रविवार, 22 सितंबर 2019

स्याह..भयावह नीला रंग

                    (चित्राभार इन्टरनेट)



अच्छा हुआ किया तुमने
जो सारे बादल अपने साथ ले गए
आसमान अब साफ़ दिख यहा है
अब मै देख पा रही हूँ साफ़-साफ़
के बादलों के पीछे ,दरअसर कोई
गांव नही है, वहाँ कोई दरिया नही बहता
जिसमें तैरती हैं चमकती हुई मछलियाँ
वहाँ कोई पेड़ नही जिसकी शाखाओं
पर चाँद टिका कर बैठता है अपनी ठुड्ढी
वहाँ तो बस गहरा गड्ढा है जो नीले रंग
में रंगा किसी कैनवास सा भ्रम देता है
ब्रश चुबो कर सपनीले रंगों से बनाने
जाओ अपने मन की आकृतियां तो,
खींच कर खुद में घसीट लेता है,
और यह गिरना बहुत भयावह होता है
किसी अंतहीन गुफा में गिरते जाना
जो काली नही नीली है, नीला रंग शायद
काले स्याह से ज्यादा डराता है,इस हालात में ये अब जाना। किसी धरातल पर पटके जाने की प्रतीक्षा में गिरते जाना..गिरते जाना...गिरते जाना... इस नीले डर से जुझते हुए जाना कि- ज़मीन पर गिर कर चोट खाना कितना सरल है। जख़्म कुछ दिनों में सूख जाते हैं। एक निशानी दे जाते हैं स्मृति के तौर पर। लेकिन आसमान पर गिरना- ना ज़ख्म दिखता है खुद को,ना सूख कर कोई निशान दे जाता है। नसों को दबोच कर खून सूखा देता है जिसको बयां नही किया जा सकता।
समझ नही आता मुझे बादलों से इतना बैर क्यों हो गया?
और आसमान से इतना ख़ौफ़?
लिली😊

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