शनिवार, 30 जुलाई 2016

शब्दों की महिमा

                                         (चित्र इन्टरनेट की सौजन्य से)

   'शब्द ब्रह्म है', 'शब्दों का चातुर्य','शब्दों का भ्रमजाल','शब्दों का पहाड़',,,,,ढाई अक्षर का यह 'शब्द'  कितना प्रतिभाशाली,,,कितना प्रभुत्वशाली !!!!!!इसकी महिमा अबरम्पार है,कभी सोचती हूँ तो अस्मंजस्य के विशाल सागर में डूबती जाती हूँ।
    इनका प्रभुत्व और प्रभाव कल्पना से परे है,'शब्दों के तीर ह्दय को चीर भी जाते हैं, तो घावों पर मलहम भी लगाते हैं। हतोत्साहित चित्त को उत्साह से लबालब कर सकते हैं तो थोडे से प्रयास मात्र से जोश से भरा मटका चकनाचूर भी कर सकते हैं।एक युद्धनायक  के मुख से निकलने वाले वीरता, त्याग,बलिदान की भावना से भरे 'शब्द रूपी अग्निबाण' सेना पर जोश और उत्साह की अग्निवर्षा कर देते हैं जो कि कभी कभी साधन व संख्या के अभाव मे भी सेना के मनोबल को नही टूटने देते।
     एक उदास और एकाकी मन को यदि 'प्रसन्नचित एंव चुलबुले शब्दों' का सानिध्य मिल जाए,,,तो कब उदासीनता और एकाकीपन रफूचक्कर हो जाता है,पता ही नही चलता।
ह्दय मे प्रेम पुष्प खिला सकते हैं तो उतनी ही सक्रियता से मन को हताहत भी कर सकते हैं। द्वेष,घृणा,भय आदि सभी मनोभावों को बखूबी अपने मे आत्मसात कर ये 'शब्द 'परिस्थितियों को अपने अनुकूल ढालने का दमखम रखते हैं।
         यह सब शाब्दिक चमत्कार तभी सम्भव है जब आप 'शब्दों के धनी' हैं और उनका समयानुसार उचित प्रयोग करने मे सक्षम हैं,,,,,,,,मात्र भावनाओ का उफान 'शब्दों' के अभाव मे शून्य है। एक कवि, या लेखक जब सुन्दर और उपयुक्त शब्दों के साथ मनोभावों को अभिव्यक्ति देता है,,,,विषय का सौन्दर्य मन्त्रमुग्ध कर देता है।
       जहाँ लेखक,वक्ता यदि 'शब्दों के भ्रमजाल' से भ्रमित कर सकता है तो, मात्र अपने 'शब्द-कौशल' को दर्शाने हेतु भाव रहित, रस विहीन 'शब्दों का पहाड़' भी बना सकता है। विषय मे रूचि भी उत्पन्न कर सकता है या नीरस भी बना सकता है।
       कुशल वक्ता अपने 'शब्द चातुर्य' से जनसमुदाय के समक्ष कुशलता से अपनी बात रख ,अपने वांछित उद्देश्यों की पूर्ति हेतु जनमत का रूख अपनी तरफ मोड़ सकता है।
       सम्पूर्ण समर्पण और प्रेमभाव से प्रस्तुत किए गयें शब्द दूर से ही जन्म-जन्मान्तर के बन्धनों मे बांध देते हैं,,, तो कुंठा और क्रोध भाव से भरे शब्द एक ही झटके मे सभी बन्धनों को तोड़ देते हैं।
     शब्द 'कटार' है,, शब्द 'ढाल' है,,,शब्दों से ही भावों की अभिव्यक्ति है,,,शब्द 'तृष्णा है,,,शब्द ही तृप्ति है। भावनाओं सम्वेदनाओं का मानव जीवन मे तब तक कोई अस्तित्व नही है,जब तक उन्हे उचित,उपयुक्त शब्दों मे ढालकर अभिव्यक्त ना किया गया हो।
       यह लेख शब्दों के महिमा जाल में फंसे मेरे हतप्रभ मन की एक शब्दमयी अभिव्यक्ति है,,,मेरी आत्मानुभूति है,,,,
जो कि बस शब्द रूपी ब्रह्म का एक सूक्ष्म अंश मात्र है।
और भी बहुत कुछ है मेरे चिन्तन से परे। 'शब्द ब्रह्म' है इसी निष्कर्ष के साथ मै फिर से इस महिमामय अस्मंजस्य के दिव्य सागर मे डूब जाना चाहती हूँ।
          

शुक्रवार, 29 जुलाई 2016

प्रेम का विस्तार




                 प्रेम का विस्तार
                 क्षितिज के उसपार
                 आत्मा से तन तक
                 जन्मों के बन्धन तक
                 ऐसी है ये डोर
                 जिसका न कोई छोर।

                  पर्वत सा धीर
                  सागर सा गम्भीर
                  पुष्प सा कोमल
                   झरने सा निर्मल
                   कहाँ जोड़ दे जाकर तार
                   है कल्पना के पार।

                   प्रेम का विस्तार
                   क्षितिज के उसपार।

                   एक शाम सा उदास
                   कभी भोर सा उल्लास
                   प्रतिक्षण है प्यास
                   दूर तक न कोई आस
                   शीतल मंद बयार
                   जीवन का आधार

                    प्रेम का विस्तार
                   क्षितिज के उसपार

मंगलवार, 19 जुलाई 2016

तुम्हारी यादें,,,,

 कभी तरन्नुम सी
                               कभी तब्बसुम सी
                               कभी हल्की सी
                               कभी बहकी सी
                               तुम्हारी यादें ,,,

                          आज बहुत थाम के बैठी हूँ
                          इनको , पर,,

                              कभी बज उठती हैं,
                              कभी चमक उठती हैं,
                              कभी सिहर जाती हैं,
                              कभी बिखर जाती हैं।

                              कभी धूप सी,
                              कभी घटा सी
                              कभी पुष्प सी,
                              कभी लता सी,
                              तुम्हारी यादें,,,,

                         आज बहुत बांध कर बैठी हूँ
                         इनको पर,,,,

                              कभी खिल उठती हैं,
                              कभी बरस उठती हैं,
                              कभी महक जाती हैं,
                              कभी लिपट जाती हैं।

रविवार, 10 जुलाई 2016

मेरा स्कूटर,,,,

                            (चित्र इन्टरनेट की सौजन्य से)
  एक स्कूटर सी है जिन्दगी मेरी।सारा दिन सड़कों पर दौड़ती ,,,शाम को गैराज मे सुस्ताती ,,और अगली सुबह 3-4 'किक' के साथ स्टार्ट लेती हुई फर्राटे से सड़के नापती हुई चल पड़ती है।
     बड़ी नीरस सी प्रतीत हो रही है ना आपको लेख की शुरूवात?????सोचते होंगें,क्या सब लिखने लगी मै,,,स्कूटर,,सड़क,गैराज,, हा,हा,हा,हा,,,,,। मेरी रोज़मर्रा की ज़िन्दगी है,,,,कुछ बड़े लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु अग्रसर सोच है, एक तपस्या है, भाग- दौड़,,,और एक लंबा समयान्तराल है,,। इन सभी दैनिक आपाधापी से गुज़रते हुए, प्रतिदिन कुछ नूतन अनुभव होते हैं। वही एक जैसे रास्ते,वही चित-परिचित गन्तव्य,वही समयसारिणी,,,परन्तु नित नए अनुभव ।
    सड़कों के 'ट्रैफिक-जाम' से कुशलतापूर्वक निकलती हुई मेरी स्कूटर कभी स्वयं के 'चालन-कौशल' पर इठलाती है,,तो कभी समय,गति और सही निर्णय ना ले पाने के अभाव मे हुई त्रुटि पर मुँह छिपाती है। उन्ही जाने-पहचाने उबड़-खाबड़ रास्तों पर कभी सहजता से आहिस्ता से निकल जाती है, तो कभी उन्ही पर ज़ोर से उछलती हुई अनियन्त्रित हो जाती है।
    सड़के कभी खाली मिल जाए हुजूर तो फिर क्या कहने!!!!!! ,,,मक्खन सी फिसलती है,,,,पहियों और ब्रेक का तालमेल एकदम दुरूस्त,,,रफ्तार के साथ गुनगुनाती है,,,"जिन्दगी एक सफर है सुहाना,,यहाँ कल क्या हो ,किसने जाना",,,, मै और मेरी स्कूटर दुनिया से बेगानी ,एकदम मस्तानी चाल मे दनदनाती हुई,,,,बस पंख ही नही लगते,,,वरना नौबत उड़ने तक की आ जाती है,,,।
      एक बड़ी रोचक और मज़ेदार घटना अक्सर होती है-जब सामने या बगल से गुज़रने वाला वाहनचालक 'गलत टर्न' या 'ओवरटेक' लेने की कोशिश करता है, उस स्थिति मे उसकी अभद्रता और 'ट्रैफिक-नियमो' की उलाहना पर तेज़-तर्रार दृष्टि से कुठाराघात करते हुए बड़ी आत्मसंतुष्टि मिलती है,,,यदि किसी दिन मै ऐसी किसी उलाहनापूर्ण स्थिति का परिचय देती हूँ, तो परिस्थिति से ऐसे 'कन्नी काटती' हुए निकल जाती हूँ, मानो कुछ हुआ ही नही,,चेहरे पर यह भाव दिखाना-" ठीक है यार हो जाता है,,!" 😃
    स्कूटर चालन का सबसे सुखद और आनंदमयी दिन वह होता है,जब बारिश के आसार ना होते हुए भी अकस्मात वृष्टी पूरे जोश-ओ-खरोश के साथ अवतरित हो जाती है आहहह ,,,,! गीली सड़कों पर मेरी स्कूटर के सामने पूरी लयबद्धता के साथ नाचती हुई बारिश की बूँदें,,,,हवा के तेज़ झोंके इन बूँदों को बिखेरने का पूर्ण प्रयास करती हैं, पर कहाँ,,,,!! अभ्यास इतना पक्का है,पल में,ताल पकड़ वे फिर से छम,,,छम,,,छम कर नाच उठती हैं,,,और इस छमछम के बीच लहराती हुई निकलती हूँ मै,,स्वयं को किसी सिनेमा की कुशल नायिका सा अनुभव करती हुई।
       जानबूझ कर पानी से भरे गड्ढों और सड़कों पर स्कूटर चलाना, वो 'छपाक्' की आवाज़, वो पानी को चीरते हुए पहियों का गुज़रना एक मस्ती और आनंदमयी तरंग उत्पन्न करता है।
    ये महज़ एक स्कूटरचालन नही है,,,' ट्रैफिक जाम' मे बुद्धि, विवेक और धैर्य का परिचय देना जीवन के कठिन क्षणों मे आचार व्यवहार को संतुलित रखना सिखाता है। खाली सड़कों और बारिश मे गुनगुनाते हुए सरपट दौड़ना, जीवन के उन निजी क्षणों को पूर्णता से जीने का द्धोतक है, दूसरों की त्रुटियों पर उन्हे घूरना और स्वयं की गलती पर 'कन्नी काटना' एक बड़ा स्वाभाविक  और सामान्य मनोभाव है।
   मेरे जीवन का एक अभिन्न अंग,एक निष्प्राण, निर्जीव, धातुओं से निर्मित यह 'वाहन'  मेरे मन-मस्तिष्क मे उद्वेलित होते विचारों, असफलताओं,उपलब्धियों, का साक्षी है,,मेरे हर्षोउल्लास,मेरी पीड़ा और एहसासों का साथी है।
  अगर मै कहूँ मेरा स्कूटर मेरे व्यक्तित्व के विकास को एक रफ्तार देता है,,,,तो गलत ना होगा।