मंगलवार, 30 जुलाई 2019

जागती आँखों का ख्वाब



आसमान से गिरा
और ज़मीन से टकरा कर
चकना चूर हो गया,,,
इतने बारीक हुए टुकड़े
के फिर जुड़ना
नामुम्किन सा हो गया,,
वो कोई तारा नही था,,
वो तो 'एक ख्वाब' था
जागती आँखों का,,
और ये सब मेरी आँखों के
सामने हुआ,,
मैने उसे बादलों की
आगोश में पनपते देखा था,,
उगते सूरज की अलसाई
नरम धूप में उगते देखा था,,
चाँद की हथेली पर
अपने नूरानी चेहरे
को थमा
चाँदनी सा बिखरते देखा था,,
नदी की लहरों पर
बरसते सावन सा
झूलते देखा था,,
जागती आँखों
का वही ख्वाब,
जिसके हर किरचें
में एक सख़्त सा दर्द है
जो  हर नर्म एहसास
से डरता है,,
वो 'प्रेम का जला है
नेह भी फूँक-फूँक
के पीता है' ,,,,
कंकरीट ही बिछाता है
पत्थर ही चबाता है
वह प्रेम का जला है,
नेह भी फूँक फूँक के पीता है
फूँक-फूँक के पीता है
वो जागती आँखों
ख्वाब,,,,

लिली😊

रविवार, 28 जुलाई 2019

बच्चों के लिए देशगीत

                    (चित्राभार इंटरनेट)

आन तिरंगा है
शान तिरंगा है
हर भारतवासी का अभिमान तिरंगा है

आज़ाद चमन के हम
फूल निराले हैं
हीमा सी मृग के हम
स्वर्ण शिवाले हैं
दृढ़ निश्चय की मन में बहती गंगा है

शान तिरंगा है
आन तिरंगा है
हर भारतवासी का अभिमान तिरंगा है

प्रगति करें अविरल
नही रुकने वाले हैं
ले चंद्रयान के पंख
बस उड़ने वाले हैं
उन्नत भारत का आगाज़ मृदंगा है

शान तिरंगा है
आन तिरंगा है
हर भारतवासी का अभिमान तिरंगा है।

रविवार, 21 जुलाई 2019

हाँ,,मै ही ज़िन्दा हूँ


#हाँ_मै_ही_ज़िन्दा_हूँ

चिथड़ों मे लिपटा
सरदी,गरमी,बरसात
हर मौसम में
सड़क के किनारे
फुटपाथ पर
दुकानों के शेड तले
और आजकल
बरगद के पेड़ के नीचे
अपना डेरा जमाए है
खुद में बड़बड़ाता
खोखली निगाहों में
ना जाने क्या कुछ भरता
जी रहा है,, या मुर्दा है?
नही पता !
खुड़दड़ी सड़क पर
अपनी पीठ को
घस घसकर खुजलाता
मंदिर के पास लगे
नलके के नीचे
जब तब खुद को भीगाकर
गरमी को दुलारता
वो जी रहा है,,या मुर्दा है?
नही पता!
एक कम्बल और
गुदड़ी की पोटली
सी सम्पत्ति
को खुद से चिपकाए
वो खुद गठरी बना
निश्चिंत सोता मिलता है
अक्सर मुझे
और मैं,,,,,
डबल बेड के आरामदायक
फैलाव में फैलकर भी
ठंडे एसी के सुकून
भरे माहौल में भी
बेचैन,,थकी,,और उलझी हुई!!!
शायद जीवन तो मै ही जी रही
वो तो मुर्दा है,,!
अपने होने का कारण
खोजती
लक्ष्यों की लिस्ट बनाती
उन तक पहुँचने
के पथ खोजती
हाँ,,,, मै ही ज़िन्दा हूँ,,
लिली😊

मुझे तुम याद आते हो,,


मुझे तुम याद आते हो
ढली शामों संग आते हो

वो गलियां फिर चहकती  हैं
दबी हसरत मचलती हैं

मुझे तुम  याद आते हो,,,

ये दूरी बन गई क़ातिल
होकर भी नही हासिल
कहो किसको कहें जाकर
अकेले हैं मिलो आकर

मुझे तुम याद आते हो,,,

जुड़े दिल, फिर भी टूटे हैं
तसव्वुर में भी छूटे हैं
तुम्हारे साथ के सायें
ना जाने रूठे रूठे हैं

मुझे तुम याद आते हो,,,

मै सावन की घटा घिरती
बरस कर भी मैं सूखी हूँ
भींगे दिल मोहब्बत में
वो मंजर फिर नही आते

मुझे तुम याद आते हो,,