शनिवार, 13 सितंबर 2025

मैं देवी नहीं हूँ तुम्हारी




 प्रस्तर की दमघोटू वर्जनाओं को 

तोड़ अपने खुले लहराते केशो में 

टांक कर स्वप्निल तारे

अपनी जमीन और अपना आसमान

खुद तराशती - मैं अब तुम्हारी देवी नहीं हूँ...

मुझे नहीं चाहिए -

आराधना के अभिमंत्रित पुष्प 

होम की शुद्ध की गई वेदी

नैवेद्य का दान

क्योंकि मैं जान चुकी हूँ 

पूजा में छुपा पाखंड

दान में छुपा दोहन

लोबान के सुगंधित धूम्र का 

भ्रमजाल...

मैने जान लिया है 

मानवीय इच्छाओं के उचकने कौतूहल

छलकती संवेदनाओं को बहा देने का मर्म

दबी कुंठाओं को उलीच देने का सुकून

अपने लिए जीने का आनंद

मैं मुक्त हूँ संस्कृति और मर्यादा के

बोझिल दायित्व से क्योंकि - 

मैं अब देवी नहीं हूँ तुम्हारी

मैं अब देवी नहीं हूँ तुम्हारी 

लिली

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