चुप्पी को चुपचाप बैठ कर इस हद तक संवारा जाए-
'बातें' करने लगें खुसफुसाहट... घबराएं लब खोलने से
जमा करते-करते बहुत से जज़्बात एक दिन
बना डालें खुद को पहाड़
उग जाएंगे 'न कह पाए' बीजों से कितने ही पेड़
बन जाएगा एक हरियाला सा जंगल
जहां दर्द की चिड़ियां सुनाती फिरेंगी
गीत अपनी चहचहाट में
भाव सारे बन जाएंगे एक दरिया
वे भूल जाएंगे आँखों का रास्ता और बहने लगेंगे
पहाड़ों और जंगलों के बीच अपनी एक अलग राह बनाते हुए
उम्मीद का सूरज नहीं पहुंच पाएगा इन सदाबहारी जंगलों की दुर्दांत घनी छांव के पार जमीन तक,
पनपने लगेगा विचारों का एक अलग ही संसार-
कीट पतंगों और जीवों का
भुला दी जाएं मनुष्य निर्मित, भावों और संवेदनाओं को दिए गए जटिल नाम ..परिभाषाएं...और अर्थ
सरल होगा यहां सब कुछ ...क्यों.. क्या.. कैसे..किसलिए..से परे
जो है वही देखा जाएगा, वहीं समझा जाएगा
कोई परत नहीं होगी देखने और समझने के बीच..
मन को नहीं करनी होगी खुद को कुचलने की कोशिश
गा सकेगा दर्द चिड़ियों के साथ
वो बह सकेगा दरिया के साथ
उड़ सकेगा हवा के साथ
अरझ जाएगा किसी पेड़ की शाख से
बाहर की खिचपिचाती दुनिया के
झमेलों से बचकर
तितली बन कर उड़ता रहेगा
परों पर रंगो को सजाए
चंचलता की सभी हदों को पार करता हुआ
चुप के अरण्य में...
लिली
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