मंगलवार, 30 जनवरी 2018

'वो' ,,, अकेली

                        (चित्राभार इन्टरनेट)

जगमगाती हैं
सड़के स्ट्रीट
लाइटों से,,
पर खौफ़
का अंधेरा
आज भी है,,,,

सड़कों पर रफ्तार
है बेतहाशा मगर
ढलती शामों के
साथ रुकती
सांसों की चाल
आज भी है,,

'वो'
अकेली खड़ी
फुटपाथ पर,
कई वहशी
नज़रों की शिकार
आज भी है,,

सरेआम
खींच ली जाती
हैं,बड़ी गाड़ियों
के भीतर,
ट्रैफिक की भीड़
में गुम होती
मदद् की पुकार
आज भी है,,,


फेंक दी जाती हैं,
नहर के पार,
कुछ रोज़ बाद,,
चिथड़ी अस्मत्
लिए पड़ी
 'वो'
अधमरी लाश
सी बरबाद
आज भी है,,,

  प्रशासन
पर उठते सवाल,
     और
सनसनी लिए,
खबरों का बाज़ार,
दिन पर दिन
छपता आंकड़ों
का कारोबार
आज भी है,,,

किससे करें
सवाल?
कौन देगा जवाब?
कोई देगा सूखते
आसूँओं का हिसाब?
नक़ाब में भी
नुँचता गुलाब
आज भी है,,

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