मंगलवार, 22 जनवरी 2019

फुटपाथ ने कहा,

लिखित-अलिखित,वाचाल-मौन सबकुछ पढ़ने की आदत पड़ जाए तो कभी-कभी लेने के देने पड़ जाते हैं😃😃 सबकुछ हमसे कुछ बोलता सा ही नज़र आता है।🤓 रोज़ जिस फुटपाथ पर टहल करती हूं उसको खोदकर रख दिया है। उस पर बिछी सीमेन्ट की छोटी डमरू आकार जैसी टाइलों पर नज़र जमा कर चलना, थोड़ा खिलवाड़ करते हुए अपनी धुन में कदमों को जमाना अच्छा लगता था।
    मै पागल नही हुई हूं।आदत का जिक्र कर रही हूं। क्या पता आपके साथ भी होता हो?
आगे सुनिए । तो हुआ ये की आज हैरत में पड़ गई मैं,,! जब फुटपाथ ने भी कविता सुना दी मुझे बोली--
     विकास अक्सर विध्वंस
     के मलवे पर अपनी
     नींव बनाता है,,,
     परिवर्तन का दौर
     निर्ममता से सारे
    मोह-बंधनों को
    खोद,
    नए स्तम्भो के लिए
    जगह बनाता है,,,
    हाँ,,,,आगत निश्चय ही,
     विगत को बेहतर बनाने
     के लिए ही होता है,,,
     पर फावड़े की चोट,
      अंतस के गहनतम्
      एहसासों को खोद
       देता है,,, 
     
        फुटपाथ-
मै  कविता की संवेदनशीलता से भीतर तक स्पर्शित हो चुकी थी। फुटपाथ अब खामोश था। जत्र-तत्र खुदे हुए अपने शरीर के भागों को देखता । मै उसकी कही काव्य वेदना की समीक्षा करती सड़क पर आगे बढती रही।

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