ना जाने क्यों भर आई अंखियाँ,
ओ प्रिय हमने न की कोई बतियां।
प्रिय बड़ी बैरन भई अंखियाँ,
तुम नयनन् मे बसे,
इन्हे सुहाए ना ये बतियां,
येही कारन भर भर आए अंखियाँ
असुअन की धार संग
पिया को बहाए अंखियाँ।
ना जाने क्यों भर आई अंखियाँ,
ओ प्रिय हमने न की कोई बतियां
सुन रे पिया बड़ी चालबाज भईअंखियाँ
जो देखूँ नयन भर के तोहे
पलकन ने झुकाए अंखियाँ
प्रीत की तोसे न बतावन दे बतियां।
ना जाने क्यों भर आई अंखियाँ,
ओ प्रिय हमने न की कोई बतियां
पिया तुम बतियाओ मोह से
तो लजाए सकुचाये यह अंखियाँ
बिन कहे सबहिं से रहि बोले
सौतन बन गयी सजन यह अंखियाँ
हाय बड़ी बैरन भई अंखियाँ
येही कारन बिन बात भर आए अंखियाँ।
इतनी व्यापक सोच आँख के माध्यम से काव्य में प्रस्तुत करना एक सयंमित सोच और नियंत्रित भाव लेखन का कौशल है। कवियत्री ने प्यार को आँख के माद्यम से हिंदी की इस आंचलिक शब्दावली में पिरोना मन को पुलकित कर देता है। इस कठिन पर खूबसूरत काव्य लेखन के लिए बधाई।
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