(प्रिय सखी गीतांजली को आभार)
मनु हृदय का हार बनूँ?
बाहुपाश मे उनके कसकर,
उच्छावासों से मौन संवाद करूँ।
बोल सखी क्या श्रृंगार करूँ,
पिय नयनन् की ठाह बनूँ
या तज सारे सौन्दर्य प्रसाधन
सहज रूप मे आन मिलूँ ?
लाज शरम से नयन झुकाकर
प्रेमपाश का वरण करूँ,
या शब्दों मे उनको भरकर
प्रीत गीत का पाठ करूँ ?
नृत्यमयी हो धरा गगन सब
प्रिय संग ऐसा रास रचूँ,
अंग अंग हो प्रीत की थिरकन
कौन सा ऐसा ताल गढूँ ?
बोल सखी क्या बात करूँ?
मनु हृदय का हार बनूँ.......
मन के भावों को सखी की प्रीत की छॉव में शब्दों में घोलकर,
जवाब देंहटाएंबात बड़ी कह गई
रसों की धार बह गई
मन के अनुभवों की बारिश
चाहतें बाजुओं में गह गई।
अरे वाह!!! आपकी प्रतिक्रिया पाकर मन आन्नदित हो उठा ।
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