सोमवार, 25 जून 2018

इन्द्रधनुष

सब रंग खोए मुझमें थे
मैं खोज रही थी
इन्द्रधनुष,,,
जाने मन के,किस कोने
में था एक सघन हरा-भरा
झुरमुट,,,,
तुम छुपे वहीं बैठे थे,मुझमें
मै इत-उत ढूँढू स्वप्न
पुरूष,,,,
कहो छुपे तुम क्या करते थे
क्या सुख पाते,मुझे देख
कलुष,,,
अब पाकर तुमको,जगमग
अंतस,मन कानन के तुम
आरूष,,,

लिली ☺

(कलुष शब्द से यहाँ आशय=दुखी/क्षुब्ध होने से है)

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