(चित्राभार इंटरनेट)
आज एक अपराध करने जा रही हूँ हृदय में दुस्साहस भर,,, कवि गुरू रविन्द्र नाथ जी की एक रचना ' तुमी तो शेई जाबे चोले' को हिन्दी में व्यक्त करने का,,, क्षम्य नही है यह दुःसाहस पर मन किया तो कर गई,, तो अपने दोनो कानो को पकड़ ,,आपके समक्ष रचना प्रस्तुत करती हूँ,,
हे प्रियतम्!!
तुम्हे तो चले ही जाना है
शेष का अवशेष भी
ना बाकी रहना है,,,,
हे प्रियतम!!
तुम्हे तो चले ही जाना है,,,,,
मेरे हृदय को व्यथित कर
तुम तो चले जाओगे,,,
पर अंतस में सब,,
जीवित ही रहना है,,
,,,के,,,
हे प्रियतम!!
तुम्हे तो चले ही जाना है,,,,
हे पथिक!!
अलमस्त सरीखे,,
आ पहुँचे मेरे कुंजहृदय में
निज चरन से अब,
दल दो,, जो भी,,
ढक लूगीं निज अंतस रंध्रों में,,
सांझ ढले आधार तले
बैठ अकेली हृदय भरे,,
निज व्यथा सहेजूँ,,
धर मधुर करे,,
विदा-बंसुरी के करूनाते स्वर,
कर देगें मग्न,,
संध्या अंबर,,,,
दृगजल में मैं,,
दुख की शोभा भर,,,
रख दूँगीं सबकुछ
नूतन कर,,,
क्योंकि,,
हे प्रियतम्!!
तुम्हे तो चले ही जाना है
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