(चित्राभार इंटरनेट)
मन में मुरतिया श्याम की बसाय के
चली राधा पनघट सुध बिसराय के
तन कुंज लता सम लहराय के,,
दृग अंजन में खंजन छुपाय के,,
ल्यों मनमोहन मोहे अंग लिपटाय रे!
रहो हरित बदन चटख कुम्लाय रे!
पग डगमग भटक कित जाय रे!
मदन मन-मृग मोहित तोहे बुलाय रे,,!
गौरैया हिय की अकुलाय हो!
पैजनिया पग की सुस्ताय हो!
पिय प्रीत गागर छलकाय हो!
भरो अंक हरी काहें भरमाय हो!!
लिली 🌿
मन में मुरतिया श्याम की बसाय के
चली राधा पनघट सुध बिसराय के
तन कुंज लता सम लहराय के,,
दृग अंजन में खंजन छुपाय के,,
ल्यों मनमोहन मोहे अंग लिपटाय रे!
रहो हरित बदन चटख कुम्लाय रे!
पग डगमग भटक कित जाय रे!
मदन मन-मृग मोहित तोहे बुलाय रे,,!
गौरैया हिय की अकुलाय हो!
पैजनिया पग की सुस्ताय हो!
पिय प्रीत गागर छलकाय हो!
भरो अंक हरी काहें भरमाय हो!!
लिली 🌿
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