बुधवार, 28 जून 2017

मेरी महाभारत,

                        (चित्र इन्टरनेट से)

रणभूमि स्वयं सजाई है,
खुद से ही हाथा-पाई है।
रच डाले कितने चक्रव्यूह,
अभिमन्यु सी स्थिति आई है।

खुद के ही गर्भ से जनितशत्रु,
मुझ पर ही करते तीक्ष्ण प्रहार।
कट-कट कर गिरते अंग-प्रत्यंग,
अन्तर मन लगभग धराशायी है।

मौन भरे हुंकार,आ दुष्ट समक्ष,
क्यों करता छुप छुपकर प्रहार?
कितनो को मार गिराया है,
कितनों की बारी आई है।

अश्रु नही अब रक्त बहे,
कटु सत्यों के घाव सहे।
कोई तो निष्कर्ष मिले अब, 
सांझ भी ढलने को आई है।

संहार हो रहा निर्ममता से,
जो भाव सुकोमल,नर्म सरीखे थे।
पाषण खड़े अब उन जगहों पर,
अभिव्यक्ति बड़ी दुखदाई है।

अभिमन्यु सा तोड़ चक्रव्यूह,
दोनो हस्तों से तलवार उठाई है।
खुद की रचना को भेदूँ कैसे ,
विकट समस्या मुँह बाई है।

अट्टाहासों से गूँज रहा सब ,
विकराल बड़ा भयदायी है।
इस महाभारत से निकलूँ कैसे,
यह ग्रन्थ मुझ से ही जाई है।

3 टिप्‍पणियां:

  1. ओह ....क्या लिख दिया तुमने .... हर वाक्य में क्या क्या समा गया .. बहुत अच्छा लिखा. .. ये महाभारत हर इंसान की जिंदगी में चल रहा...हम खुद ही चक्रव्यूह रचते हैं फिर सोचते की कैसै इससे बाहर निकले पर कई बार देर हो जाती love u lily for what all u share for what all u trace as through your writings i go into deep thoughts which is actually needed....love u a tonnes

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  2. खुद की रणभूमि सजाना और खुद से हाथापाई करना कविता की आरंभिक पंक्तियाँ हैं जो पाठक को एक झटके में काव्य में ऐसे उतार देती है जैसे होली पर्व पर रंग कुंड में किसी को उतार लिया जाता है। रंग तो भींगाता है पर लिली जी की कविता अनुभूतियों से गुजारती है। कुरेदती है

    खुद के ही गर्भ से जनित शत्रु का तीक्ष्ण प्रहार मानवजाति के आदि से लेकर अब तक की स्वार्थ, लोभ और मोह को एक बार पुनः दर्शा रही पंक्तियाँ हैं। मन हुंकार कर दुष्ट को समक्ष आने का आग्रह करता है पर दुष्ट हिलमिल, हंस, खिलखिलाकर घात लगाए प्रहार कर जाता है। वर्तमान जीवन का एक सबल पक्ष है यह। अश्रु नहीं बल्कि रक्त बह रहा है और कटु सत्य के घाव लग रहे। अपने जब निर्दयी होजाएँ तो क्या हो।

    इस प्रकार लिली जी ने बाह्य जगत, पारिवारिक आदि जीवन को कविता में बखूबी उतारा है। कविता सिर्फ इतना ही बोल शांत नहीं होती है। इस कविता की खूबसूरती यह है कि यह व्यक्ति के अंतर्मन की भी टोह ले रही। मन के भीतर का महाभारत और उस महाभारत में उलझा व्यक्ति क्या करे। कृष्ण की भांति लिली जी भी अपनी कविता में संघर्ष करने की बात कह रही हैं।

    काव्य ने भारतीय नारी की सोच, समझ और जुझारूपन को भी दर्शाया है। परिस्थितियों को अपने अनुरूप ढालने पर आमादा आधुनिक नारी। घूंघट कहां गया ?

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  3. मेरे भीतर भी आजकल एक महाभारत
    कोलाहल करती सी दिखती है।
    क्या प्रतिबिंबित होते युद्ध को
    कोई रोक पाया आज तक।।
    ♡♡♡♡♡♡♡♡♡♡♡
    लिलि आप बहुत खूबसूरत लेखिका है।एक एक शब्द आपका दिल को छूता है। लिखते रहिये😍

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