शुक्रवार, 30 दिसंबर 2016

कुछ खोया ,,कुछ पाया,,

                        ( चित्र इन्टरनेट से)


            ज़िन्दगी का एक वर्ष कुछ नए अनुभव जोड़ गया
           अनमोल पलों के संग कुछ खट्ट-मिट्ठी यादें जोड़ गया।

अधूरी ख्वाहिशों को पूरा करने को 365 दिन जोड़ गया
जो मिल गई बिन मांगे उनसे खुशिया जोड़ गया।

         जीवन पथ पर छूट गए कुछ हाथ हमारे अपनों के
         पर यह भी सुन्दर काम किया कुछ नए रिश्ते जोड़ गया।

जाने वाला तो जाता हैं आने वाले के स्वागत में
कुछ और अनोखा देने को वो एक अनोखा जोड़ गया।

       कोई सपना साकार हुआ ,कुछ बिन जागे दम तोड़ गया
       नई उम्मीदों की नवल प्रातः संग नवल लक्ष्य जोड़ ।

उत्साह ,कौतूहल, जिज्ञास के कुछ अद्भुत उत्तर छोड़ गया
नई उमंगों नये क्षितिज संग एक और नववर्ष जोड़ गया।




अभिलाषा,,,,,,,,

(चित्र इन्टरनेट से)


तुम तो निर्णय कर चुकी
कि मैं तुमसे मिल न पाउँगा,
ज़िद मेरी भी सुनलो प्रिये
मिले बिना न जी पाउँगा।

प्रेम सुवासित पुष्प,प्रिये मै ह्दय लिए,
बस कालचक्र में बाधित हूँ ,
अवसर पा गजरे मे गुथ प्रिये
तुम्हारे जुड़े मे गुथ जाउँगा।

जनमो से मै प्रीत का रीता ,
खाली गागर लिए खड़ा,
तुम अमृत सरिता सी बहती,
मै डूब प्रेम-कलश भर जाउँगा।

अतृप्त,अधूरा, बिखरा-बिखरा ,
आत्म मिलन को विह्वल हूँ,
दिव्य मिलन कर तुमसे प्रियतमा,
तुममे ही मिल जाउँगा।

मंगलवार, 20 दिसंबर 2016

प्यार की किताब,,,,,,,,,,,,,,, प्रिया के यादों के झरोखों मे

कविता लिखने की प्रेरणा मुझे तुमसे मिली प्रिया ,, तुम्हारी ही पंक्तियों को तुम्हे समर्पित करना चाहती हूँ-" हर इन्सान के दिल में यादों की एक ऐसी किताब होती है, जो कभी अचानक से खुल जाती है,और भाग-दौड़ की रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में दो पल राहत का एहसास दिला जाती है। "                             

प्रिया के यादों के झरोखों से
****************

          मन के किसी कोने में दबा कर रखी थी
          किताब तेरे प्यार की
         आज यादों की आंधी ने फिर से
          कुछ पन्नो को लुढ़का दिया।

          एक सूखा हुआ गुलाब दबा के रखा था
          किसी पन्ने मे
          तेरी यादों की खुशबू ने फिर से
          उसे महका दिया।

          वो खास लम्हे हमारी मुलाक़ात के
          पन्नो मे मोड़ कर रखे थे
          तेरी यादों की उंगलियों ने फिर से
          उन्हे पलटा दिया।

          दिल से लिखी कुछ पंक्तियां फिर से
           अचानक दिख गई
           उस रेशमी एहसास ने फिर से
           मुझे तड़पा दिया।

एक रात जागती,,, एक रात की याद मे,,,

                            (चित्र इन्टरनेट से)
  शान्त दिसम्बर की नीरव रात सोने की पूरी तैयारी कर चुकी थी,तकिये पर सर रख,,नरम कम्बल को ओढ़ रात लेटकर ,आंखों को बंद करने की कोशिश कर रही थी, परन्तु आंखे तो अपलक खिड़की से बाहर आसमान को निहारने लगी। सूनसान वातावरण में अपनी ही सांसों की आवाज़ घड़ी की टिकटिक के साथ ताल मे ताल मिलाती सुनाई पड़ी,,,,,रात हैरान नही है कि उसे नींद क्यों नही आ रही ? वो असल मे जागना चाहती है ,,,कुछ ऐसे पलों को याद कर मुस्कुराना चाहती है,,,,जिन्हे वो 'उस रात' जी कर आई थी। "एक रात जागती,,,एक रात की याद मे" एक रोमांचक शीर्षक ,,,! रोमांचक अनुभूतियों से थिरकती 'वो रात' न जाने कितनी रातों की नींदें उड़ाएगी,,,ये तो राम ही जाने,,,।
    सुन लिजिए इसकी अनुभूतियां,,,नही तो यह बिस्तर पर छटपटाती रह जाएगी। ना खुद सोएगी न 'उस रात' को सोने देगी । बड़ी जद्दोजहद के बाद कुछ पल मिले थे ज़िन्दगी से। मानो एक लम्बी कोशिश और विपरीत बहाव में तैरने के बाद कश्ती को किनारा मिला हो।
     सर्दियों की धुंध भरी भोर मे,रास्तों को टटोलती,कई अज्ञात क्षणों की रूपरेखा खींचती हुई वह रात बढ़ रही थी। उस दिन मन शान्त,कौतूहल रहित था, विवेक जागृत था ,,,सतर्कता तैनात थी,,,लग रहा था जैसे सोच-विचार कर कोई रणनीति तैयार की गई हो,,एक चूक के,,,,,, घातक परिणाम  ।इन सब के बावजूद मन की गहराई मे प्रतीक्षा थी एक खूबसूरत,महकती, थिरकती, बहकती मदहोश रात की,,,।
    प्रतीक्षा एक 'एहसास' के प्रत्यक्ष दर्शन की जिसे एक लम्बे अरसे से बस सुना, पढ़ा और शब्दों में अभिव्यक्त किया। अपरिचित नही वह,,,,,पूरी तरह से एक दूसरे में रचा-बसा ।  कितना रोमांचक था सब कुछ !!!!
      भोर की धुंध को चीरती 'प्रतीक्षा' जब अपने गन्तव्य तक पहुँची ऊपर से बहुत शांत और सतर्क परन्तु भीतर से जैसे धरती की तीन परतों के नीचे से हलचल हिडोले मार रही थी।
     आखिरकार 'प्रतीक्षा' बहुत ही औपचारिकता और शिष्टाचार के साथ अपने 'परिचित एहसास' के रू-ब-रू हुई। नज़रे एक दूसरे को जी भर देखना चाह रही थीं, स्पर्श एकदूजे को अनुभव करने चाह रहा था,आलिंगन ह्दय का स्पंदन सुनना चाह रहा था,नसिका देह गंध को मन-मस्तिष्क मे भर लेने को आकुल थी,,,समस्त इन्द्रियां तरंगित हो उठी थीं,,,परन्तु सामाजिक बंधनों की मर्यादाओं ने प्रथम मिलन को एक औपचारिक रूप देना उचित समझा। फिर भी मन 'अपने एहसास' को समक्ष पा कर जैसे असीम आन्नद मे मग्न था।
       कुछ पल चुराने की कोशिश की थी बंधनो से,,,,,,कुछ कदम साथ चले थे सड़कों पर ,,,एक टेबल के आमने-सामने बैठकर एक एक प्याला चाय पी थी,,, कल्पना मे एक दूजे को लेकर जो रूपरेखा तैयार की थी उससे मिलान करने के लिए थोड़ा समय निकाल पाए थे सामाजिक बंधनों की आंखों मे धूल झोंककर । रात मुस्कुरा रही है,,, उन नीजि क्षणों को अभिव्यक्त कर के। हाथों से छुआ नही पर आंखें छू गई थी हर भाव को,,,,,,,चित-परिचित एहसासों की मिलन बेला,,,,रात को रजनीगंधा सी महका गई।
       शाम की प्रतीक्षा थी, लोगों की जमजमाहट के बीच नज़र बचाकर आंखे चार हो जाने की आशा थी,,,उस रात के लिए श्रृंगार करने की भी बड़ी उत्सुकता थी,, बालों का जूड़ा, आंखों मे कजरा,माथे की बिन्दिया ,सब कुछ लगा कर आइने से पूछता सजनी का मन,,,,,बोल ना,,लगती हूँ ना पिया की प्यारी ???? प्रीत का सुर्ख लाल लिबाज़ पहन जब रात सीढ़ियों से नीचे उतरी,,,, सामने ही उनको बैठा पाया,,,उनकी एक नज़र जैसे पल भर मे ह्दय गति को सामान्य से दुगुना कर गई।
       बदली मे छुपते चाँद से तुम और चाँद की चितेरी रात की खोजती नज़र,,,,वो मुस्कुरा के देखना,,,अभी भी उच्छावासों की गति को बढ़ा देता है। बिहारीदास जी का दोहा जैसे इसी परिवेश को व्यक्त करता हो,,,,
"कहत नटत रीझत-खीजत मिलत खिलत लजियात,
 भरे भौन मे करत हैं नयनन् हूँ सो बात।।"
       एहसासों का चाँद अपनी प्रिये को देखकर चमक उठा,उसकी प्रीत की चाँदनी में रात सवंरने लगी,चाँद की चाहत भरी नशीली नज़र रात को मदमस्त करने लगी वह महक उठी,चहक उठी,झूम उठी,थिरक उठी,,, चाँद की हर मुस्कुराती नज़र को अपनी आगोश मे भर गुनगुना उठी,,,,"लग जा गले कि फिर ये हसीं रात हो न हो,,,,,,,!"
       अविस्मरणीय यादों के सितारों से झिलमिलाती संगीतमयी रात न जाने कितनी रातों को थिरकाएगी??? ज़बां से कम नयनों से खूब बोली वह रात,,, एहसासों को छू तो न सकी,,,नयनों के आलिंगन मे न जाने कितनी बार खिली वह रात,,,,!!!! उस रात की चमक को पलकों मे बंदकर सो गई आज की रात,,,,शायद सपनों मे फिर से महफिल सजे 'एहसासों' से लिपट फिर से झूम जाएगी रात,,,,,,,,,,!!!!
        

गुरुवार, 15 दिसंबर 2016

विश्व रूप सा प्रेम तुम्हारा

                      (चित्र इन्टरनेट से)

             हे प्रियतम! विश्वरूप सा वृहद प्रेम तुम्हारा
             मेरा सर्वस्य तुमसे ही उत्पन्न है,
             तुममे ही विलीन हो जाएगा।

            हे प्रियतम! दिव्य प्रकाशपुंज सा प्रेम तुम्हारा
            मेरे अन्तर्मन का तम तुमसे ही ज्योर्तिमय है,
            तुममे ही प्रकाशित हो जाएगा।

            हे प्रियतम! महासागर सा धीर-गम्भीर प्रेम तुम्हारा
            मेरी समस्त भावनाएँ तुमसे ही तरंगित हैं,
            तुममे ही समाहित हो जाएगीं।

            हे प्रियतम! हिमाद्रि श्रेणियों सा उच्च प्रेम तुम्हारा
            मेरी समस्त आकांक्षाएँ तुमसे ही पराकाष्ठित हैं,
            तुममे ही स्थिर हो जाएगीं।

           हे प्रियतम! प्रचंड वायुवेग सा प्रवाहित प्रेम तुम्हारा
           मेरा सर्व उल्लास तुमसे ही गतिमान है,
           तुम्हारे आवेग मे ही बह जाएगा।

          हे प्रियतम! दिव्य अलौकिक अनुभूति सा प्रेम तुम्हारा
          मेरा अस्तित्व तुमसे ही दीप्तमान है
          तुममे ही चिरनिद्रा मे लीन हो जाएगा।

मंगलवार, 13 दिसंबर 2016

जीवनसाथी

                        (चित्र इंटरनेट से)

              जीवन की जटिलताओं से परे,जीवन की                     सरलताओं को आत्मसात कर साइकिल पर                  सवार दो मतवालों की मस्ती😊😊*****


                 एक दीवानी,,,बस आपकी
                 और कहे पगला ,,,,तुम्हारा
                 चली जीवन की साइकिल
                  गुनगुनाए,,,,तरा-रा-राऽऽ

                  उबड़-खाबड़ से हैं रास्ते
          :       कभी तेज़ कभी आहिस्ते
                  धड़कने बजती ट्रिगं-ट्रिंग
                  दो राही चले,,,हसंते-हसंते

                  बैठूँ मै रखके, कांधे पे हाथ
                  झूमे मस्ती में दिलों का साथ
                  लहराती चली रे साइकिल!!!
                  गीतों का रेला बन गूजे रे पाथ
               

                   एक दीवानी,,,बस आपकी
                   और कहे पगला,,,तुम्हारा
                   चलो क्षितिज के पार चलें
                   हम गुनगुनाते,,,,तरा-रा-रा।


गीतांजली ,,, जीवन संगीत

(प्यारी गीतांजली को चित्र के लिए आभार)


             किसकी तरंगित बातें आपकी चिलमन झुका गई,
             गाल हुए सुर्ख,और लबों पर मुस्कुराहट छा गई।

             चाँद सी चमक चेहरे की एक दास्तान सुना गई,
             कांध पे सिमट जुल्फ , काली घटा शरमा गई।

             खनक उठी आब-ओ-हवा आपकी आवाज़ से,
              पायल पहन हसरत कोई माहौल को झनका गई।

             बातें तेरी संगीत सी किसको यूँ गुनगुना गई,
             बन के किसकी गीतांजली सरगम नई बना गई ।

             छलक रही रूपमाधूरी सौन्दर्य सरिता बहा गई,
             भावों की लहर उठे सुनहरी छटा बिखरा गई।
 
             किसकी तंरगित बातें आपकी चिलमन झुका गई,
             गाल हुए सुर्ख,और लबों पर मुस्कुराहट छा गई।

गुरुवार, 8 दिसंबर 2016

नेहा के नेह मे कुछ पंक्तियां ,,,

          (चित्र के लिए प्यारी नेहा को आभार)

              आपने तो अल्फाज़ों को महका दिया,
              गुलाब से चेहरे से जब नक़ाब हटा दिया।

              एक तो गुलाब उस पे शबनम सा शबाब,
              ठगे से हम, देखते रहे  हुस्न का आब ।

                 सुनहरी धूप सा खिला नूरानी चेहरा,
                 माथे पर लहराती जुल्फ़ों का पहरा।

                 कमान सी भौओं बीच तारे सी बिन्दिया,
                 ख्वाबों में खोई निगाहें उड़ाए निन्दिया।


                 सुर्ख होंठों पर बिखरी तब्बसुम सी नमी,
                 मासूम सी सूरत जैसे कोई खिलती कली ।

                 हुस्न की तासीर ने फितरत को बहका दिया
                 गुलाब से चेहरे से जब नक़ाब हटा दिया ।

मंगलवार, 6 दिसंबर 2016

पिया का संदेस



                  पिया की बावरी बन गई अंखियां,
                  करेजवा को न भाएं अब प्यारी सखियां।
                  जाने हूँ न ठाह इनकी पिया का देस,
                  जिया को ठंडक पहुँचाए तोहरा संदेस।

रात रोए बिरहन सी,दिन लगे भार,
भाए नही मोहे कोई साज न सिंगार।
तन-मन सब वार तोह पे जोगन बन जाऊँ,
तुम श्याम पिया मेरे मै मीरा कहलाऊँ।

              जादूगरनी तुम कहो,मै कहूँ चितचोर,
              तुम संग उलझ गई सजन जीवन की डोर।
              मांग मे नही सिंदूर तेरे नाम का तो क्या,
              आत्मा ने रच लिया तेरे संग ब्याह।

सागर सी प्रीत तेरी मै सरिता की धार,
जनमों से हूँ मै सजन तेरे हिया का हार।
जाने हूँ फिर भी ठाह नही पिया का देस,
जिया की ठंडक एक तोहरा संदेस।।