रविवार, 3 दिसंबर 2017

लुढ़कता आँसू


                           (चित्राभार इंटरनेट)



दाईं आंख
से लुढ़का नसिका
के उभार को बड़ी
कुशलता से पार करता,
अपना मार्ग खुद प्रशस्त
करता,तेज़ी के साथ
तकियें पर,,,,,,,,
अपने निश्चित गन्तव्य
पर पहुँचने की तस्सली लिए
वह गिर गया,,,,

उसका वह पतन
एक समर्पण लिए,
एक नेतृत्व लिए,कई
पथिकों के लिए राह
बनाता,वह गिर गया
झरते रहे कई और
उसके बाद भी,,
पर नेपथ्य में वह था,
स्रोत बना फूटते झरने
का,वह गिर गया,,,,

कर्णों ने सुनी
वह आवाज़
जिसमें भरी थी
भारी मन की भर्राई
भड़ास,एक 'टप्प्'
का था स्वर,और
निकल गए कितने
अकथनीय विशादों
का आभास,,,,,
लिए वह गिर गया,,

उसके बाद निर्झर
धारा बहती रही,
पर नेपथ्य में वह
था,वह प्रथम बिन्दु
तकियें में समाहित
और खोता अपना
अस्तित्व,,,,,,,
वह दाईं आंख से
लुढ़का 'अश्रु बिन्द',,
वह गिर गया,,,

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