ओ साथी मेरे मन के
मनवीणा तुझे पाकर झनके
प्रीत मेरी थी अधूरी
बिखरे बिखरे थे मनके
ओ साथी मेरे,,,,,,,
सूनी थीं मन की गलियां
मुरझाई होठों की कलियां
बगिया की बुलबुल गुमसुम
खोए मक़सद जीवन के
ओ साथी मेरे ,,,
सूखी धरती का दामन
चिरता था यूं मेरा मन
कोई बादल आकर बरसे
झरते नयना बिरहन के
ओ साथी मेरे,,,,
सांझ सिंदूरी सजकर
ड्योढी पर ताके रस्ता
आएगें प्रितम् मेरे
दीप जलेगें आंगन के
ओ साथी मेरे,,,,
तुम्हे पाकर सूरज चमका
चंदा का भाल है दमका
हर जनम तुझको पाऊं
मन्नत से धागे बंधन के
ओ साथी मेरे,,
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