'बातें ' ढेर सारी भी नही
और कम भी नही ,,
थोड़ी थोड़ी हर रोज़,,
ना कम ना ज्यादा
जैसे चाय में शक्कर
और सब्ज़ी में नमक।
जार में रक्खी कुकीज़ को
हर रोज़ बस
दो-दो कर के खाना
जैसे-
एक कप काॅफ़ी को
छोटी-छोटी चुस्कियों में सिमटाना,,
हाँ, बहुत ज़रूरी है तेरा मुझसे
मेरा तुझसे किसी भी 'बात' पर
या तो उलझ जाना,,
या सुलझ जाना,,,,
जैसे धूप के पीले धब्बों से
दरख़्तों की दुखती पीठ
को सेंक जाना
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