मंगलवार, 30 जुलाई 2019

जागती आँखों का ख्वाब



आसमान से गिरा
और ज़मीन से टकरा कर
चकना चूर हो गया,,,
इतने बारीक हुए टुकड़े
के फिर जुड़ना
नामुम्किन सा हो गया,,
वो कोई तारा नही था,,
वो तो 'एक ख्वाब' था
जागती आँखों का,,
और ये सब मेरी आँखों के
सामने हुआ,,
मैने उसे बादलों की
आगोश में पनपते देखा था,,
उगते सूरज की अलसाई
नरम धूप में उगते देखा था,,
चाँद की हथेली पर
अपने नूरानी चेहरे
को थमा
चाँदनी सा बिखरते देखा था,,
नदी की लहरों पर
बरसते सावन सा
झूलते देखा था,,
जागती आँखों
का वही ख्वाब,
जिसके हर किरचें
में एक सख़्त सा दर्द है
जो  हर नर्म एहसास
से डरता है,,
वो 'प्रेम का जला है
नेह भी फूँक-फूँक
के पीता है' ,,,,
कंकरीट ही बिछाता है
पत्थर ही चबाता है
वह प्रेम का जला है,
नेह भी फूँक फूँक के पीता है
फूँक-फूँक के पीता है
वो जागती आँखों
ख्वाब,,,,

लिली😊

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