रविवार, 21 जुलाई 2019

हाँ,,मै ही ज़िन्दा हूँ


#हाँ_मै_ही_ज़िन्दा_हूँ

चिथड़ों मे लिपटा
सरदी,गरमी,बरसात
हर मौसम में
सड़क के किनारे
फुटपाथ पर
दुकानों के शेड तले
और आजकल
बरगद के पेड़ के नीचे
अपना डेरा जमाए है
खुद में बड़बड़ाता
खोखली निगाहों में
ना जाने क्या कुछ भरता
जी रहा है,, या मुर्दा है?
नही पता !
खुड़दड़ी सड़क पर
अपनी पीठ को
घस घसकर खुजलाता
मंदिर के पास लगे
नलके के नीचे
जब तब खुद को भीगाकर
गरमी को दुलारता
वो जी रहा है,,या मुर्दा है?
नही पता!
एक कम्बल और
गुदड़ी की पोटली
सी सम्पत्ति
को खुद से चिपकाए
वो खुद गठरी बना
निश्चिंत सोता मिलता है
अक्सर मुझे
और मैं,,,,,
डबल बेड के आरामदायक
फैलाव में फैलकर भी
ठंडे एसी के सुकून
भरे माहौल में भी
बेचैन,,थकी,,और उलझी हुई!!!
शायद जीवन तो मै ही जी रही
वो तो मुर्दा है,,!
अपने होने का कारण
खोजती
लक्ष्यों की लिस्ट बनाती
उन तक पहुँचने
के पथ खोजती
हाँ,,,, मै ही ज़िन्दा हूँ,,
लिली😊

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