ऐ मेरे एहसासी दुनिया के हमसफ़र!!
मेरी क़लम की स्याही,,
मेरे काग़ज की सफ़ेदी,,
तुझे रोज़ लिखती हूँ
"रोज़ नामचे" की तरह उसपर,,,,
कितने नए 'शब्द' देता है तू
और मैं पूरे हक़ से उड़ाती हूँ
तेरी 'तनख्वाह' की तरह,,,
कोई 'अमृता' शायद मुझमें भी
पनपने लगी है ,,,
बड़ी ख़ामोशी से,,,,,
करने लगी हैं ख्वाहिशें,,
जिस्मे से परे कहीं क्षितिज
के उसपार तुझसे मिलने की
हसरत हो रही हावी,,,,
घुलकर होने को एकसार ,,,
तब कलम से नही ,,,
लिखूँगीं अपनी अंगुलियों से तेरे
सीने पर अपनी कसमसाती
मोहब्बत की नज़्म को,,,
कर दूँगी मेरा वजूद
तुझमें तार-तार,,,,
हर तार में गुथ लूगीं तुझे,,,
इतनी शिद्दत् से ,,,
के तू मेरी गिरफ़्त से
कभी हो ना सकेगा आज़ाद,,,
तब तक,,,,
मेरे 'रोज़नामचे' दर्ज होते रहेगें,,,
मेरी कलम से,,,
तेरी स्याही से,,,
मेरे दिल के काग़ज़ पर ,,,
रोज़ ,,,,, हर रोज़,,,,,,,
लिली🍃