रविवार, 27 जनवरी 2019

हवामहल ने कहा,,,


   
#हवामहल_ने_मुझसे_कहा

#जयपुर_डायरिज़

बेजान इमारतों
में जान भरने को
ना जाने कितनी नक्काशियां करता है
दिवारों में झरोखे,,
और झरोखों पर रंगीन कांच मढता है,,
धूप के रंगीन पैबंध
अंधेरे कमरों में कुछ तो उम्मीद भरते हैं,,
चारदिवारों में कैद़ दिल की
हसरतों को आवारगी नज़र करते हैं,,,
वरना,,,
इन पुख्ता मोटी दीवारों के बाहर कि दुनिया,
बड़ी हैवान है,
आँखों पर पलकों का नक़ाब धरे
घूरता शैतान है,,,
आबरू का सौदा एक झलक देखकर
ही हो जाता था,,
फिर तो उसे लूट लेना का मसौदा
तूल खाता था,,
और ना जाने कितनी पदमावतियों
को जौहर की आग में जलाता था,,,
शायद इसलिए ही कफ़स को
इतना आबाद किया होगा
हवाओं में घोल कर कृत्रिम बसंत
परिंदों को प्रांगण 'आज़ाद' दिया होगा

लिली😊

मंगलवार, 22 जनवरी 2019

फुटपाथ ने कहा,

लिखित-अलिखित,वाचाल-मौन सबकुछ पढ़ने की आदत पड़ जाए तो कभी-कभी लेने के देने पड़ जाते हैं😃😃 सबकुछ हमसे कुछ बोलता सा ही नज़र आता है।🤓 रोज़ जिस फुटपाथ पर टहल करती हूं उसको खोदकर रख दिया है। उस पर बिछी सीमेन्ट की छोटी डमरू आकार जैसी टाइलों पर नज़र जमा कर चलना, थोड़ा खिलवाड़ करते हुए अपनी धुन में कदमों को जमाना अच्छा लगता था।
    मै पागल नही हुई हूं।आदत का जिक्र कर रही हूं। क्या पता आपके साथ भी होता हो?
आगे सुनिए । तो हुआ ये की आज हैरत में पड़ गई मैं,,! जब फुटपाथ ने भी कविता सुना दी मुझे बोली--
     विकास अक्सर विध्वंस
     के मलवे पर अपनी
     नींव बनाता है,,,
     परिवर्तन का दौर
     निर्ममता से सारे
    मोह-बंधनों को
    खोद,
    नए स्तम्भो के लिए
    जगह बनाता है,,,
    हाँ,,,,आगत निश्चय ही,
     विगत को बेहतर बनाने
     के लिए ही होता है,,,
     पर फावड़े की चोट,
      अंतस के गहनतम्
      एहसासों को खोद
       देता है,,, 
     
        फुटपाथ-
मै  कविता की संवेदनशीलता से भीतर तक स्पर्शित हो चुकी थी। फुटपाथ अब खामोश था। जत्र-तत्र खुदे हुए अपने शरीर के भागों को देखता । मै उसकी कही काव्य वेदना की समीक्षा करती सड़क पर आगे बढती रही।

गुरुवार, 17 जनवरी 2019

नीरव सा कुछ,,,,




नीरव सा कुछ लिख जाऊं
बस तुम समझो,वह कह पाऊं
जग सारा खोजे शब्द-सृजन
मै काव्य शून्य सम रच जाऊं,,

जो दिखकर भी ना दिखता हो
अनुभूति प्रबल आधिक्यता हो
आभास सबल परिभाषित हो
रख शब्द परे,बहती जाऊं
मै काव्य शून्य सम रच जाऊं

नीरव सा कुछ लिख जाऊं
बस तुम समझो,वह कह पाऊं

रंग बहुल पर बेरंग दिखे
भावप्रवण पर निर्भाव लिखे
गीतों का सुर निःशब्द बजे
जग खोजे और मैं मुस्काऊ
मै काव्य शून्य सम रच जाऊं

नीरव सा कुछ लिख जाऊं
बस तुम समझो,वह कह पाऊं
लिली❤






मंगलवार, 8 जनवरी 2019

ओ साथी मेरे मन के,,,,,,, गीत



ओ साथी मेरे मन के
मनवीणा तुझे पाकर झनके
प्रीत मेरी थी अधूरी
बिखरे बिखरे थे मनके
ओ साथी मेरे,,,,,,,

सूनी थीं मन की गलियां
मुरझाई होठों की कलियां
बगिया की बुलबुल गुमसुम
खोए मक़सद जीवन के

ओ साथी मेरे ,,,

सूखी धरती का दामन
चिरता था यूं मेरा मन
कोई बादल आकर बरसे
झरते नयना बिरहन के

ओ साथी मेरे,,,,

सांझ सिंदूरी सजकर
ड्योढी पर ताके रस्ता
आएगें प्रितम् मेरे
दीप जलेगें आंगन के

ओ साथी मेरे,,,,

तुम्हे पाकर सूरज चमका
चंदा का भाल है दमका
हर जनम तुझको पाऊं
मन्नत से धागे बंधन के

ओ साथी मेरे,,




गुरुवार, 3 जनवरी 2019

पत्थर बना रहे,,



ना जाने कौन सा आशीष मांगते हैं वो
पत्थरों की मूरतों के आगे,,
यहाँ जीवन से भरे देव पाषाण
हुए जा रहे,,,
लगता है विश्वास निर्जीव पत्थरों
में अधिक सशक्त है उनका,,
तभी प्रीत के मंदिर में मुझे
पत्थर का बना रहे हैं,,
लिली😊

न,,मालूम कौन बदल गया,,,?

                    (चित्राभार इन्टरनेट)

गुनगुनी धूप का छनकर आता
अर्क दिखता था,,
चाँद दिखता था,,
खुला आसमान दिखता था,,
अब उन्ही खिड़कियों से
धूप का अर्क़ धूल में घुला मिलता है,,
चाँद जालियों में कैद मिलता है,
आसमान नक्काशीदार फ्रेमों
से लैस मिलता है,,
न,,मालूम कौन बदल गया है,,,,,???
खिड़की के इसतरफ़ बैठी निगाहें,,
या,,
उस तरफ़ के नज़ारे,,??
या खिड़कियां ने ही कुछ
फेरबदल कर दी,,,,?????
आना कभी फुर्सत से,,
बैठकर बिस्तर पर मश्'वरा करना है,,,
खिड़कियों की छानबीन करनी है,,
नज़ारों का मुआएना करना है,,,
लिली😊