मंगलवार, 22 सितंबर 2020

तलब और ताल्लुक


 

अभी पढ़ा कहीं-"तलब हो या ताल्लुक,गहरा होना चाहिए''। तलब और ताल्लुक के बीच दौड़ने लगी सोच। कोई भी ताल्लुक तलब से ही बनता है। उसमें गहराई का गर्त होना ज़रूरी है ताकि ताल्लुक बनते बनते जब तलब कम होने लगे तब चाह कर भी ताल्लुक के गर्त से निकला ना जा सके। क्योंकि तलब तो निकल पड़ती है एक नए सफर पर, नए ताल्लुक खोजने। जो एक इकलौता इन सब अफ़रा-तफ़री के चक्की के दो पाटों में पिसता है वो है 'दिल'  बुरादा-बुरादा हो कर रह जाता है। 'पा' जाना मंज़िल नही होती शायद,,,, 'मंज़िल की तलाश' एक सबसे बड़ा छलावा। ठहर अगर गर्त में गिरने का नाम है तो फिर 'गहराइयों' से बचना ही अच्छा। हर तलब को लहर मान कर किसी तिनके की तरह ऊपर-ऊपर तैरते रहिए। तलबों के समन्दर बनाइए। ताल्लुक की गहराई अकेला कर देती है। कुछ महकती स्मृतियों के जलचर इर्द-गिर्द फैलाकर। जो आपकी भाषा भी नही बोल पाते। मौन एकतरफ़े संवादों संग बड़ बड़ाते रहिए गर्त के एक कोन से दूसरे कोन तक।

   सामने एक छोटे से सेरामिक पाॅट में पानी भर कर कुछ लाल फूलों के गुच्छे सजा रखे हैं। अपने खाली समय में किताब पढ़ते हुए पूरी एकाग्रता संग, कभी-कभी कोई फूल 'टप्पप' की आवाज संग टेबल पर झरता है। मेरा ध्यान अपनी ओर खींच लेता है। मैं उस फूल को उठाती हूँ ,अपनी अनामिका से सहला कर हल्का सा मुस्कुराती हूँ और फूल को हौले से प्रेस कर किताब के पढ़ चुके पृष्ठ तले दबा देती हूँ। ये स्मृति का पुष्प है मेरी तलब के ताल्लुक बनने की धरोहर। जिसे मैं भी दबा देती हूँ किताब के सफ़ों तले। वे दबे रहेगें ऐसे ही। साल दर साल,,,रंगों में आ जाएगा एक भूरापन पर फिर भी वे दफ़्न रहेगें उन्ही सफ़ों के तले। उनकी नियति में मोक्ष ना जाने कब नसीब होगा......

तिनका बनना चाहता है मन आज़ाद लहरों के ऊपर तैरता ,,गहराइयों में दफ़्न कर लिया बहुत कुछ,,अब और नही।

लिली🍁


इच्छाएँ


 छोटी-छोटी सी इच्छाएँ हैं,

किसी रोज़ ढलती शाम
समन्दर  किनारे
रेत पर बैठकर
ताकें सूरज को
एक टक,,,,,,
किसी सुबह,किसी पहाड़ के
सबसे ऊँचे शिखर पर
जहाँ सुनाई दे
तुम्हे मेरी
मुझे तुम्हारी साँसों
की कदम ताल,,
सूँघें हवा की हरी-गंध,
स्पर्श करें उगते सूरज की
स्वर्णिम किरण,
सुनें, नीचें दिखती
घाटियों की अनकही,,
रूह निकल कर तन के पिंजर से
बैठ जाए पीठ से पीठ
ठसा कर,,,
चाहना जाना चाहती है
सुदूर दक्षिण के
पुरातन गुहाओं, और मंदिरों
के प्राचीरों में
जहाँ सुनी जा सके
भग्न भित्ति चित्रों,
परित्यक्त देव प्रतिमाओं
के उच्छावास,,
देख सकें
चिर काल से बहते जलकुंड
शैवाल संग आलिग्न बद्ध
रह जाना चाहे
तन भी वहीं उन्ही पुरातन
गुहाचित्र एवं परित्यक्त देव प्रतिमाओं
संग,,
उनकी तरह ही जड़वत
आदि अनादि काल तक,,,,,,,,,,,,,
बताओ क्या इच्छाएँ मेरी
महत्वाकांक्षा सी प्रतीत होती हैं?
बोलो ?
लिली



बुधवार, 2 सितंबर 2020

बातें,,,

 


'बातें ' ढेर सारी भी नही 

और कम भी नही ,,

थोड़ी थोड़ी हर रोज़,, 

ना  कम ना ज्यादा

जैसे चाय में शक्कर 

और सब्ज़ी में नमक।

जार में रक्खी कुकीज़ को

हर रोज़ बस 

दो-दो कर के खाना

जैसे-

एक कप काॅफ़ी को 

छोटी-छोटी चुस्कियों में सिमटाना,,

हाँ, बहुत ज़रूरी है तेरा मुझसे

मेरा तुझसे किसी भी 'बात' पर

या तो उलझ जाना,,

या सुलझ जाना,,,,

जैसे धूप के पीले धब्बों से

दरख़्तों की दुखती पीठ

को सेंक जाना


बुधवार, 29 जुलाई 2020

दोहराव



दोहराव
*******
कान भी असहाय से
लाचारी में परदों को बाए
हर दोहराव को
प्रविष्टि देते जा रहे
'दोहराव'
वही एक सी बात,,
एक ही बात का
ना मुहँ थकते हैं
ना 'बातें' उकताती हैं,,
लकीर की फकीर सी
चलती हुई
बहुत गहरी धारियां बनाती,
जिसमें उनके खुद के ही पैर
धंस जाते हैं,,,
पर गन्तव्य प्रभावित नही होते,,
वे 'बेहया' से अपनी धुन में
अलमस्त,
हर दोहराव, का किसी
पीछे के गोदाम में
ढेर लगाते जा रहे।
अनगिनत मुहँ से निकली
एक ही बात
अनगिनत कानों तक का
सफर तय करती
एक ही बात
बार बार,,,,लगातार,,हरबार
खुद को दुहराती ,तिहराती
एक गोदाम में
कबाड़ की तरह जमा होती जाती हैं
लिली

बुधवार, 3 जून 2020

कुछ रोमानी ❤ गतांक से आगे,,

गौरी दी! ओ गौरी दी! कहाँ हो?
आवाज़ देते हुए अपर्णा ने अपना पर्स टेबल पर रख सभ्यसाची की दी हुई फोटोज़ वाला इन्वलप निकालने लगी।

गौरी दी- बोलो खुखूमाॅनी! क्यों पूरा घर सर पर उठा रखा है।
मै बुढ़ी इतना दौड़-भाग नही सकती हाँ,,गौरी दी ने थोड़ा रुसियाते हुए कहा।

अपर्णा -अरे तुम ऐसे कैसे बुढ़ी हो गई गौरी दी! (थोड़ा छेड़ते हुए चुटकी ली) सदाबहार लगती हो ।

गौरी दी - उफ़्फ़ इस लड़की का मै क्या करूँ ठाकुर !
अच्छा बोलो क्यों आफ़त मचा रखी है

अपर्णा एकदम फुदक कर बोली वही तो ,, तुम अपनी ही सुनाने में लगी हो मै तुम्हे ये फोटोज़ दिखाना चाह रही हूँ और एक तुम हो,,,,,देखो देखो,,,वो पिछले महीने सभ्या के साथ गई थी ना घूमने पहाड़ों पर ,,उसने कुछ तस्वीरें उतारी थी वही ले कर आई उसके घर से। बोलकर एक कर अपनी तस्वीर पहले खुद निहारती फिर गौरी दी की तरफ़ बढ़ा देती।

गौरी दी एकदम मुग्ध होकर हर तस्वीर देख रही थीं। बोली नज़र ना लगे मेरी खुखूमाॅनी को देखो तो कितनी खूबसूरत दिख रही।
  फिर कुछ सोचते हुए अचानक से बोली खूखूमाॅनी तुम ये कैमराबाबू से शादी क्यों नही कर लेती?
बोलो तो मैं कितना दिन तुम्हारी देखभाल करती रहूँगीं।
 मेरा भी तो उमर हो गया,,,,, तुम शादी बनाओं हाँ,,स्वर में एक ममत्वपूर्ण अह्लादित निवेदन सा भर गौरी दी बोलीं।
अपर्णा को फिर से फाजलामी सूझी - अच्छा गौरी दी ,, मान लो तुम्हारे कैमराबाबू से मैने शादी कर ली?
तो क्या कैमराबाबू वो सब काम मेरा कर देगें जो तुम करती हो मेरे लिए?
बोलो ना,,मै ऐसे घर को सर पर उठा लूँगीं तो वो तुम्हारी तरह मुझे प्यार से शान्त कर सकेगें??

गौरी दी- ने अपना एक हाथ सर पर पीटते हुए ओ माँ गो माँ ! एई मे टार मुखे कोनो कॅथा आटकाए ना( इस शरारती लड़की के मुहँ में कोई बात नही अटकती)
जो  मन में आता है बोल देती है।
और अपर्णा ज़ोर का ठहाका लगा कर हँस पड़ी।
गौरी दी थोड़ा खीझ गईं और भुनभुनाते हुए किचन की तरफ़ चल पड़ी - इस लड़की को कुछ समझाना माने दीवार से सर मारना ।

अपर्णा फिर से अपनी तस्वीरों को देखने लगी और खुद पर ही रीझने लगी। फिर उठकर दिनभर की थकान उतारने के लिए फ्रेश होने चल दी
___________________

स्टडी टेबल पर बैठ अपने कल के लेक्चर की तैयारी करने के बाद । उसने फ़्रिज से रेड वाइन गिलास में निकाली और बारमदें की चेयर पर आकर बैठ गई।
 उसको रह रहकर सभ्यासाची का वो चेहरा याद आने लगा,,,कैसे वो उसकी हर तस्वीर में असली अपर्णा को खोज रहा था। वो फिर से हँस पड़ी।
वाइन के छोटे छोटे सिप लेते हुए तारों से भरे आसमान को निहारती अपर्णा,,,,खुद को दुनिया का सबसे आज़ाद परिन्दा समझ जैसे हर तारें पर फुदकती फिर रही थी।
ना जाने कब छोटे-छोटे घूँट ग्लास की वाइन को खत्म कर गए।
फिर से उठकर वो ग्लास भर लाई,,,उसे अपने नज़रे के दायरे पर बिखरे हर तारे तक पहुँचना जो था।
हल्का सुरूर अब तक अपर्णा पर छा गया था। उसने फोन उठाया और सभ्यासाची को डायल किया।

फोन उठते ही वो बोल पड़ी- वाइन पियोगे? और हँस दी
सभ्यासाची - ओह तो मैडम वाइन पी रही हैं? पहले बताती तो आ जाता । तुम चाहती ही नही थी मेरे साथ इसलिए तो ऐसे इन्वाइट दे रही।
अपर्णा - मै होती ना तो आ जाती। वाक्य खत्म होते ही उसने प्रश्न दाग दिया - हे सभ्या शादी करोगे मुझसे?

सभ्यासाची - एकदम अप्रत्याशित हो गया,,थोड़ा सकपकाते हुए आश्चर्य से बोला - शादी !!
ये अचानक नया भूचाल कैसे उठ गया मैडम ?

अपर्णा - वो आज गौरी दी बोली के मै तुमसे शादी क्यों नही कर लेती? तो मैने सोचा पहले तुमसे पूछ लूँ,,,,,अब कल को मैं बारात लेकर अचानक पहुँच गई तुम्हारे घर तो वो भी ठीक नही होगा ना।
सभ्यासाची  से उसकी इस भोली सी मासूम बात पर हँसे बिना नही रहा गया। और वो दिल खोल कर खूब देर तक हँसता रहा।
दूसरी तरफ़ अपर्णा निःशब्द हो सभ्या की हँसी सुनती रही।

अचानक सभ्यासाची  रूका और बोला - हैलो! अपर्णा!
अपर्णा -सभ्या की हँसी में डूबी हुई बस हौले से बोली -" हूँ''
सभ्यासाची - ओह तुम हो मुझे लगा फोन डिस्कनेक्ट हो गया?
अपर्णा - तुम हँसते हुए कितने क्यूट लगते हो! मन करता है मैं बस तुम्हारी हँसी के समन्दर में गोते लगाती रहूँ।

सभ्यासाची - थोड़ा लजा सा गया फिर समज होते हुए बोला सोना नही है? कल काॅलेज बंद है क्या तुम्हारी शादी की खुशी में ? बोल सभ्या फिर हँस पड़ा।
अपर्णा - ''अरे ना बाबा काॅलेज तो जाना है ''बोलते हुए उसने मोबाइल की लाइट में घड़ी का समय देखा 12.30 बज चुके थे। अच्छा चलो अभी रखती हूँ । इस वीक एन्ड आती हूँ तुम्हारे घर फिर 'शादी की प्लैनिंग 'करते हैं वाइन और डाइन संग । गुडनाइट
सभ्यासाची - गुड प्लैनिंग ! डन !  गुडनाइट




शनिवार, 30 मई 2020

कुछ रोमानी

                    (चित्राभार इन्टरनेट)

#कुछ_रोमानी❤

अपर्णा काॅलेज जाने की तैयारी में
आइने के सामने गुनगुनाते हुए कानों में सभ्यसाची के दिए नीले रंग के झुमको को पहनती हुई,,,
कई बार यूँ भी सोचा है,,,
हूउहूहूऽऽऽ  मन की सीमा रेखा है
ललललाऽऽऽ उड़ने लगता है,,
तभी बेड पर रखा मोबाइल बज उठता है।
एक शरारत भरी मुस्कान के साथ उठकर
फोन के पास आती है।
स्क्रीन पर लुगबुगाते नाम को देख,,हँसते हुए-" लो शैतान को सोचो और शैतान बज उठता है''😃😃😃
रिसीव करते हुए -'' हाँ बोलो पता है ना काॅलेज जाने का समय है। अब जल्दी बोलो लेट हो रहा है मुझे''

दूसरी तरफ़ से - सुनो शाम को काॅलेज से लौटते वक्त मेरे यहाँ आ सकती हो? टाइम है?

अपर्णा - अरे हुज़ूर ये सारा टाइम तो बस आपके लिए ही है,,, अपने लिए तो बस आपको रखा है हमने''
बोलकर खनकती सी हँसी के बाद बोली - ''ठीक है आ जाऊगीं '' अब रखो बाय मिलते हैं शाम को,,

दूसरी तरफ़ से- बाय।

जल्दी से एकबार फिर खुद को निहार कर आइने में फिर से नीले झुमकों को दुलाते हुए
 "अन्जानी आस के पीछे
  अन्जानी प्यास के पीछे
ललललाऽऽ दौड़ने लगता है''

इतने में कार स्टार्ट की अवाज़ और हवा जैसे उस बहके से मन के पीछे दौड़ पड़ी लपकने को,,,।
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ठीक चार बज़े डोर बेल बजती है।
सभ्यसाची होंठ में सिगरेट दबाए हाथों में कुछ तस्वीरें देखता हुआ दरवाजें की तरफ़ बढ़ हाथों से चिटख़नी खोलता है,,पर नज़रे तस्वीरों में तल्लीनता से गड़ी हैं।

दरवाज़ा खुलते है अपर्णा की चहक से उसकी तंद्रा भंग होती है।
''हाय मेरे सिगरेट के कश में मयकश़ हुए चाँद ! कैसे याद किया अपनी चाँदनी को?'' बोल कर हसँ पड़ी

सभ्यसाची- भीतर आओ कुछ देना था तुम्हे ।
  कुछ लोगी? चाय /काॅफ़ी/ कोल्ड डिंक?
अपर्णा - कुछ नही चाहिए तुमको पीकर ही काम चल जाएगा😉।
सभ्यासाची - उफ़्फ़ तुम भी ना एकदम बवंडर हो।
अपर्णा- अच्छा! कहो तो ले चलूँ उड़ा कर??
सभ्यासाची के होंठो से सिगरेट खींच कर दो कश खींचे और सामने पड़े सोफ़े पर बेपरवाह से लेट गई,,,
''आह ! ज़िन्दगी इस कश सी बेपरवाह उड़ जाए ,,
दूर बहुत दूर,,घुल जाए आसमानों में
बन जाए नीली तुम्हारे इस झुमके की तरह,,,,

सभ्यासाची- थोड़ा चुप करोगी अब तो कुछ दिखाऊँ ?
अपर्णा -मुहँ सिकोड़ते हुए 😏 तो दिखाओ ना मै कहाँ कुछ कह रही,,हुह्हं

 देखो तुम्हारी कुछ तस्वीरें उतारी थीं ना पिछले महीने,,,
कल रात उनको डेवलप किया,,,
बोलते हुए सेन्ट्रल टेबल पर बिछा दी सारी तस्वीरें,,,
अपने लिए एक और सिगरेट जलाते हुए सभ्यासाची
एक एक को उठाकर देखने लगा।
जैसे कुछ समझना चाह रहा हो,,
कुछ छिपा हो हर तस्वीर में,,

अपर्णा शरारत लिए उसे निहारती रही और तपक कर बोली- मुझे बुलाया है दिखाने के लिए तो मुझे दिखाओ
तुम तो खुद ही उलझे हुए हो।

सभ्यासाची- ओह साॅरी ! 😃 देखो ,,देखो तो ज़रा तुम हर तस्वीर में अलग दिखती हो! हैना!
मुझे हैरत होती है,,
मै समझना चाहता हूँ,,
इन सब अपर्णाओं में असली अपर्णा आखिर है कौन सी?
कहते हुए उसकी आँखें हर तस्वीर की परत दर परत हटा कर खोजती फिर रहीं थीं,,,,

अपर्णा मुग्धा सी बस सभ्यासाची को एकटक निहारती रही,,,,, अपलक,,,,
सभ्यासाची - रहस्य हो ! एक रहस्य का भंवर!

अपर्णा - ''रहस्य में ही सौन्दर्य होता है बाबूमोशाय,,, और सौन्दर्य के रहस्य को बने रहने देना चाहिए।''
😃😃😃😃😃😃😃😃

''चलो कर दो मेरा सौन्दर्य मेरे सुपुर्द''
कह कर सारी तस्वीरें अपर्णा ने इकट्ठा कर अपने पर्स में रखते हुए आगे कहा
-'' और तुम उलझे रहो इस रहस्य के भवंर में ''
चाहती हूँ के कभी इस रहस्य का उद्घाट्य तुम ना कर पाओ,,
और मै सदा बनी रहूँ 'सौन्दर्य' तुम्हारे लिए
जन्मजन्मान्तर तक'',,,,
 तेज़ी से गाल पर एक स्नेहासिक्त चुम्बन रख 'मिलते हैं'' बोल वो निकल गई,,,

सभ्यासाची  रहस्य+सौन्दर्य सौन्दर्य +रहस्य = अपर्णा करता सोफ़े पर सिगरेट के कश संग डूब गया,,,
लिली😊

रविवार, 26 अप्रैल 2020

लाॅकडाउन


लाॅक_डाउन
🌿🌿🌿🌿🌿

बरामदे में बैठ
आसमान में उड़ते परिन्दों की उड़ान देखना
या फिर,
किसी पेड़ की शाख पर बैठे तोते,बुलबुल,गौरैया आदि
के चहकते संवाद सुनना,
कब एक लहर आ जाए हवा की
और लहरा जाती है पेड़ों पर उगी
हरियाली मुस्कान,,
तो कहीं
लुक छुप कर धूप पड़ रही होती है
किसी पात के चेहरे पर
और वो चमक उठती है शरमा कर , कनक जैसी
और ये गिलहरियाँ तो ,,,,
बहुत बातूनी होती हैं,,
उफ़्फ़ सारा दिन किटिर-किटिर करती,,
एक जगह टिकना तो इन्होने  जैसे सीखा ही नही,
दौड़ती फिरती हैं चारो तरफ़,,
कुछ नही तो,, अनायास ही मेरी
अंगुलियां सहला देती हैं रंगबिरंगे सेरामिक पाॅट मे लगे
कोमल पौध को,,मुस्काते हुए
या फिर चश्मा चढ़ाकर,,
न्यूज़ पेपर में पढ़ने लगती हूँ
देश दुनियां के जाबाज़ों के किस्से
कैसे कोई बाहर लड़ रहा है
पूरी मानवता को बचाने के लिए,,
और कैसे कोई
घर में बंद है उन जाबाज़ों का हौंसला बढाने के लिए,,
जो अब तक खुद को भूल
भटक रहे थे दुनियावी शोरगुल में
आज मिल रहे खुद से,,
और हैरत में हैं,
,खुद में छुपी नायाब प्रतिभाओं
से मिल,,
'लाॅक डाउन' में तो बस मेरा जिस्म कैद है
ईट पत्थरों की दीवारों में,,
मन तो बरामदे में बैठ हर 'लाॅक' को तोड़
दुनिया जहां की सैर कर आता है,,,
लिली😊

बुधवार, 11 मार्च 2020

एक सच



'पांव'
अगर खोल कर
रख दिए जाए,
तो ज़बान से भी चला जा सकता है।
'हाथ'
अगर उतार कर
सहेज लिए जाएं
तो शब्दों को झरा कर
बहुत कुछ इधर से उधर
हटाया बढाया
जा सकता है।
एक सच जाना है,,,,
दुनिया जितनी खूबसूरती से
'ज़ुबान' चलाकर चलाई
जा सकती है,
हाथ-पांव चलाने से नही चलती,,
बस कुछ टाट के पैबन्द
ही लगा पाती है
सपनों की सुनहरी रेशमी चादर पर,,
लिली😊

गुरुवार, 20 फ़रवरी 2020

ॐ नमः शिवाय

                                                                   (चित्राभार इंटरनेट)

🌺🌿ॐ नमः शिवाय 🌿🌺

जो करूँ दुग्ध अभिषेक पहले
दूँ मधु से लेप हौले
फिर मलूँ घृत स्नेहल
धर धतुर के पुष्प उज्जवल
बेल पत्र की माल गुथ कर
उर सजा दूँ भोले शंकर
जड़ को चेतन क्या करोगे?
मुझको अपनी शरण लोगे?

जो समर्पित भाव लेकर
सत अर्पणा का स्राव लेकर
                                     दूँ तपा कई जन्म अपने
                                    तज दूँ सारे स्वार्थ-सपने
                                    बन अघोरी घोर त्याक्ता
                          धर योग तेरी साधना का
                                  सब युग्म बंधन खोल दोगें?
                                  मुझको अपनी शरण लोगे?

                                    मथ रही हूँ भव समन्दर 
                                 उठ रहे मणि अमि बवन्डर
                                 विष का सोता रिस रहा जो
                                 तुम सा उसका पान कर लूँ
                                     छोड़ सारी मोहमाया
                               मैं कंठनील का ध्यान धर लूँ
                                  शव को मेरे शिव करोगे?
                                 मुझको अपनी शरण लोगे?
लिली🌿