रविवार, 20 मई 2018

मुझे एक पेड़ बना देता,,,

                      (चित्राभार इंटरनेट)

तपती धूप में
अकेला,,,
घनी छांव लिए
वो शजर अलबेला,,

कौन उसकी झुलसती
शाखाओं को सिंचता है,,?
वो तो खुद ही की जड़ों से
पाताल सें नमीं खींचता है,,,,
मुसाफ़िर दो घड़ी सुस्ता के
नर्म निगाहों से सहला गए,,
वो काफ़िर सा अपनी ही
दरख़्तों को भींचता है,,

कोई चेहरा नही उसका,
जिसपे उभरते जज़्बात पढ़ती,,,,
डाल से झरते पीले पत्तों की,
अनकही पीड़ा समझती,,
मेरे मालिक!
तू मुझे भी एक,
पेड़ ही बना देता,,
मेरे अंदर की कचोटों को
भूरे तने की खरोंचों सा
सजा देता,,,
सीने का लहू सूखी टहनियों
सा गिरा देती,,
कोई बेघर सी चिड़िया
उसे अपने घरौंदें में जगह देती,,

कोई बवंडर सा आता तूफान,
मेरे वजूद को हिला देता,,,,
मेरे थकते हौंसलों को
अपनी आगोश में गिरा लेता,,,

मेरे मालिक!!तू मुझे भी
एक पेड़ बना देता,,,,,,,

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