शुक्रवार, 29 जून 2018

खुली हथेलियां,,,बारिश में

                      चित्राभार इन्टरनेट)

एक प्रयास चित्र पर
🍃🍃🍃🍃🍃🍃

उमस बहुत थी,,,
चिलचिलाहट तपिश के साथ,,
कचोटने लगी थी बदन को,,,
कुछ था जो बादलों मे
बूँदों का बोझ बढ़ाता
जा रहा था,,,,,,
कुछ फटकर ,,
बेतहाशा बरसने को बेताब, ,,,,,,
,,,,,,,और देखो,,,,,,,,,
वो फट पड़ा,,,
यकायक,,,बेख़ौफ़
बेपरवाह,,,आज़ाद,,
हर बेड़ियों से होकर,,,
बरस पड़ा है मुझ पर,,,
मैने भी छोड़ दिया है पूरा
जिस्म आज़ाद,,,,,,,
नही कर रहीं मेरी हथेलियां,,,
बारिश को मुट्ठियों में कसने की,कोशिश,,,,
खोल दिया है हथेलियों को,,,
इस उम्मीद में,,,,
,,,,,के,,,,
शायद बह जाए लकीरों
मे छुपा मेरा चिलचिलाता नसीब,,
कुछ सावनी सी हरियाली
 की आस में मैं भींगती रही,,,
भींगोती रही,,,,

लिली मित्रा🍃

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