(खत्म होता दिन और शुरू होती रात परन्तु वो भी अगली सुबह खत्म हो जाए)
तुम क्या खत्म कर देना चाहते हो?
हमारे बीच जो है
वो तो शुरू ही होता है
खत्म होने के बाद
तो ऐसा है
सुनो मेरी बात
आओ पहले जो खत्म होने
वाला है उसे खत्म करें,
ये रात खत्म होती है
और उसके बाद
जो दिन शुरू होता है
वो भी खत्म हो जाता है
रोज़ाना यही चक्र
घूमता रहता है
हम इस चक्र के साथ
थोड़े ही घूम -घूम कर
रोज़ एक दिन
और रोज़ एक रात
खत्म करेगें,,,
कुछ समझे? या नही?
हम तो शुरू होंगें
इस 'खत्मचक्र' के
खत्म होने के बाद,,,
क्योंकि,,,,,
उस शुरू का उद्गम शून्य में
होता है, ,
और मुझे ऐसा लगता है
शून्य में सब कुछ
अंतहीन होता है,,,
तुम क्या खत्म कर देना चाहते हो?
हमारे बीच जो है
वो तो शुरू ही होता है
खत्म होने के बाद
तो ऐसा है
सुनो मेरी बात
आओ पहले जो खत्म होने
वाला है उसे खत्म करें,
ये रात खत्म होती है
और उसके बाद
जो दिन शुरू होता है
वो भी खत्म हो जाता है
रोज़ाना यही चक्र
घूमता रहता है
हम इस चक्र के साथ
थोड़े ही घूम -घूम कर
रोज़ एक दिन
और रोज़ एक रात
खत्म करेगें,,,
कुछ समझे? या नही?
हम तो शुरू होंगें
इस 'खत्मचक्र' के
खत्म होने के बाद,,,
क्योंकि,,,,,
उस शुरू का उद्गम शून्य में
होता है, ,
और मुझे ऐसा लगता है
शून्य में सब कुछ
अंतहीन होता है,,,