बुधवार, 30 नवंबर 2016

एक शाम अकेली सी,,

                          (जिम काॅर्बेट की एक सुहानी शाम)


             एक शाम अकेली सी,एक रात हुई तन्हा,
             चाँद को खोजे ज़मी,बेचैन सा हर लम्हा।

             हर याद सितारों सी, हर शय में तेरा मजमा।
             कोई आज ख्यालों में ,अंम्बर सा फैल गया,
         

             आहट तेरी बातों की ,सुनसान सी राहों पे,
              तेरी चाप है मस्तानी, हर रस्ता ठहर गया।

              हर शजर पे बिखरी है, अंगड़ाई तेरी मस्ती की,
              छू कर जो हवा गुज़री,मेरा दामन लहर गया।

              खामोश से मौसम मे, कोई साज़ नया गूँजा,
              धड़कन दिवानी, हर अरमान मचल सा गया।।

शुक्रवार, 25 नवंबर 2016

"मै"

                     (चित्र इन्टरनेट से)

मेरा 'मै' कुछ सुगबुगा सा उठा है,साधारणतयः बहुत ही शान्त रहने वाला अन्तरमुखी है। आज अकस्मात बोल उठा,और बहुत कुछ बोल गया,,,,,,,,मै न तो कट्टर नारीवादी हूँ न ही विरोधी, ये विचार एक सहज मनोभावों का बहाव है। नारी को प्रकृति का रूप माना गया है,प्रकृति एक गूढ़ रहस्य है। नित नए रहस्य प्रकृति को एक नवीनता प्रदान करते हैं, यही उद्घाटित रहस्य जीवन के प्रति  जिज्ञासा का पुट डाल देते हैं एंव जीवन मे प्रगतिशीलता बनाए रखते हैं।
   सृष्टि की समस्त नारी जाति रूप रंग,आचार व्यवहार मे भिन्नता लिए हुए क्यों न हो परन्तु उनका 'स्त्रैण' उनकी आत्मा का मूल समभावी होता है। वेद-पुराणों मे स्त्री को भौतिकता का प्रतीक माना गया है, और प्रकृति के गुणों को स्त्री गुणों का दर्पण कहा गया है।
    जब 'मै' की बात करती हूँ तो डूब जाती हूँ एक प्रश्न चिन्ह अपना आकार बड़ा करता नज़र आता है,,,,,,मेरा नाम मेरी पहचान है? या मेरे द्वारा निभाई जाने वाली विभिन्न भूमिकाएं मेरी पहचान हैं? जब सुनती हूँ "खुद से प्यार करो" तो भ्रमित हो जाती हूँ,,,, कि अपने  द्वारा निभाई जाने वाली कौन सी भूमिका से प्यार करूँ????????  क्योकि मै मुझमे बहुत कुछ समेटे हुए हूँ,,,,किसी एक का त्याग करते ही मेरा व्यक्तित्व अधूरा हो जाता है।
   नारी की सृष्टि जन्मदायिनी, जीवनचक्र को निरन्तरता प्रदान करने वाली, ऊर्जा एंव शक्ति संचार, करने वाली एक ऐसी सशक्त धुरी  के रूप मे हुई है, जिसके कारण सृष्टि सतत् प्रवाहवान है।  स्त्री 'मै' का विस्तार कितना व्यापक और रहस्यमयी है इसकी कल्पना करपाना असम्भव है।
       जीवन के कई उतार-चढ़ावों की मूक दृष्टा रहकर मैने बहुत कुछ सीखा,और अनुभव अर्जन चालू है। अपने उन्ही अनुभवों को व्यक्त करने लगी हूँ आज,,,!!!!
      पृथ्वी की भांति बहुत कुछ गर्भ छुपाकर रखा,उपरी सतह स्थिर आन्तरिक हलचल को कभी प्रकट नही होने दिया, परन्तु कुछ असहनीय हुआ तो हलचल भूकंप की तरह आई और बस्तियां उजाड़ गई। ,,,, हताहत 'मै' भी हुआ , ये विनाश अनुभवों के ध्वंसावशेष छोड़ गए।
    अपनो मनोभावों को जब खुल कर प्रस्फुटित होने दिया,,,,पृथ्वी पर ऋतु-परिवर्तन देखे गए। "मै" जब प्रेम से सराबोर हो उठी तो बसंत सर्वत्र अपना सौन्दर्य बिखेर गया,,,रंग-बिरंगे पुष्पों और आम के बौर की महक, मादकता और नैसर्गिकता के चरम पर पहुचँते हुए देखी गई।
   क्षोभ,कष्ट,वेदना की ऊष्मा ने ग्रीष्म ऋतु कि भांति पूरे वातावरण को शुष्क और कटीला बना दिया,,,ऊष्मा और ताप से नदियों का जल वाष्प बन मेघ बन गए,,,,,और जब ये मेघ भारी होकर द्रवित नयनों से बरस पड़े तो वर्षा ऋतु का आगमन हुआ।
     "मै" जब स्वंय को व्यक्त करने मे असमर्थ हुआ, अपेक्षा की,,,,कोई मेरे नयनों की मूकभाषा को समझ जाए,,,मेरी कर्तव्यपरायणता, मेरी निष्ठा,मेरे समपूर्ण समर्पण को स्वीकृति दे,,,,,अनुकूल प्रतिक्रिया के संकेत ना मिलने पर मैने स्वयं को 'शीत-काल' की भांति सिकोड़ लिया,,,अपनी इच्छाओं ,आशाओं को ह्दय के मोटे कम्बल मे लपेट लिया।
       मै चंचल नदी की भांति निःशब्द नीरव जंगलों मे जीवन के सभी अवसादों को परे रख अलमस्त हो बही ,,,ऊँचे पहाड़ों से पूरे आवेग के साथ बेपरवाह हो नीचे गिरी,,,,,सब कुछ अपने वेग मे समेटे मै बहती गई,,,देती गई,,बिखरती गई,,सिमटती गई,,झुकती गई,,खुद को संवारा भी,संभाला भी,उजाड़ा भी और बसाया भी,,,,,,,,,,,,,, एक छोटा सा "मै" ,,,,,, इतना विस्तृत,,, अचम्भित कर गया!!!!!!! खुद को किसी के बाहुपाश में बांध अपने सभी गुण-दोष ,सफलता-असफलता की चिन्ता को दरकिनार रखने की आशा भी की, तो सभी बंधनों को तज उन्मुक्त गगन मे उड़ने भी लगी।
    ज़िद भी की,नादानी भी की, परस्वार्थ का साधन भी बनी,,,, सह भी गई,,कह भी गई,,,,मेरा रूप तो वृहद विशाल है,,,,किस रूप से प्यार करूँ?????? यह सब बस लिखा,किसी निष्कर्ष पर पहुँचने की अभिलाषा नही। एक चंचल मृग की तरह अभिव्यक्तियाँ कुलाचें भरने लगी ,हाथों की उंगलियाँ लिसपिसा उठीं,,,और कलम चल पड़ी।
   'मै' दयनीय नही है,,वह चट्टानों सा सशक्त और कठोर भी है, "मै" सहानुभूति  की याचना नही करता,,,,स्वालम्बी,दृढ़निश्चयी ,और परिस्थिति के अनुरूप ढालने मे यथासम्भव सक्षम है। जीवन के दायित्वों का निर्वाहन कुशलतापूर्वक करते हुए अपनी अभिरूचियों और संवेदनाओं को सवांरना और संचित करना भलि-भांति जानता है।
    मैने ये अनुभव किया है सृष्टि की सुन्दरतम रचना हूँ "मै" ,,,,, एक अद्भुत शक्ति का संचार पा रही हूँ आज। एक लम्बा सफर तय करना है,, उत्सुकता है कौतूहल है मार्ग मे आने वाले पड़ावों के प्रति ,स्वयं को और जान पाने के प्रति ,,और आप साथ हैं तो सांझा करने का अवसर भी मिलता रहेगा,,,इसी आशा के साथ लेखनी को विराम,,,,,।


बुधवार, 16 नवंबर 2016

मेरे जीवन की काव्यमयी यात्रा की रूपरेखा,,,

                       (चित्र इन्टरनेट से)
 एक अनुभूति सर्द प्रभात की सिहरन के साथ पाई, जब जीवन मे 'कविता' को जीने लगे मनुष्य ,तो उसे लिख पाना कठिन होजाता है। सुन्दर उपमाएँ ,अलंकार,शब्द सब आसपास नर्तन करते हैं परन्तु उन्हे एक निश्चित निर्धारित पंक्तियों मे समेट पाना कठिन हो जाता है।
   पद्य गद्य बनने लगता है ,और गद्य मे पद्य का रस आने लगता है,,,,आपको हास्यकर लगा ना,,,? पर मेरे साथ ऐसा अक्सर होता है। कुछ वैसा ही जैसा रसना द्वारा स्वादिष्ट भोजन का रसास्वादन पाकर जो आत्मतृप्ति होती है उसे खाने वाला अनुभव तो करता है परन्तु तत्काल उसकी अभिव्यक्ति नही कर पाता।
  एक विचार यह भी आया कि- काव्य को जीने मे जब परमानंद की अनुभूति होने लगती है तब ह्दय अधिक सक्रिय हो धमनियों मे भावनाओं का रक्तसंचार सम्पूर्ण वेग के साथ करने लगता है,फलतः मष्तिष्क की  'सोच-विचार', "नाप-तोल" करने का चातुर्य निष्क्रिय पड़ जाता है। हाथ मे कलम और डायरी लेकर बैठ तो जाती हूँ, परन्तु ह्दय से होने वाली भावनाओ का निरन्तर प्रवाह हाथों  रोक देता है, मष्तिष्क उनके वशीभूत हो बोल उठता है- "अरे ज़रा रूक ,,,,इस मखमली एहसास के हर एक घूंट का ज़ायका लेते हुए पी तो लूँ,,,,,,,!!!! समस्त इन्द्रियां भावनाओं के समुन्दर मे गोते खाने लगती हैं। कैसे दिल  दिमाग पर हावी होता है,,,,,,,,,,, है ना,,,,!!!!
      भावनाओं के रसास्वादन मे पूर्णतया सराबोर होने के पश्चात जब मै उस अलौकिक तंद्रा से बाहर आकर कुछ नपे तुले शब्दों में अभिव्यक्ति करने का प्रयास करती हूँ तब मुझे शब्दों का अभाव दिखता है और यदि शब्दों का जुगाड़ कर भी लिया तो वह रस नही भर पाती जिसका पान मैने किया।
    शुष्क मरुस्थल मे बैठ निर्मल शीतल जल की प्यास मे कई कविताएँ लिख जाएं,परन्तु जब तिलमिलाती प्यास मे शीतल जल मिलजाए,,,,,, उस तृप्ति की अभिव्यक्ति कर पाना क्या सचमुच सम्भव है,,,,,?
   'कविता' का जीवन मे आना ईश्वरीय आशिर्वाद है,,,,, मनुष्य का प्रारब्ध है। जो इस आशिर्वाद से अविभूत हुआ,,,जिसने कविता को 'जिया'  वह बस उसी का होकर रह गया,फिर तो कविता एक वातावरण के भाति चतुर्दिक आच्छादित हो जाती है, मनुष्य कवितामयी हो प्रत्येक क्षण को 'जीने' लगता है, जीवन के अन्य सभी कार्य स्वचालित हो जाते हैं। एक ऊर्जा एक रचनात्मकता का सृजन होता है, और यह रचनात्मक सृजन व्यक्तित्व को एक आभा प्रदान करते है।
    यहाँ तक लिखने के बाद मै इस निष्कर्ष पर आई कि प्रत्येक मनुष्य को अपने जीवन की 'कविता' को पहचान कर उसे पाने का प्रयास करना चाहिए,,,,और यहीं से एक विकास प्रक्रिया का उद्गम होता है,,,,,,'प्रयास' 'प्राप्ति' 'प्रवाह',,,,,,,,।
   जब हम कविता को जीवन मे लाने का यथासम्भव 'प्रयास' करते हैं,,, साधना कर उसे शब्दों से सुस्जित करते हैं,,, भावों का आलिंगन देते हैं,,और अभिव्यक्ति का प्रोत्साहन देते हैं,,, विचारों का आदान-प्रदान,,,,,करते हैं, यह एक लम्बी प्रक्रिया होती है। परिणाम स्वरूप विकास का द्वितीय चरण 'प्राप्ति आता है। दोनो के पारस्परिक विलयन का चरण , एक दूसरे मे पूरी तरह डूब एकीकार होजाने का समय,,,,,,।
      पारस्परिक विलयन के फलस्वरूप कविता की हर विधाओं से परिचित हो हम कवितामयी हो जाते हैं इतना आत्मसात कर लेते हैं एक अन्य को,, कि विकास के तृतीय चरण मे पहुँच 'प्रवाहित होने लगते हैं,,,उसे जीने लगते हैं।  इस चरण मे अभिव्यक्ति के लिए सोचे विचारे', नपे तुले अथवा सटीक शब्दों की जुगाड़ की आवश्यकता नही होती। काग़ज -कलम लेकर बैठते ही भाव अविरल रूप से प्रवाहित होने लगते हैं।
    अविरल भाव प्रवाह की इस बेला मे आत्मअभिव्यक्ति के दो रूप दिखाई देते हैं,,,, या तो वह निःशब्द या मूक हो जाती है,,,,या फिर काग़ज पर खींची लाइनों की परवाह किए बगैर लहराती हुई रस-सागर उड़ेलती हुई बहने लगती है। सब स्वचालित हो जाता है, उन्मुक्त हो जाता है।
   मै भी जीवन मे कविता को लाने के लिए सतत् प्रयासरत हूँ ,अपनी इस प्रयास यात्रा की शुरूवाती  रूपरेखा को इस लेख मे खींचने का प्रयत्न किया है,,,,,पता नही यह लेख विकास के तीन चरणों 'प्रयास',प्राप्ति' और 'प्रवाह' तीनों मापदंडों पर खरा उतरा या नही ,,,इसका निर्णय आप पर छोड़ा 😊।