रविवार, 20 मई 2018

मुझे एक पेड़ बना देता,,,

                      (चित्राभार इंटरनेट)

तपती धूप में
अकेला,,,
घनी छांव लिए
वो शजर अलबेला,,

कौन उसकी झुलसती
शाखाओं को सिंचता है,,?
वो तो खुद ही की जड़ों से
पाताल सें नमीं खींचता है,,,,
मुसाफ़िर दो घड़ी सुस्ता के
नर्म निगाहों से सहला गए,,
वो काफ़िर सा अपनी ही
दरख़्तों को भींचता है,,

कोई चेहरा नही उसका,
जिसपे उभरते जज़्बात पढ़ती,,,,
डाल से झरते पीले पत्तों की,
अनकही पीड़ा समझती,,
मेरे मालिक!
तू मुझे भी एक,
पेड़ ही बना देता,,
मेरे अंदर की कचोटों को
भूरे तने की खरोंचों सा
सजा देता,,,
सीने का लहू सूखी टहनियों
सा गिरा देती,,
कोई बेघर सी चिड़िया
उसे अपने घरौंदें में जगह देती,,

कोई बवंडर सा आता तूफान,
मेरे वजूद को हिला देता,,,,
मेरे थकते हौंसलों को
अपनी आगोश में गिरा लेता,,,

मेरे मालिक!!तू मुझे भी
एक पेड़ बना देता,,,,,,,

शनिवार, 19 मई 2018

कृष्ण गीत

                             (चित्राभार इंटरनेट)

मन में मुरतिया श्याम की बसाय के
चली राधा पनघट सुध बिसराय के
तन कुंज लता सम लहराय के,,
दृग अंजन में खंजन छुपाय के,,

ल्यों मनमोहन मोहे अंग लिपटाय रे!
रहो हरित बदन चटख कुम्लाय रे!
पग डगमग भटक कित जाय रे!
मदन मन-मृग मोहित तोहे बुलाय रे,,!

गौरैया हिय की अकुलाय हो!
पैजनिया पग की सुस्ताय हो!
पिय प्रीत गागर छलकाय हो!
भरो अंक हरी काहें भरमाय हो!!
लिली 🌿

टेसू

                         (चित्राभार इंटरनेट)


टेसू मेरे मन के
चटखीले से
और
तुम आसमानी
कैनवास बने
मुझे अपने पटल
पर सजाए
चित्रकारी की ऐसी
मिसाल ना मिले शायद
रख लूँ सहेज कर
सदा के लिए
अपने दिलो दमाग़ के
एलबम में
ना जाने कब,,
मौसम बदल जाए
और टेसू झर जाएं
पर
सुनो ना
तुम अपना
आसमानी कैनवास लिए
ऐसे ही फैले रहना
मेरी शुष्क शाखाओं
को अपने पटल पर
सजाए
मैं फिर खिल जाऊँगीं
तुम्हारे नीलाभ की
आगोश का स्नेह
पाकर,,

गुरुवार, 3 मई 2018

तुम्हे तो चले ही जाना है,,,,

             (चित्राभार इंटरनेट)

आज एक अपराध करने जा रही हूँ हृदय में दुस्साहस भर,,, कवि गुरू रविन्द्र नाथ जी की एक रचना ' तुमी तो शेई जाबे चोले' को हिन्दी में व्यक्त करने का,,, क्षम्य नही है यह दुःसाहस पर मन किया तो कर गई,, तो अपने दोनो कानो को पकड़ ,,आपके समक्ष रचना प्रस्तुत करती हूँ,,   


हे प्रियतम्!!
तुम्हे तो चले ही जाना है
शेष का अवशेष भी
ना बाकी रहना है,,,,

हे प्रियतम!!
तुम्हे तो चले ही जाना है,,,,,
मेरे हृदय को व्यथित कर
तुम तो चले जाओगे,,,
पर अंतस में सब,,
जीवित ही रहना है,,
 ,,,के,,,
हे प्रियतम!!
तुम्हे तो चले ही जाना है,,,,

हे पथिक!!
अलमस्त सरीखे,,
आ पहुँचे मेरे कुंजहृदय में
निज चरन से अब,
दल दो,, जो भी,,
ढक लूगीं निज अंतस रंध्रों में,,
सांझ ढले आधार तले
बैठ अकेली  हृदय भरे,,
निज व्यथा सहेजूँ,,
धर मधुर करे,,
विदा-बंसुरी के करूनाते स्वर,
कर देगें मग्न,,
संध्या अंबर,,,,
दृगजल में मैं,,
दुख की शोभा भर,,,
रख दूँगीं सबकुछ
नूतन कर,,,

क्योंकि,,

हे प्रियतम्!!
तुम्हे तो चले ही जाना है