया का नीर
जब रह रह कर
छू जाते हैं,,,
कुछ शब्द यूँ हीं
गिर जाते हैं,,,

उदधि हिंडोलें
सूरज की पीर
परवत का पौरूष
धरती का धीर
जब रह रह कर
छू जाते हैं,,
कुछ शब्द यूँ हीं
गिर जाते हैं,,,

नव कोपल की
शैशव सी गात
हिलती शाखों की
झनकीली बात
जब रह रह कर
छू जाते हैं,,
कुछ शब्द
यूँ ही गिर जाते हैं,,

उबड़-खाबड़
पथरीले पाथ
मै तुम और
कविता का साथ
जब रह रह कर
छू जाते हैं,,
कुछ शब्द यूँ ही
गिर जाते हैं,,

भौतिकता की
भड़कीले भेद
कुछ आत्मबोध
करवाते खेद
जब रह रह कर
छू जाते हैं,,
कुछ शब्द यूँ ही
गिर जाते हैं,,

लिली🌷

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