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गुरुवार, 1 जून 2017

ख़्याल भी कितने ख़्याली ,,,,

                    (आज चित्र मेरी सौजन्य से😃)

आज पहला दिन है गरमियों की छुट्टियों का,,, एक अजब सी बेफिक्री भी है ,,और गजब की फिक्र भी,,,,। बेफिक्री इस बात की घड़ी के आलर्म बजने से पहले ही आंख खोल,,, किचन मे घुसकर बच्चों के लिए दूध बनाकर देना,,स्कूल का टिफिन बनाकर रखना। उफ्फफफ् ये टिफिन मे क्या  बना कर देना है,,,!!! यदि इस मुद्दे पर सोचने बैठो तो विश्व की जटिल से जटिल समस्या भी फीकी पड़ जाए। कभी कभी तो समझ नही आता हम 'खाने' के लिए जन्मे हैं या 'खाना' हमारे लिए जन्मा है?????? 'टिफिन आइडियाज़'  पाने के लिए हम माँएं क्या नही करतीं???? दिन मे ना जाने अपनी कितनी सहेलियों से फोन पर,,व्हाट्सऐप पर,, इस गम्भीर समस्या पर चर्चा करते नही थकतीं,,,,,,। फिर भी रोज़ एक ही सवाल सुरसा राक्षसी के जैसे मुँह फाड़ता रहता है।
     देखिए मै कितनी अधिक प्रभावित और पीड़िता हूँ ,, 'टिफिन समस्या' पर बात क्या छेड़ी पैराग्राफ कितना लम्बा लिख गई,,, सुध ही न रही की मै लिख रही हूँ,, पल्लवी(मेरी सहेली) से फोन पर चर्चा नही कर रही !!!!अभी फिलहाल के लिए मैं 'टिफिन समस्या' की फाइल को छुपा लेती हूँ,,क्योंकि मुझे आभास हो रहा है कि मै जो लिखने के लिए बैठी हूँ,,उस विषय से खिसक गई हूँ (काश कि यहाँ मै फेसबुकी इमोजी भी चिपका पाती😜 ऐसे)। हाँ तो ये थी मेरी 'अजब की बेफिक्री',,,, । अब गजब की बेफिक्री ये है किं- बच्चे घर पर हैं और बार बार पूछ रहे हैं,,, माँ खाने मे क्या स्पेशल है,,,? कुछ अच्छा बनाओ,,,। अब लिजिए 'आसमान से गिरे और खजूर पर अटके',,, अब खजूर पर अटकी हूँ तो थोड़े खजूर खा ही लेती हूँ,,।आपको भी चाहिए तो अभी बता दीजिए,,कूद गई ऊपर से तो फिर ना बोलिएगा,,,,मेरे लिए भी खजूर तोड़ देती। वैसे भी खजूर का पेड़ मुझे खुद से नीचे पटकने की जहमत नही करेगा,,,कूद कर विषय पर लौट आऊँ जल्दी,,,,।
          अजब-गजब बेफिक्री के खजूर खा चुकी और आपको भी खिला दिए,,, पति महादेव को भी नाश्ता-पानी खिला कर उनके लिए भी 'टिफीन( यहाँ भी विराजमान)' पैक कर मै बैठ गई। सामने की सेन्ट्रल टेबल पर चार्ट पेपर के रंगबिरंगें कागज़ लेकर,, समझ ही चुके होंगें किस लिए,,,,,! हाॅली डे होमवर्क की तैयारी शुरू करवानी है,,। चुपचाप एकाग्रचित्त होकर इन रंगीन कागज़ों पर लकीरें खींच रही हूँ। यहाँ थोड़ी गम्भीरता आ रही है विचारों में,,, और अचानक एक बात कौंध उठी दिमागी आसमान पर,,,, "ख़्याल भी कितने ख़्याली होते हैं बाबा रे!!!!! मजाल के दिलो दिमाग की किसी एक शाख पर बैठ जाएं!!" पल मे शरारत तो पल मे शान्त ,,बड़े विचित्र,,बड़े उन्मादी,,। मै अब ख्यालों के साथ दूसरी शाख पर बैठने चली।
         मै अक्सर परेशान रहती हूँ इस बात को लेकर कि - कोरे कागज़ों पर मुझसे सीधी लकीरें नही खिंचतीं,,,। कोरे कागज़ोपर लिखने बैठो तो लिखावट सीधी नही आती । कई पृष्ठों पर आदतन टेढ़ी लकीरें खींच ,,खुद की अक्षमता पर स्वयं ही खींजते हुए,,,तभी अचानक दिमागी बत्ती लुपलुपाई,,,। आयताकार रंगीन कागज़ो के चारों किनारों को आधार बनाकर सीधी लकीरे खींच लकीरों का एक 'फ्रेम' बनाया,, और फिर खड़ी और पड़ी रेखाओं के सहारा बना पटरी( स्केल) पर बनी लम्बी और इंच -सेमी की खड़ी लाइनों पर टिका सीधी लकीरें खींच डाली,,,,,,,,,,,,,!!!!! उफ्फ सफलता चाहे जिस भी रूप मे मिले जिस भी आकार मे मिले,,,उल्लास भर देती है। यदि ठोकर खाकर आत्मानुभवों से मिले तो खुद को 'गौतम बुद्ध' से कम नही समझना चाहिए,,,,हा,हा,हा,हा,,,, लगता है सफलता के जोश मे कुछ अतिशयोक्ति हो गई।
        फिलहाल आपको 'कोरे कागज़ पर टेढ़ी लकीर से सीधी लकीर खींचने की "गौतम बुद्ध" बोध का वर्णन समझ आया के नही,,, मै इसमे खुद को फंसाना नही चाहती,, बस आपको फंसा कर मै बाहर निकल ली ।
      अब मैं ख़्यालों की एक दार्शनिक शाख पर जा बैठी हूँ। और सोच रही हूँ कि- जीवन भी इन चार्ट पेपरों की तरह अलग अलग रंग लिए आता है,,, एकदम कोरा,,, इस पर हमें अपने कर्मों का लेख लिखना होता है। कुछ लोगों मे इतनी सक्षमता होती है कि उन्हे किसी सीधी लकीर को सहारा बना कर अपने कार्मिक शब्दों का वाक्य विन्यास नही लिखना पड़ता है,,। वे इतने आत्मविश्वासी होते हैं जो एक बार कलम उठी तो लिखावट में ढ़ृढता की सीधाई मत्रंमुग्ध कर देती है। तो कुछ मेरे जैसे होते हैं,, जिन्हे लिखावट को सीधा रखने के लिए रेखाओं का आलंबन और अवलंबन फ्रेम बनाना पड़ता है, और सीधी लाइने खींचनी पड़ती हैं। यही नही कई वर्षों के असफल प्रयास के पश्चात लाइन सीधी खींचने का ज्ञान दीप प्रज्वल्लित होता है।
         नही जानती इस सफलता का 'माप' क्या है छोटी हैं या बड़ी,,पर इस उपलब्धि का उल्लास अर्थपूर्ण रहा।
ख़्यालों की गतिशीलता हतप्रभ कर रही है। जब लिखने बैठी थी तो विचारों मे शरारत और चुटीलापन था,,,और अब चित्त शांत और धीर है। टाइपिंग की प्रकृति आत्मसंतोष को दर्शा रही है। 'टिफीन समस्या' भी जैसे कुछ पल के लिए चपलता से स्थिरता का रूख ले चुकी है। एक गहन दीर्घ निःश्वास के साथ लेखनी को विराम ,,
शुभ दिनचर्या
शुभ ग्रीष्मावकाश !!!!