सोमवार, 18 जून 2018

अंजाम मेरे आगे,,



                        (चित्राभार इंटरनेट)


ना जाने क्या पढ़ना चाहती हैं
 हसरतें,,
उसकी लिखी पुरानी
 बातों में,,
जबकि मैं होश में हूँ,,,,,,,,,,
और अंजाम,,
मेरे आगे।

हर शब्द पे डालती हूँ,
अर्थों के
 बहुआयाम,,
मतलब है साफ़
और बानगी,,
मेरे आगे।

फिर भी,,,,
भिड़ाती हूँ तर्कों को,, वितर्कों से,
चीरती हूँ,,दिलों पाट,,
और ,,खुलें वही
ढाक के तीन पात
मेरे आगे।

लिली🌿

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