शनिवार, 20 जनवरी 2018

दर्द जब खुल के खिलखिलाता है,,,,

(चित्राभार इन्टरनेट)

दर्द  जब   खुल  के
खिलखिलाता     है।

एक  गुम  चोट   सा
दिल  के किसी कोने 
में,जाके  ठहर जाता
है,हंसते  जख्मों का
हसीं खिताब पाता है।
दर्द  जब      खुल के
खिलखिलाता      है।

हर नई चोट दे  जाती
है,बर्दाश्तगी  की एक
नई ताक़त,हर ठहाके
में  नया    इक  जोश
खूब  नज़र आता है
दर्द     जब  खुल  के
खिलखिलाता       है।

ग़ुम करने  की तलब
होती   है  ,खुद   को
ज़माने    की भीड़ में।
दिल की दुखती राहों
में जाने से घबराता है,
दर्द   जब   खुल  के
खिलखिलाता      है।

गुम चोटों की तफतीश
है,बड़ी  मुश्किल यारों,
छुपा तहों मे करीने से,
धीरे धीरे ये ज़हर  सा
नसों  में  घुल जाता है।
दर्द   जब   खुल   के
खिलखिलाता        है।

मीठी मीठी सी होती है
तासीरे फितरत इसकी,
रह रह के चिलिकता है
जितना दुखता है,उतना
ही   मज़ा    आता    है,
दर्द   जब     खुल    के
खिलखिलाता         है।

लिली😊

2 टिप्‍पणियां:

  1. पहली बार तेरे लेखन में दर्द सखि☺
    यूं ना खुद को कर दुःखी सखि
    आज दर्द है तो कल चला जायेगा
    आज इस दर्द को देदे नया शब्द सखि😊

    वैसे एक गाना भी है जो तेरे लिखे के साथ जाता है..
    🎵🎶 दर्द जब हद से गुज़रता है तो गा लेते हैं🎵🎶
    बोल क्या गाऊं तेरे लिये😍

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