मंगलवार, 30 जनवरी 2018

'वो' ,,, अकेली

                        (चित्राभार इन्टरनेट)

जगमगाती हैं
सड़के स्ट्रीट
लाइटों से,,
पर खौफ़
का अंधेरा
आज भी है,,,,

सड़कों पर रफ्तार
है बेतहाशा मगर
ढलती शामों के
साथ रुकती
सांसों की चाल
आज भी है,,

'वो'
अकेली खड़ी
फुटपाथ पर,
कई वहशी
नज़रों की शिकार
आज भी है,,

सरेआम
खींच ली जाती
हैं,बड़ी गाड़ियों
के भीतर,
ट्रैफिक की भीड़
में गुम होती
मदद् की पुकार
आज भी है,,,


फेंक दी जाती हैं,
नहर के पार,
कुछ रोज़ बाद,,
चिथड़ी अस्मत्
लिए पड़ी
 'वो'
अधमरी लाश
सी बरबाद
आज भी है,,,

  प्रशासन
पर उठते सवाल,
     और
सनसनी लिए,
खबरों का बाज़ार,
दिन पर दिन
छपता आंकड़ों
का कारोबार
आज भी है,,,

किससे करें
सवाल?
कौन देगा जवाब?
कोई देगा सूखते
आसूँओं का हिसाब?
नक़ाब में भी
नुँचता गुलाब
आज भी है,,

बुधवार, 24 जनवरी 2018

तुम,,,,

                      (चित्राभार इंटरनेट)


कश्ती की पतवार बने तुम,
साजन हिय के हार बने तुम।
सपन सलोने  तितली बनते,
जीवन का आधार बने तुम।

मै नदियां सी बहती जाऊँ,
प्रीत लहर सी लहरी जाऊँ।
मेरी  जलधारा  के सागर ,
मै सोच समागम इठलाऊँ।
मेरे    पारावार   बने  तुम।
जीवन का आधार बने तुम।।

प्रेमदीप, हिय कमल धरा है,
लोचन-अंजन आस भरा है।
प्रिय आकर  बाहें  थामेगें,
अंतस मे मधुमास भरा है।
सौरभ का संचार बने तुम।
जीवन का आधार बने तुम।।

खोलो हिरदय के पाश सभी,
प्रणय की बाँधलो गांठ अभी।
शशि की सोलह लिए कलाएँ,
फिर सुर के झनके राग सभी।
वीणा की झंकार बने तुम।
जीवन का आधार बने तुम।।

रजनी के भरतार बने  तुम,
कश्ती की पतवार बने तुम।
मेरे     प्राणाधार   बने तुम,
जीवन के आधार बने तुम।

शनिवार, 20 जनवरी 2018

दर्द जब खुल के खिलखिलाता है,,,,

(चित्राभार इन्टरनेट)

दर्द  जब   खुल  के
खिलखिलाता     है।

एक  गुम  चोट   सा
दिल  के किसी कोने 
में,जाके  ठहर जाता
है,हंसते  जख्मों का
हसीं खिताब पाता है।
दर्द  जब      खुल के
खिलखिलाता      है।

हर नई चोट दे  जाती
है,बर्दाश्तगी  की एक
नई ताक़त,हर ठहाके
में  नया    इक  जोश
खूब  नज़र आता है
दर्द     जब  खुल  के
खिलखिलाता       है।

ग़ुम करने  की तलब
होती   है  ,खुद   को
ज़माने    की भीड़ में।
दिल की दुखती राहों
में जाने से घबराता है,
दर्द   जब   खुल  के
खिलखिलाता      है।

गुम चोटों की तफतीश
है,बड़ी  मुश्किल यारों,
छुपा तहों मे करीने से,
धीरे धीरे ये ज़हर  सा
नसों  में  घुल जाता है।
दर्द   जब   खुल   के
खिलखिलाता        है।

मीठी मीठी सी होती है
तासीरे फितरत इसकी,
रह रह के चिलिकता है
जितना दुखता है,उतना
ही   मज़ा    आता    है,
दर्द   जब     खुल    के
खिलखिलाता         है।

लिली😊

शुक्रवार, 19 जनवरी 2018

मेरे मन का मधुमासी कोना,,,

                      (चित्राभार इन्टरनेट)

सुनो!
जब से होश
सम्भाला है,,,
खुद को अनगिनत
बेड़ियों में जकड़ा पाया है,,,

घर की
चार दिवारी के बाहर
खुद को भूखी आंखों
से घूरता पाया है,,

ऐसा भी नही के
उन चार दीवारों में भी
मेरा वजूद बहुत सुरक्षित रहा,
घुटता रहा दम, और कुछ
ना कहा,,,
पर घर के कोनों में छिपी
गंध अक्सर नज़र अंदाज़
कर दी जाती है,,,
उसको किसी कोने में बैठ
अश्कों की धार से
धो दी जाती है,,,,

जिस्म में जान है,
तो जीने के बहाने
बन ही जाते हैं,,,,
किसी दरार सें उम्मीदों
के उजाले दिल के कोनों में
घर कर ही जाते हैं,,,,,,

पांव तले की ज़मीन
जितनी पत्थरीली होती है
सपनो के आसमां उतने ही
नर्म गलीचों से होते हैं,,,

वहाँ धूप बदन को
झुलसाती नही,,
पेड़ों पर पीली पात
नज़र आती नही,,,
वहाँ नदियों में विद्रोह
नही होता,,
फूलों में कुचले जाने का
क्षोभ नही होता,,,

वहाँ सबकुछ है
हरा-भरा,,,
सदा बंसती सजी
हुई धरा,,,,
आहहहह,,मेरे दिल का
यह मधुमासी कोना,,,,,!
मुझे जिलाए रखता है
यह सपन-सलोना,,,

जब ज़मीनी
पत्थरों पे चल कर
थक जाती हूँ,,,
मैं दौड़ कर अपने
स्वप्निल कोने में
छुप जाती हूँ,,,

अपने जख्मों को
नदिया के मीठे
पानी से नहलाती हूँ,,,
फिर देर तक किसी
पेड़ की घनी छांव
तले बैठ,
कुछ नए ख्याली गजरे
बनाती हूँ,,,,,
बड़े प्यार से उन्हे
अपनी चोटी में
फंसाती हूँ,,,
उसकी खुशबू से लिपट
कुछ पल वहीं
सो जाती हूँ,,,,

एक नींद पूरी कर
मैं वापस धरातल
पर लौट आती हूँ,,,
और रोज़ के कामों
में किसी मशीन सी
जुट जाती हूँ,,,,https://youtu.be/tVU0ZQy__QI

बुधवार, 17 जनवरी 2018

मेरी अभिव्यक्तियाँ

फिर 'मै',,,,,,,, 'मै' नही रहती,,,,,,,,

                     

मुझे
तुममे रहने दो,,,,,
नही चाहती कि,
तुम्हारे हृदय के
मखमली गलीचों से
बाहर कदम निकालूँ,,,,,
बहुत नरम हैं ये
एहसासों के
पुरसुकून गलीचे,,,

ये जो तुमने मेरे लिए
अपनी प्रीत-प्रसून से
सजा दिये है,,,,,,
मेरे सिरहाने
अपनी सुगंधित,
सुवासित
भावाभिव्यक्तियों के
रजनीगंध
आसक्ति के गुलदान मे,,,,,,,
'मै' ,,,,, अब 'मै' नही रही,,,,,

कभी तुम्हारी
अभिव्यक्तियों की
रजनीगंधा सी ,,,
कभी,,तुम्हारे
प्रीत-प्रसून सी,,,,
कभी तुम्हारे एहसासों के
मखमली गलीचों सी,,,,,,
महक रही हूँ ,,,
चेतना शून्य हो
विलीन हो रही हूँ तुममें,,,,,,

ये जो रूनझुनाते नूपुर
तुम्हारी यादों के,,,
जब हौले से बजते हैं,,,,,,,
इनकी खनक
नख से शिख तक
 झनझना देती है,,,,,
जब प्रेमसिन्धु से गहरे
तुम्हारे दो नयन
मुझे निहारते हैं,,,,,,,
मै एक ही गोते मे ,
जैसे कहीं
डूब जाती हूँ अनंत में ,,,,

अद्भुत रूपहला संसार है,,,
शान्ति है,,,
परमानंद है,,,
और बस
मै और तुम हैं,,
अपने अलौकिक संसार मे विचरते,,,,

मेरा नाम
सोचने मात्र से,,,,,,
 तुम्हारे हृदय मे प्रवाहित
पुरवैया से भाव ,,,,,
अधरों पर
मुस्कान के कम्पित पत्तों से
झूम उठते हैं,,,,,,
फिर 'मै' ,,,,, 'मै' नही रहती,,,,

पुरवैया के झोंकों से
प्रभावित मेघ सी,,,,,
उल्लास के क्षितिज में,
उमड़ती-घुमड़ती
बरस जाने को आतुर हो
हवा संग
तैरने लगती हूँ,,,,

ये बलिष्ठ स्कन्ध,,
ये बाहुपाश,,,
हृदय के स्पंदन ये गूजँता,,,
'मेरी प्रिये" का
रसचुम्बित
चुम्बकीय सम्बोधन,,,,,,,,,,,,!!!!!!!!!!
फिर 'मै' ,,,,,, 'मै' नही रहती,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

मै
चंचल 'जाह्नवी' सी लहराती,,,,,,,,,
तुम्हारे हृदय के
महासागर मे
घुल जाती हूँ,,,,,,
उछलती ,,अह्लादित 'मृग' सी
कुलाचें भरती,,,
तुम्हारे विस्तृत वक्षस्थल के,,
अभयारण्य् मे 
लुप्त हो जाती हूँ,,

'मुझे','
तुममे' ही एकसार होकर
गढ़ना है जीवनकाव्य,,,
'मुझे',,,,, बससससससस्
तुममे ही रहना है,,,,,,
तुममे ही रहना है,,,,,,,,!!!!!!

Lily Mitra

मंगलवार, 16 जनवरी 2018

गिट्टी फोड़ ,,, बाल रचना

                      (चित्राभार इन्टरनेट)


👶#बालरचना 👶

गिट्टी ऊपर गिट्टी की होड़,
मिलकर खेलें गिट्टी फोड़।

            लगा निशाना तान के गेंद,
            छितरे गिट्टी होड़ को तोड़।

लपके सारे गेंद की ओर,
बंटी,हरिया,मधू,किशोर।

              धर पाया ना भूरा होड़,
              तड़ी गेंद की पाया जोर।

गिट्टी ऊपर गिट्टी की होड़,
मिलकर खेले गिट्टी फोड़।

लिली👶

एक ख्याल,,,, (हास्य रचना)

                         (चित्राभार इन्टरनेट)

खोपड़िया में ख्याल
खलबलाता है?

कड़ुवे करेले में कैसे,
कीड़ा कुलबुलाता है?

दिमाग सीइइई सीइइई
कर दौड़ लगाता है,,

आखिर कैसे बंद लाल
मिर्ची के पैकेट में भी
कीड़ा घुस जाता है?

इस प्रश्न का मुझे
ना मिला समाधान

कैसे जब्बर कीड़े
बनाए तुने हे भगवान!!😱😟😲

क्या आपको भी ये 
ख्याल खलबलायाहै?

या मेरा ही दिमाग
कुछ गड़बड़ाया है?😟


लिली😊

सरदी,,

                       (चित्राभार इन्टरनेट)

सरदी
⛄❄⛄❄❄

नरम कम्बलों
में कटती नही
सर्दी,,,

तेरे एहसासों
की गर्माहट चाहे
सर्दी

आंगन की धूप
में तेरा साथ चाहें
सर्दी,,

मूंगफली की चटख
तेरी बातों का नमक चाहे
सर्दी,,,

मेरी ठंडी हथेलियां
तेरी पकड़ चाहे
सर्दी,,,

गर्म पकौड़े संग
तेरी शरारती चटनी चाहे
सर्दी,,,

रात की धुंध में
तुममे खो जाना चाहे
सर्दी,,,,

आओ तुम करीब
देखो कबसे बुलाए
सर्दी,,,,

लिली ❄

सोमवार, 15 जनवरी 2018

छोटे भोलू का मौन,,,

                      (चित्राभार इन्टरनेट)

बालकविता

👶👶👶👶👶👶👶

घपलू-गपलू भोलू जी,
जाते हैं स्कूल को जी।

मोज़े,टोपी कोट पहन,
करते भारी बैग  वहन।

गाल हैं फूले आंखे गुम,
चिन्ता में क्यों खोए तुम।

साथी करते चटर पटर,
भोलू जी को नही खबर।

सुबह उठा देती हैं मम्मी,
भूले सब जीवन की नरमी।

याद बहुत  आए रजाई,
टीवी, टाॅफी,चाॅको पाई।

मस्ती भूल स्कूल है जाना,
छुट्टी का ना  मिले बहाना।

पापा को ऑफिस की टेंशन,
उलझा घर में मम्मी का मन।

भोलू का दुख समझे कौन?
खोई आंखें,मासूम सा मौन।

मन के हारे हार है,,,

                         (चित्राभार इन्टरनेट)

बनी बेड़ियां रीतियाँ
कैसे पनपे प्रीत,
मन के हारे हार है,
मन के जीते जीत।।

कौन बजाए बाँसुरी,
कौन सुनाए गीत।
मुरझाई कलियाँ सभी
आवे नहि मनमीत।।

मन के हारे हार है
मन के जीते जीत,,,,

सुर नहि पकड़े ढोलकी,
तुक नहि बने सटीक।
तालों की लय भागती,
रूठा  है संगीत।।

मन के हारे हार है
मन के जीते जीत।

मधुमासी वसुधा सजी
उठे जिया मे टीस ।
मन की ऋतुएं हो रही,
सकुचाई सी शीत।।

मन के हारे हार है,
मन के जीते जीत।।

लिली मित्रा 🌷

रविवार, 14 जनवरी 2018

भावों का बवंडर

                   (चित्र एलिफेंटा की गुफा से, मेरे द्वारा)

भावों का
जलधि जब मन
के किनारों पर
उत्पात करता है,,,

अंतर की
गहराइयों में कहीं
धरा का स्खलन
भूकंप का केन्द्र बनता है,,,

अभिव्यक्तियां तब
एक तबाही सी,
सारे तटों और सीमाओं
को तोड़ उथल पड़ती हैं
एक नए सृजन का
आधार गढ़ती हैं,,,

गुहाओं में खुदे
भित्ती चित्रों को देख
हतप्रभ थी,
भावों के बवंडर में
घूमती सृजन की
अनुपम अभिव्यक्ति थी,,

जिसने कठोर
प्रस्तरों को खोदकर
कालजयी कलाकृतियां
रच डाली,,,,

कल्पनाओं के
हथौड़ों से पीट
अलौकिक भित्तियां 
गढ़ डाली,,,,

निर्जन पहाड़ों
पर जीवन का श्रृंगार
कर गईं,
सृजन की प्रसव
वेदना, कलाकृतियों
की अनुपम
धरोहर धर गईं,,,,




सोमवार, 8 जनवरी 2018

रहगुज़र सा दिल रखती हूँ

                              (चित्राभार गुल्लू)

अब मंज़िल पर निगाह नही,निगाह में मंज़िल रखती हूँ,
मै सफर में हूँ मशगूल यारों,रहगुज़र सा दिल रखती हूँ।

कड़ी धूप क्या झुलसाएगी मेरी दरख्तों की हरियाली,
जड़ों को पत्थरों से नमी सोखने के काबिल रखती हूँ।

वो मेरा चाँद होगा मेरी गिरफ्त-ए-आगोश से बहुत दूर,
अपने दिल कि खिड़कियों से नज़रे हासिल रखती हूँ।

शिकवा क्या करूँ तेरे ना मिल पाने का बता ऐ हमदम!
सांसों की हर आवाजाही में हवा सा शामिल रखती हूँ।

तेरे आने की आस जलाए रखती है चराग़-ए-मुहब्बत,
इसी रौशनी के साए में उम्मीद को कामिल रखती हूँ।

लिली😊


मंगलवार, 2 जनवरी 2018

सफर

                     (चित्राभार इन्टरनेट)

पटरियों पर
दौड़ती रेल
सी रफ्तार
है ज़िन्दगी

देर रात जाग
कर देखती रही
आंखें बाहर के
अंधेरे,चांदनी
फैली तो थी
पर सब कुछ
दिखकर भी
स्पष्ट नही था,,,

आंखे जैसे
टटोल कर
तराश रही
थीं बाहर के
अंधेरे,ना जाने
क्या आकार
देने का प्रयास
कर रहे थे मेरे
अंतस के दृष्टिकोण??

आने वाला दौड़कर
पीछे कि ओर
भागता सा,,,
पृथ्वी की देह
के उभार की
रेखाएं खोजती
मैं,बहुत देर तक
टटोलती रही
तराशती रही
सोचती रही,,,

यह कैसी
अस्पष्टता???
कैसी उलझन??
मै किस सफर
पर अग्रसर
रेल सी भागती?
पटरियां कभी
दूर तक आधार
प्रदान करती,,
तो कभी स्टेशन
से पूर्व झट से
एक से दो,,,
दो से तीन
निकल कर
फैल जाती हुईं,,
गन्तवय तो पता
था इस सफर का
पर जिस सफर पर
ज़िन्दगी सवार है
वह इतनी अस्पष्ट
क्यों हो चली है?

डरा रहा था
खिड़की के बाहर
का अंधेरा निर्जन,
चाँदनी पहली बार
सफेद धुंध सी लगी,
कैसे चीरू इस
धुंध को?पसरती
ही जा रहा हर तरफ,,

मन सिमटता
जा रहा अपनी
खोह में,परिन्दों
सा फड़फड़ता
नही अब, किसी
शाख पर बैठ
जाना चाहता
है,दुबक कर,,
सरदियों की
भोर है अभी
कुहासे से भरी
छटने में वक्त
लगेगा शायद,,
तब तक अस्पष्ट
ही सही,कुछ
नए अनुभव
छिपे हों,,
तब तक सब
धुंधला ही सही,,,

लिली 😊

यूँ सताया ना करो,,

                      (चित्राभार इन्टरनेट)

मेरी हर शिकायत पर यूँ मुस्कुराया ना करो,
दिल जलता है बड़ा देखो यूँ सताया ना करो।

खिलता कंवल हूँ कभी जी भर के तो देख,
बेरूखी की तपिश से इसे यूँ सुखाया ना करो।

शब्दों की फुहार से एहसासी चमन ना खिला,
जज़्बातों की आंधी में कसक यूँ बहाया ना करो।

करीब बैठों कभी कांधों पर सिर टिकाऊँ मैं,
रूहानी दलीलें दे मुझे, यूँ बहकाया ना करो।

किताबों में सुखे गुलाब सी नज़र आए ये मुहब्बत,
दिली किताब में ताज़े फूलों को यूँ दबाया ना करो।