रविवार, 14 जनवरी 2018

भावों का बवंडर

                   (चित्र एलिफेंटा की गुफा से, मेरे द्वारा)

भावों का
जलधि जब मन
के किनारों पर
उत्पात करता है,,,

अंतर की
गहराइयों में कहीं
धरा का स्खलन
भूकंप का केन्द्र बनता है,,,

अभिव्यक्तियां तब
एक तबाही सी,
सारे तटों और सीमाओं
को तोड़ उथल पड़ती हैं
एक नए सृजन का
आधार गढ़ती हैं,,,

गुहाओं में खुदे
भित्ती चित्रों को देख
हतप्रभ थी,
भावों के बवंडर में
घूमती सृजन की
अनुपम अभिव्यक्ति थी,,

जिसने कठोर
प्रस्तरों को खोदकर
कालजयी कलाकृतियां
रच डाली,,,,

कल्पनाओं के
हथौड़ों से पीट
अलौकिक भित्तियां 
गढ़ डाली,,,,

निर्जन पहाड़ों
पर जीवन का श्रृंगार
कर गईं,
सृजन की प्रसव
वेदना, कलाकृतियों
की अनुपम
धरोहर धर गईं,,,,




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