रविवार, 3 दिसंबर 2017

अच्छा है नदी रूख मोड़ ले,,


                      (चित्र जिमकार्बेट से, मेरा द्वारा )

अच्छा है नदी
रूख मोड़ ले
सागर से मिलने
की ज़िद छोड़ दे

अपने किनारों
को छोड़,हुई
जाती है कृषगात
बड़े पथरीले लगते
हैं आने वाले हालात्

तक्लुफ़ो कों जगह
ही क्यों देना?
फिर उन्हे प्रेम की
नई परिभाषाओं का
रूप देना!!
यह कैसे मरूस्थल में
आ पहुँची है नदिया की
धार,,
मुश्किल हैं खींच पाना
उष्ण बहुत है ये तपता
रेतीला कगार,,

बेहतर है वह खुद को
यहीं से मोड़ ले,
खनिज-लवणों से भरे
खादानों को
खुद में पनपता ही
छोड़ दे,,,

बहुत कुछ संजों कर
लाई है,उन जंगली
पहाड़ों से,,
एक संगीत के स्वर में
बलखाई है,मैदानी
कछारों में,,,
चंचलता की उन उन्मुक्त
धाराओं को,,
रेगिस्तानी ताप में सुखाना
नही चाहती,,

अच्छा है अपने स्वर्णिम
खज़ाने को खुद में
छुपाए
वह चुपचाप
एक मोड़ ले
सागर से मिलने
की ज़िद छोड़ दे।




1 टिप्पणी:

  1. नदी की नियति ही सागर मिलन है। यद्यपि सागर मिलन से पूर्व नदी कई बार मुड़ती है पर शायद नदी को इस प्रकार मुड़ना रास नहीं आता और वह अंततः इस सत्य को संभवतः पहचान जाती है और सागर से मिल जाती है। मनुष्य के भौतिक, आत्मिक और आध्यात्मिक द्वंद्व को विश्लेषित करती सुंदर रचना।

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