(चित्र इन्टरनेट से)
प्रतिदिन सोशल मिडिया पर नारी की फटी-चीथड़ी ,,आंखों मे आंसू और गोद मे बिलखते बच्चों की तस्वीरों,,और अत्यन्त दारूण पोस्टों को देखते देखते मै थक चुकी हूँ,,,ऐसा नही की मै समाज मे हो रहे नारी शोषण की पक्षधर हूँ। मै भी एक नारी हूँ ,,,और इस तरह कि नारी के प्रति हो रही सामाजिक विद्रुपताओं से मेरा हृदय छलनी नही होता,,। पर इस सबसे अधिक हृदय विक्षिप्त तब होता है जब लोग मात्र प्रसिद्धि के लिए इन विषयों पर बड़ी नग्नता के साथ चर्चा करते दिखते हैं।
सोशल मीडिया पर अपनी पोस्टों पर ढेरों लाइक्स की मंशा से खोज-खोजकर विचित्र लेख और तस्वीरें पोस्ट करते हैं । भाषा और विषय इतना शर्मसार कर देता है कि,,लगता है,,,हे ईश्वर हमे स्त्री क्यों बनाया??? अंतर मन रोष से विद्रोहित हो उठा है।
सोचा क्यों ना आज पुरूषों को विषय बनाया जाए,,,लोगों मे बड़ी जिज्ञासा होती स्त्री रहस्यों को सुलझाने की,शोध करने की,,,आज मेरा मन कर रहा है मै पुरूषों के जीवन पर शोध करूँ उनके जीवन की व्यथाओं को जानूँ,,,कुछ प्रश्न हमेशा उठते हैं मेरे मन मे,,,
1# क्या पुरूषों का जन्म नारी जीवन पर शोध करने के लिए हुआ है? जब देखो जहाँ देखो चर्चा का एक ही विषय 'नारी' सड़कों पर,,सार्वजनिक स्थलों पर,ऑफिस, सोशल मीडिया ,,सब जगह,,ऐसा क्यों???
2# हम महिलाएं घर सम्भालती हैं पति सम्भालती हैं,,पुत्र सम्भालती हैं,,टीफिन ,खाना घर बाहर,,सब,,,उफ्फ जब सब हम ही कर लेती हैं तो आप पुरूष क्या करते हैं,,,???? आपकी भी तो कोई दिनचर्या होती होगी,,?? आप भी तो सारा दिन घर से बाहर ,,लू धूप एवं अन्य प्राकृतिक विपदाओं को सहन कर अपने परिवार के आर्थिक सहयोग मे लगे रहते हैं। इस पर कोई पोस्ट क्यों नही आती?
3# महिलाओं की बायोलाॅजिकल समस्याओं को लेकर( पीरियड्स से लेकर गर्भधारण और उसके पश्चात भी) को लेकर कई दर्दनाक पोस्टें आती हैं। पुरूष की इस तरह की बायोलाॅजिकल समस्याओं को लेकर कोई पोस्ट नही आती,,,क्या वे हाड़-मांस के बने नही होते,,हाॅरमोनल समस्याएं उनमे नही होती,,,इनको विषय क्यों नही बनाया जाता?
4# स्त्रियों के परिधानों को लेकर आए दिन चर्चा गवेषणाएं बुद्धिजीवी वर्ग या सामान्यजन करते रहते हैं।,,,,,,, ये पुरूष जो हाफ पैंट और बनियान या और भी अजीबो-गरीब अंगप्रदर्शित करते परिधान पहन कर घूमते रहते हैं ,,उनको क्यों नही मुद्दा बनाया जाता,,ऐसे अर्द्ध नग्न पुरूषों को देखकर नारी मन मे विकार उत्पन्न हो सकते हैं। क्यों नही पुरूषों को मशवरे दिए जाते,, कायदे के कपड़े पहनों,,।
5# खुले मे शौंच ना करें,, महिलाओं के लिए शौंचालय बनवाएं,,,, पर कोई इन पुरूषों के लिए 'मूत्रालय' बनवाने का कष्ट करेगा,,? यत्र-तत्र सर्वत्र मूत्रालय,,, !!! मूत्रालय होते हुए भी खुले मे मूत्रदान ,,।इस को विषय क्यों नही बनाया जाता????
6# बलात्कार,,,, क्या केवल नारी का होता है,? ऑफिसों मे क्या केवल महिलाओं का दैहिक शोषण होता है,?? पुरूषों का भी होता है,,, फिर मात्र महिलाओं के साथ हुए बलात्कारों का पूरे क्रमबद्ध तरीके से विस्तृत वर्णन करती पोस्टें लिखी जाती हैं और प्रचारित की जाती हैं?? पुरूषों के साथ हुए बलात्कारों पर लिख कर क्यों नही प्रचारित किया जाता,,। इसे क्यों नही विषय बनाया जाता??
7# नाबालिक लड़कियों के साथ ही दुरव्यवहार नही होता साहब,,नाबालिक लड़कों को भी इस हैवानी अमानुषिक यतना का जहर पीना पड़ता है,, इसको विषय क्यों नही बनाया जा सकता,,?
8# बिस्तर पर केवल महिलाओं का पति द्वारा इच्छा के विरूद्ध शारीरिक शोषण नही होता,,, महिलाओं द्वारा भी अपने पतियों पर जबरदस्ती करने की वारदातें होती हैं,,उन्हे प्रकाश मे क्यों नही लाया जाता,,?
9# घरेलू हिंसा की शिकार क्या केवल महिला ही हैं,,?? जी नही बहुत से ऐसे पुरूष भी हैं,,जो घरेलू हिंसा का शिकार हैं,,और उनकी सुनवाई कहीं नही होती,,,यहाँ तक की न्यायालयों मे भी गुहार नही सुनी जाती,, क्योंकि न्यायव्यवस्था ने "नारी सशक्तिकरण" के अन्तर्गत कानून महिलाओं के पक्ष मे अधिक कर रखे हैं। ऐसी स्थिति मे चाह कर भी प्रताड़ित पुरूषों को न्याय नही मिल पाता। ऐसे तत्थों का उद्घाट्य बहुतायत मे क्यों नही?
हो सकता है और भी कई ऐसे विषय हैं जिनसे मैं अनभिज्ञ हूँ। परन्तु जितने बिन्दु मैने ऊपर लिखे,,शायद यह भी कम नही हैं,, सोशल मीडिया पर विषय बनाकर चर्चा करने के लिए।
अंत मे बस इतना ही निवेदन नारी हो या पुरूष दोनो ही ईश्वर की बनाई रचना हैं दोनो को 'मनुष्य' की श्रेणी मे रखिए। उनके मानवीय गुणों को समझिए ना की उनकी प्रदर्शिनी लगाइए। ईश्वर द्वारा रचित उनकी शारीरिक विभिन्नताओं का सम्मान कीजिए,,,उनको विषय मत बनाइए। यदि मै कुछ अनुचित और अवांछनीय कह गई तो क्षमा प्रार्थिनी हूँ। एक रोष था एक पीड़ा थी जो बह निकली। आशा है आप इन्हे समझने का प्रयास करेंगें।
धन्यवाद!!
प्रतिदिन सोशल मिडिया पर नारी की फटी-चीथड़ी ,,आंखों मे आंसू और गोद मे बिलखते बच्चों की तस्वीरों,,और अत्यन्त दारूण पोस्टों को देखते देखते मै थक चुकी हूँ,,,ऐसा नही की मै समाज मे हो रहे नारी शोषण की पक्षधर हूँ। मै भी एक नारी हूँ ,,,और इस तरह कि नारी के प्रति हो रही सामाजिक विद्रुपताओं से मेरा हृदय छलनी नही होता,,। पर इस सबसे अधिक हृदय विक्षिप्त तब होता है जब लोग मात्र प्रसिद्धि के लिए इन विषयों पर बड़ी नग्नता के साथ चर्चा करते दिखते हैं।
सोशल मीडिया पर अपनी पोस्टों पर ढेरों लाइक्स की मंशा से खोज-खोजकर विचित्र लेख और तस्वीरें पोस्ट करते हैं । भाषा और विषय इतना शर्मसार कर देता है कि,,लगता है,,,हे ईश्वर हमे स्त्री क्यों बनाया??? अंतर मन रोष से विद्रोहित हो उठा है।
सोचा क्यों ना आज पुरूषों को विषय बनाया जाए,,,लोगों मे बड़ी जिज्ञासा होती स्त्री रहस्यों को सुलझाने की,शोध करने की,,,आज मेरा मन कर रहा है मै पुरूषों के जीवन पर शोध करूँ उनके जीवन की व्यथाओं को जानूँ,,,कुछ प्रश्न हमेशा उठते हैं मेरे मन मे,,,
1# क्या पुरूषों का जन्म नारी जीवन पर शोध करने के लिए हुआ है? जब देखो जहाँ देखो चर्चा का एक ही विषय 'नारी' सड़कों पर,,सार्वजनिक स्थलों पर,ऑफिस, सोशल मीडिया ,,सब जगह,,ऐसा क्यों???
2# हम महिलाएं घर सम्भालती हैं पति सम्भालती हैं,,पुत्र सम्भालती हैं,,टीफिन ,खाना घर बाहर,,सब,,,उफ्फ जब सब हम ही कर लेती हैं तो आप पुरूष क्या करते हैं,,,???? आपकी भी तो कोई दिनचर्या होती होगी,,?? आप भी तो सारा दिन घर से बाहर ,,लू धूप एवं अन्य प्राकृतिक विपदाओं को सहन कर अपने परिवार के आर्थिक सहयोग मे लगे रहते हैं। इस पर कोई पोस्ट क्यों नही आती?
3# महिलाओं की बायोलाॅजिकल समस्याओं को लेकर( पीरियड्स से लेकर गर्भधारण और उसके पश्चात भी) को लेकर कई दर्दनाक पोस्टें आती हैं। पुरूष की इस तरह की बायोलाॅजिकल समस्याओं को लेकर कोई पोस्ट नही आती,,,क्या वे हाड़-मांस के बने नही होते,,हाॅरमोनल समस्याएं उनमे नही होती,,,इनको विषय क्यों नही बनाया जाता?
4# स्त्रियों के परिधानों को लेकर आए दिन चर्चा गवेषणाएं बुद्धिजीवी वर्ग या सामान्यजन करते रहते हैं।,,,,,,, ये पुरूष जो हाफ पैंट और बनियान या और भी अजीबो-गरीब अंगप्रदर्शित करते परिधान पहन कर घूमते रहते हैं ,,उनको क्यों नही मुद्दा बनाया जाता,,ऐसे अर्द्ध नग्न पुरूषों को देखकर नारी मन मे विकार उत्पन्न हो सकते हैं। क्यों नही पुरूषों को मशवरे दिए जाते,, कायदे के कपड़े पहनों,,।
5# खुले मे शौंच ना करें,, महिलाओं के लिए शौंचालय बनवाएं,,,, पर कोई इन पुरूषों के लिए 'मूत्रालय' बनवाने का कष्ट करेगा,,? यत्र-तत्र सर्वत्र मूत्रालय,,, !!! मूत्रालय होते हुए भी खुले मे मूत्रदान ,,।इस को विषय क्यों नही बनाया जाता????
6# बलात्कार,,,, क्या केवल नारी का होता है,? ऑफिसों मे क्या केवल महिलाओं का दैहिक शोषण होता है,?? पुरूषों का भी होता है,,, फिर मात्र महिलाओं के साथ हुए बलात्कारों का पूरे क्रमबद्ध तरीके से विस्तृत वर्णन करती पोस्टें लिखी जाती हैं और प्रचारित की जाती हैं?? पुरूषों के साथ हुए बलात्कारों पर लिख कर क्यों नही प्रचारित किया जाता,,। इसे क्यों नही विषय बनाया जाता??
7# नाबालिक लड़कियों के साथ ही दुरव्यवहार नही होता साहब,,नाबालिक लड़कों को भी इस हैवानी अमानुषिक यतना का जहर पीना पड़ता है,, इसको विषय क्यों नही बनाया जा सकता,,?
8# बिस्तर पर केवल महिलाओं का पति द्वारा इच्छा के विरूद्ध शारीरिक शोषण नही होता,,, महिलाओं द्वारा भी अपने पतियों पर जबरदस्ती करने की वारदातें होती हैं,,उन्हे प्रकाश मे क्यों नही लाया जाता,,?
9# घरेलू हिंसा की शिकार क्या केवल महिला ही हैं,,?? जी नही बहुत से ऐसे पुरूष भी हैं,,जो घरेलू हिंसा का शिकार हैं,,और उनकी सुनवाई कहीं नही होती,,,यहाँ तक की न्यायालयों मे भी गुहार नही सुनी जाती,, क्योंकि न्यायव्यवस्था ने "नारी सशक्तिकरण" के अन्तर्गत कानून महिलाओं के पक्ष मे अधिक कर रखे हैं। ऐसी स्थिति मे चाह कर भी प्रताड़ित पुरूषों को न्याय नही मिल पाता। ऐसे तत्थों का उद्घाट्य बहुतायत मे क्यों नही?
हो सकता है और भी कई ऐसे विषय हैं जिनसे मैं अनभिज्ञ हूँ। परन्तु जितने बिन्दु मैने ऊपर लिखे,,शायद यह भी कम नही हैं,, सोशल मीडिया पर विषय बनाकर चर्चा करने के लिए।
अंत मे बस इतना ही निवेदन नारी हो या पुरूष दोनो ही ईश्वर की बनाई रचना हैं दोनो को 'मनुष्य' की श्रेणी मे रखिए। उनके मानवीय गुणों को समझिए ना की उनकी प्रदर्शिनी लगाइए। ईश्वर द्वारा रचित उनकी शारीरिक विभिन्नताओं का सम्मान कीजिए,,,उनको विषय मत बनाइए। यदि मै कुछ अनुचित और अवांछनीय कह गई तो क्षमा प्रार्थिनी हूँ। एक रोष था एक पीड़ा थी जो बह निकली। आशा है आप इन्हे समझने का प्रयास करेंगें।
धन्यवाद!!
Behtareen lekh se dono ko ek saman kar samjhaya hai apne....
जवाब देंहटाएंHum alag nai hai dono...
...
Is post ko me share kar raha hu .... ustad
लिली तुमने अपने मन में उठते विचारों और भावो को लेखनी के माध्यम से अच्छी तरह प्रस्तुत किया है । हमारा समाज एक पुरुष प्रधान समाज रहा है और है और शायद रहेगा भी ।स्त्रियों के विचारों भावों दृष्टिकोणों मन मान व सम्मान की किसे चिंता है ।यहां नियम बनाने वाला भी पुरुष लागू करने वाला भी पुरुष और आंकलन करने वाला भी पुरुष ।हर तरह से पुरुष स्त्री को कमज़ोर ही समझता है ।शारीरिक मानसिक ओर आर्थिक दृष्टि से दूसरे स्थान पर ही रखता है ।स्त्री को किस रूप में प्रस्तुत करना है ये उसके ही अधिकारों में आता है और चाहे खुद के साथ ही शोषण क्यूँ न हो रहा हो कमतर समझना उसने सीखा ही नही झुकना उसने सीखा ही नही ।जिस दिन नारी को अपने से ऊँचा शायद ये सम्भव नही ,अपने बराबर का स्थान देगा उस दिन सोच सकते हैं कि स्त्री पुरुष शारीरिक रूप से भिन्न होते हुए भी एक है कोई किसी से कम नही ओर स्त्री उससे एक कदम आगे ही है इस सत्य को पुरुष भली भांति जनता है पर उसका अहंकार ये स्वीकर करने की आज्ञा ही देता ।यहीं समस्या है ।
जवाब देंहटाएंEk dum satya.. shayad is samaj main aurat ko hi har vishay main doshi thahraya jata hai... Isliye itni social media post..
जवाब देंहटाएंBoht hi mahatvpurna vishay...naari vishay boht hua ab purush ko b mauka milna chahiye..ek se ek mudde uthaye aapne..me naman krti hu aapki soch ko...evam himmat ko...purush adheen smaaj me purush ko hi vishay bnane k liye dhnywaad denge aapko ye purush kyuki shayad is taraf kabi kisi se ne nai socha hoga parantu naari ko b apne aap ko bechara kehna or kehlwaana bnd krna hoga...
जवाब देंहटाएं