रविवार, 17 दिसंबर 2017

काव्य तो अभी बाधित है,,,

                     (चित्राभार इन्टरनेट)

काव्यसागर     तो
अभी     बाधित है,
स्व में     हिंडोलता
चरम उत्पलावित है।

बहेगा तब तट तोड़
कर,अभी तो  लहरें
अधीर हैं,चंचल  हैं,
अदम्य,परन्तु  भाव
घनत्व  फकीर   हैं।

गुरूत्व का  सामिप्य
अभी दूर है,अपनत्व
का चुम्बकत्व  अभी
चूर है,स्पर्श का प्रदत्त
अभी  प्रातीक्ष्य     है

ज्वार उच्छवास् तेज़
हैं,भाटों के निश्वास
निस्तेज हैं, कामिनी
काव्य की रही मचल
रूपमाधुर्य शेष    है।

लहरदेह   लहराएगी
अभिव्यक्तियां    तब
गहराएगी,  मिलन के
गहन चीत्कार से कवित्त
का श्रृंगार अभिषेक है।

काव्यसागर        तो
अभी     बाधित    है,
स्व मे        हिंडोलता
चरम् उतप्लावित  है।

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