दोहराव
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कान भी असहाय से
लाचारी में परदों को बाए
हर दोहराव को
प्रविष्टि देते जा रहे
'दोहराव'
वही एक सी बात,,
एक ही बात का
ना मुहँ थकते हैं
ना 'बातें' उकताती हैं,,
लकीर की फकीर सी
चलती हुई
बहुत गहरी धारियां बनाती,
जिसमें उनके खुद के ही पैर
धंस जाते हैं,,,
पर गन्तव्य प्रभावित नही होते,,
वे 'बेहया' से अपनी धुन में
अलमस्त,
हर दोहराव, का किसी
पीछे के गोदाम में
ढेर लगाते जा रहे।
अनगिनत मुहँ से निकली
एक ही बात
अनगिनत कानों तक का
सफर तय करती
एक ही बात
बार बार,,,,लगातार,,हरबार
खुद को दुहराती ,तिहराती
एक गोदाम में
कबाड़ की तरह जमा होती जाती हैं
लिली
लाचारी में परदों को बाए
हर दोहराव को
प्रविष्टि देते जा रहे
'दोहराव'
वही एक सी बात,,
एक ही बात का
ना मुहँ थकते हैं
ना 'बातें' उकताती हैं,,
लकीर की फकीर सी
चलती हुई
बहुत गहरी धारियां बनाती,
जिसमें उनके खुद के ही पैर
धंस जाते हैं,,,
पर गन्तव्य प्रभावित नही होते,,
वे 'बेहया' से अपनी धुन में
अलमस्त,
हर दोहराव, का किसी
पीछे के गोदाम में
ढेर लगाते जा रहे।
अनगिनत मुहँ से निकली
एक ही बात
अनगिनत कानों तक का
सफर तय करती
एक ही बात
बार बार,,,,लगातार,,हरबार
खुद को दुहराती ,तिहराती
एक गोदाम में
कबाड़ की तरह जमा होती जाती हैं
लिली