मंगलवार, 14 फ़रवरी 2017

धुंध,,,,,

(चित्र इन्टरनेट से)


                 कुछ रिश्तों के कोई नाम नही होते
                 गुमनाम भटकते, अंजाम नही होते।

                 खुले आसमान मे उड़ते रहने की सोच
                 कोई इनके,आसमानी दायरे नही होते।

ख्यालों की धुंध मे जीने की हो चाहत
पलभर की खुशियाँ, हल्की सी राहत।

हवाओं मे तराशे भावनाओं के बादल,
यर्थाथ के झोंके, बिखरता आत्मबल।

            जिन्दगी से जो ना मिला,चुराने की हसरत
            सभी पहलुओं को खुश रखने की कसरत

            दो कश्तियों पर फंसा जीवन पतवार
            नियति की नदिया तो बहे विपरीत धार।

सूरज से होते हैं ये ख्याली से रिश्ते,
सिकुड़ते से जीवन मे गरमी की किश्तें।

आगोश मे भरने की कोशिश बचकाना,
भस्माए हस्ती ख़ाक का भी न ठिकाना।

          कुछ रिश्तों के कोई नाम नही होते
          गुमनाम से भटकते कोई अंजाम नही होते।

4 टिप्‍पणियां:

  1. बखूबी अंजान रिश्तों को एक चादर में ढक दिया।।
    बेनाम रिश्तों को यूँ खूबसूरती से अंजाम दे दिया��

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  2. "हवाओं में तराशे भावनाओं के बादल" जैसी पंक्ति एक परिपक्व रचनाकार ही लिख सकता है। "ख्यालों की धुंध में हो जीने की चाहत" जैसे वाक्य में मानव के अंतर्द्वंद्व को बखूबी अभिव्यक्ति देना एक गहन चिंतन का प्रतीक है। " दर्ज से होते हैं यह ख्याली रिश्ते" जैसी स्पष्ट रूप से भावों को प्रस्तुत कर देना जीवन के समझ का परिचायक है। कवियत्री की प्रत्येक पंक्ति स्पष्ट है। रिश्ते की गहनता से और स्पष्टता से पड़ताल करती एक सुन्दर रचना।

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