बुधवार, 8 मार्च 2017

फिर 'मै',,,,,,,, 'मै' नही रहती,,,,,,,,

                       (चित्र इन्टरनेट से)
       

मुझे
तुममे रहने दो,,,,,
नही चाहती कि,
तुम्हारे हृदय के
मखमली गलीचों से
बाहर कदम निकालूँ,,,,,
बहुत नरम हैं ये
एहसासों के
पुरसुकून गलीचे,,,

ये जो तुमने मेरे लिए
अपनी प्रीत-प्रसून से
सजा दिये है,,,,,,
मेरे सिरहाने
अपनी सुगंधित,
सुवासित
भावाभिव्यक्तियों के
रजनीगंध
आसक्ति के गुलदान मे,,,,,,,
'मै' ,,,,, अब 'मै' नही रही,,,,,

कभी तुम्हारी
अभिव्यक्तियों की
रजनीगंधा सी ,,,
कभी,,तुम्हारे
प्रीत-प्रसून सी,,,,
कभी तुम्हारे एहसासों के
मखमली गलीचों सी,,,,,,
महक रही हूँ ,,,
चेतना शून्य हो
विलीन हो रही हूँ तुममें,,,,,,

ये जो रूनझुनाते नूपुर
तुम्हारी यादों के,,,
जब हौले से बजते हैं,,,,,,,
इनकी खनक
नख से शिख तक
 झनझना देती है,,,,,
जब प्रेमसिन्धु से गहरे
तुम्हारे दो नयन
मुझे निहारते हैं,,,,,,,
मै एक ही गोते मे ,
जैसे कहीं
डूब जाती हूँ अनंत में ,,,,

अद्भुत रूपहला संसार है,,,
शान्ति है,,,
परमानंद है,,,
और बस
मै और तुम हैं,,
अपने अलौकिक संसार मे विचरते,,,,

मेरा नाम
सोचने मात्र से,,,,,,
 तुम्हारे हृदय मे प्रवाहित
पुरवैया से भाव ,,,,,
अधरों पर
मुस्कान के कम्पित पत्तों से
झूम उठते हैं,,,,,,
फिर 'मै' ,,,,, 'मै' नही रहती,,,,

पुरवैया के झोंकों से
प्रभावित मेघ सी,,,,,
उल्लास के क्षितिज में,
उमड़ती-घुमड़ती
बरस जाने को आतुर हो
हवा संग
तैरने लगती हूँ,,,,

ये बलिष्ठ स्कन्ध,,
ये बाहुपाश,,,
हृदय के स्पंदन ये गूजँता,,,
'मेरी प्रिये" का
रसचुम्बित
चुम्बकीय सम्बोधन,,,,,,,,,,,,!!!!!!!!!!
फिर 'मै' ,,,,,, 'मै' नही रहती,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

मै
चंचल 'जाह्नवी' सी लहराती,,,,,,,,,
तुम्हारे हृदय के
महासागर मे
घुल जाती हूँ,,,,,,
उछलती ,,अह्लादित 'मृग' सी
कुलाचें भरती,,,
तुम्हारे विस्तृत वक्षस्थल के,,
अभयारण्य् मे 
लुप्त हो जाती हूँ,,

'मुझे','
तुममे' ही एकसार होकर
गढ़ना है जीवनकाव्य,,,
'मुझे',,,,, बससससससस्
तुममे ही रहना है,,,,,,
तुममे ही रहना है,,,,,,,,!!!!!!


1 टिप्पणी:

  1. एक बार फिर शब्दों के गागर में भावों की गंगा को लबालब कुशलतापूर्वक भर एक बेहद संवेदनशील मनोभाव को अत्यधिक मनोहारी रूप में प्रस्तुत किया गया है। लेखन की कुशलता देखते ही बनती है।
    शंकर जी ने जिस तरह वेगमयी गंगा को अपनी जटा से नियंत्रित कर प्रवाहित किया उसी तरह इस लेख में भी तीव्र और सुकोमल भावों को अत्यधिक कुशलता से उचित शब्दों से नियंत्रित कर अभिव्यक्त किया गया है। बधाई।

    जवाब देंहटाएं