सोमवार, 25 जून 2018

तुम निठुर!!

छद्म भेष धर आते हो,,
हर बार मोहे छल जाते हो,,
मैं निर्मल निर्झर भाव मनी,,
तुम निठुर! हृदय दल जाते हो।

आकुल मन और बिसरा तन
तुम जीवन के अनमोलित धन
 ठग बन,सब हर ले जाते हो
तुम निठुर! हृदय दल जाते हो।

कित खोए कुछ तो बोलो अब?
सुध लोगे प्रियतम मेरी कब?
श्वासों की गति मंथर कर जाते हो
तुम निठुर! हृदय दल जाते हो,,

लिली🌿

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