बुधवार, 27 जून 2018

तब मानू तुम मेरे हो

कुछ अपनी भी रिश्तेदारी हो
मजबूरी दुनियादारी हो,,
तेरी तनख्वाह मे जानम
कुछ मेरी भी हक़दारी हो,,

भाजी-सब्जी की बाते हों,
एक घर में दो अन्जाने सी,
हम दोनो की भी रातें हों,,
चाय का कप ले संग साजन
घर-गृहस्थी की सौगाते हों,,

लिपटे कई झमेले हों
तब तो मानू तुम मेरे हो,,


हर बात मेरी ही चलती हो,,
मर्जी तेरी ओ बालमवा !
झकमार के हामी भरती हो,
बाहर जितनी भी ठकुराई झाड़ो,
घर की ठकुराई मेरी हो,,

सुख-दुख के सजते मेले हो
तब तो मानू तुम मेरे हो,,,

ये एहसासों में कैसा जीना?
दिल की धड़कन तो कहते हो,,
जीवन की सरगम गहते हो,,
दो शब्द कभी तो बिन बोले ,
बस ख्यालों में जी लेते हो,,!!

दुनियावी बातों के ठेले हों
तब तो मानू तुम मेरे हो,,,

लिली

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