(चित्राभार इन्टरनेट)
आज एक बहुत ही खूबसूरत कविता पढ़ी,,और दिन ब दिन कविताओं पर बढ़ती मेरी आसक्ति पर आज कुछ ऐसी अभिव्यक्ति निकल पड़ी,,
🌿🌷🌿🌷🌿🌷🌿🌷🌿🌷🌿🌷🌿🌷🌿
हर कविता यही चाहती है,,
'सम्पूर्ण एकाधिकार",,,,
'उस पर,,,,,
जिसे वह चाहती है'!!
धीरे-धीरे जकड़कर
कैद कर लेना चाहती है
उसकी सोच,,,उसका शरीर,,
उसकी नींद,,,,उसका चैन,,,
उसका हास्य,,,उसका रुदन
उसकी रुचि,,उसकी अरुचि
उसके अस्तित्व के हर पोर
में फंसा कर अपने
'सम्पूर्ण एकाधिकार' की जड़ें,,
'#लाॅक' कर देना चाहती हैं,,,,
फिर भीड़ में,,एकान्त में,,
जड़ में,,,चेतन में
प्रस्फुटित अंकुर सी
आतुर दृष्टि लिए,,
सदा यही एक धुन
सुनना चाहती हैं,,,,,
"तुम मेरी हो!!"
"तुम मेरी हो!!"
"तुम मेरी हो!!"
भले ही होंठ हिला
कर कहने में
हिचकिचाती हों,,,
पर कहने से भी चूकती नहीं,,,,
हर बार नए रूपधर
समर्पिता सी ,,
बिखर जाती हैं
हृदय के नरम बिछौने पर,,
कोई बताएगा मुझे,,,,,,,
ये "कविताएं भी क्यों,,
हम 'स्त्रियों' जैसा '#बिहेव'
करती हैं?????"
🤔🤔😄😄
लिली🌿🌿
आज एक बहुत ही खूबसूरत कविता पढ़ी,,और दिन ब दिन कविताओं पर बढ़ती मेरी आसक्ति पर आज कुछ ऐसी अभिव्यक्ति निकल पड़ी,,
🌿🌷🌿🌷🌿🌷🌿🌷🌿🌷🌿🌷🌿🌷🌿
हर कविता यही चाहती है,,
'सम्पूर्ण एकाधिकार",,,,
'उस पर,,,,,
जिसे वह चाहती है'!!
धीरे-धीरे जकड़कर
कैद कर लेना चाहती है
उसकी सोच,,,उसका शरीर,,
उसकी नींद,,,,उसका चैन,,,
उसका हास्य,,,उसका रुदन
उसकी रुचि,,उसकी अरुचि
उसके अस्तित्व के हर पोर
में फंसा कर अपने
'सम्पूर्ण एकाधिकार' की जड़ें,,
'#लाॅक' कर देना चाहती हैं,,,,
फिर भीड़ में,,एकान्त में,,
जड़ में,,,चेतन में
प्रस्फुटित अंकुर सी
आतुर दृष्टि लिए,,
सदा यही एक धुन
सुनना चाहती हैं,,,,,
"तुम मेरी हो!!"
"तुम मेरी हो!!"
"तुम मेरी हो!!"
भले ही होंठ हिला
कर कहने में
हिचकिचाती हों,,,
पर कहने से भी चूकती नहीं,,,,
हर बार नए रूपधर
समर्पिता सी ,,
बिखर जाती हैं
हृदय के नरम बिछौने पर,,
कोई बताएगा मुझे,,,,,,,
ये "कविताएं भी क्यों,,
हम 'स्त्रियों' जैसा '#बिहेव'
करती हैं?????"
🤔🤔😄😄
लिली🌿🌿
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