मंगलवार, 23 अक्तूबर 2018

तुम सूर्य हो मेरी सृष्टि के,,

                            (चित्राभार इंटरनेट)

तुम ना देह हो,
ना देह पिंजर में कैद प्राण,,
तुम तो सूर्य हो मेरी सृष्टि के,,
तुमसे ही उजास पाता है मेरा हर कोना,,
कभी जो छुप जाते हो तुम सघन मेघ बिच,
तड़प उठती है मुझ पर पल्लवित होती
हर जीवन लीला,,
शिशिर के भयानक प्रकोप से,
सिकुड़ जाती है,
जम जाती है बड़े-बड़े शिलाखंडों सी,,,
तुम ज्येष्ठ की कड़कती रोध बनते हो,,
तो मैं मुस्कुरा कर वाष्पित कर देती हूं
अपना नेह जल,,
और बरस कर शान्त कर देती हूं तुम्हे,
फिर तुम संग सावनी फुहार में भींग कर,
हरितिमा लिए नवयौवना सा, लहलहा उठता है,
मेरा रोम-रोम, मेरा अंग-प्रत्यंग,,,,
कहीं पढ़ा था मैने,,,,
"कुछ लोग ज़िन्दगी में नही होते,,,ज़िन्दगी होते हैं,,",,,
तुम से जुड़ कर सही अर्थों में इस वाक्य का
मर्म पहचाना💖
लिली🌿

यथार्थ

                       (चित्राभार इंटरनेट)

#यथार्थ
🌵🌷🌵🌷

ऊपर वाले का
करिश्मा,,
क्या कहिए,,!!

दिमाग़ बनाया
दिल बनाया,,
फिर
पेट बना दिया,,
और
आकार इसका
दिल और दिमाग़
से थोड़ा नही,,
बहुत बड़ा बना दिया,,
फिर क्या था,,,,
पेट भरने के लिए,,
दिमाग़ ने सोचना,,
और
दिल ने धड़कना शुरू कर दिया,,

दिमाग़ ने खिलाफ़त की,,
तो
पेट की भूख ने आकार बढ़ा लिया,,
दिल ने बग़ावत की
तो
दिमाग़ ने उसे समझा दिया,,
जीत आखिर पेट की हुई,,

ख़याल,सोच,एहसास,जज़्बात
अब रोटी के निवाले
से ही चलते हैं,,
भावनाओं के पाचक रस
भी पेट की चौखट पर
मथ्था टेक के निकलते हैं,,,
लिली😊

बुधवार, 10 अक्तूबर 2018

कविता,,हम स्त्रियों सा बिहेव क्यों करती हैं,,,,,,,?

                          (चित्राभार इन्टरनेट)

आज एक बहुत ही खूबसूरत कविता पढ़ी,,और दिन ब दिन कविताओं पर बढ़ती मेरी आसक्ति पर आज कुछ ऐसी अभिव्यक्ति निकल पड़ी,,
🌿🌷🌿🌷🌿🌷🌿🌷🌿🌷🌿🌷🌿🌷🌿

हर कविता यही चाहती है,,
'सम्पूर्ण एकाधिकार",,,,
'उस पर,,,,,
जिसे वह चाहती है'!!

धीरे-धीरे जकड़कर
कैद कर लेना चाहती है
उसकी सोच,,,उसका शरीर,,
उसकी नींद,,,,उसका चैन,,,
उसका हास्य,,,उसका रुदन
उसकी रुचि,,उसकी अरुचि
उसके अस्तित्व के हर पोर
में फंसा कर अपने
'सम्पूर्ण एकाधिकार' की जड़ें,,
'#लाॅक' कर देना चाहती हैं,,,,

फिर भीड़ में,,एकान्त में,,
जड़ में,,,चेतन में
प्रस्फुटित अंकुर सी
आतुर दृष्टि लिए,,
सदा यही एक धुन
सुनना चाहती हैं,,,,,

"तुम मेरी हो!!"
"तुम मेरी हो!!"
"तुम मेरी हो!!"
भले ही होंठ हिला
कर कहने में
हिचकिचाती हों,,,
पर कहने से भी चूकती नहीं,,,,
हर बार नए रूपधर
समर्पिता सी ,,
बिखर जाती हैं
हृदय के नरम बिछौने पर,,

कोई बताएगा मुझे,,,,,,,
ये "कविताएं भी क्यों,,
हम 'स्त्रियों' जैसा '#बिहेव'
करती हैं?????"
🤔🤔😄😄

लिली🌿🌿

मंगलवार, 2 अक्तूबर 2018

ये वही तुम हो,,,,,,?


                     (चित्राभार इन्टरनेट)

ये वही तुम हो,,,,?
,,या ,,
मैं अब वैसी ना रही?

 खिंचने लगीं ख़ामोशियां?
,,या,,
बे-चैनियां वैसी ना रहीं?

सरक गया सूरज भी,
नज़रें बचा कर उफ़क में
 रात भीं तो सो गईं
वो भी तड़पती ना रहीं,,,

ये वही तुम हो,,?
,,या,,,
मैं अब वैसी ना रही,,?

हसरतों की टकटकी,
पलक सी झपकने लगीं,,
इन्तज़ार भी थक चला,
लौट कर,न जाने कहीं??

चौखटें मायूस सी,
सूखी नज़र लिए खड़ी,
आस फिर भी एक टक
सूनी गली तकने लगीं,,,

ये वही तुम हो,,?
,,,या,,,
मैं अब वैसी ना रही??

लिली🌿