मंगलवार, 23 अक्तूबर 2018

तुम सूर्य हो मेरी सृष्टि के,,

                            (चित्राभार इंटरनेट)

तुम ना देह हो,
ना देह पिंजर में कैद प्राण,,
तुम तो सूर्य हो मेरी सृष्टि के,,
तुमसे ही उजास पाता है मेरा हर कोना,,
कभी जो छुप जाते हो तुम सघन मेघ बिच,
तड़प उठती है मुझ पर पल्लवित होती
हर जीवन लीला,,
शिशिर के भयानक प्रकोप से,
सिकुड़ जाती है,
जम जाती है बड़े-बड़े शिलाखंडों सी,,,
तुम ज्येष्ठ की कड़कती रोध बनते हो,,
तो मैं मुस्कुरा कर वाष्पित कर देती हूं
अपना नेह जल,,
और बरस कर शान्त कर देती हूं तुम्हे,
फिर तुम संग सावनी फुहार में भींग कर,
हरितिमा लिए नवयौवना सा, लहलहा उठता है,
मेरा रोम-रोम, मेरा अंग-प्रत्यंग,,,,
कहीं पढ़ा था मैने,,,,
"कुछ लोग ज़िन्दगी में नही होते,,,ज़िन्दगी होते हैं,,",,,
तुम से जुड़ कर सही अर्थों में इस वाक्य का
मर्म पहचाना💖
लिली🌿

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