शुक्रवार, 19 जनवरी 2018

मेरे मन का मधुमासी कोना,,,

                      (चित्राभार इन्टरनेट)

सुनो!
जब से होश
सम्भाला है,,,
खुद को अनगिनत
बेड़ियों में जकड़ा पाया है,,,

घर की
चार दिवारी के बाहर
खुद को भूखी आंखों
से घूरता पाया है,,

ऐसा भी नही के
उन चार दीवारों में भी
मेरा वजूद बहुत सुरक्षित रहा,
घुटता रहा दम, और कुछ
ना कहा,,,
पर घर के कोनों में छिपी
गंध अक्सर नज़र अंदाज़
कर दी जाती है,,,
उसको किसी कोने में बैठ
अश्कों की धार से
धो दी जाती है,,,,

जिस्म में जान है,
तो जीने के बहाने
बन ही जाते हैं,,,,
किसी दरार सें उम्मीदों
के उजाले दिल के कोनों में
घर कर ही जाते हैं,,,,,,

पांव तले की ज़मीन
जितनी पत्थरीली होती है
सपनो के आसमां उतने ही
नर्म गलीचों से होते हैं,,,

वहाँ धूप बदन को
झुलसाती नही,,
पेड़ों पर पीली पात
नज़र आती नही,,,
वहाँ नदियों में विद्रोह
नही होता,,
फूलों में कुचले जाने का
क्षोभ नही होता,,,

वहाँ सबकुछ है
हरा-भरा,,,
सदा बंसती सजी
हुई धरा,,,,
आहहहह,,मेरे दिल का
यह मधुमासी कोना,,,,,!
मुझे जिलाए रखता है
यह सपन-सलोना,,,

जब ज़मीनी
पत्थरों पे चल कर
थक जाती हूँ,,,
मैं दौड़ कर अपने
स्वप्निल कोने में
छुप जाती हूँ,,,

अपने जख्मों को
नदिया के मीठे
पानी से नहलाती हूँ,,,
फिर देर तक किसी
पेड़ की घनी छांव
तले बैठ,
कुछ नए ख्याली गजरे
बनाती हूँ,,,,,
बड़े प्यार से उन्हे
अपनी चोटी में
फंसाती हूँ,,,
उसकी खुशबू से लिपट
कुछ पल वहीं
सो जाती हूँ,,,,

एक नींद पूरी कर
मैं वापस धरातल
पर लौट आती हूँ,,,
और रोज़ के कामों
में किसी मशीन सी
जुट जाती हूँ,,,,https://youtu.be/tVU0ZQy__QI

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